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17 फ़रवरी 2021

फरियदी और गवाह के बयानों से मुकरने पर बने सज़ा का क़ानून *ह्यूमन दिलीप सोसाइटी ने लिखा राजस्थान उच्च न्यायालय को पत्र* कोटा,17 फरवरी। ह्यूमन रिलीफ सोसायटी के महासचिव एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने राजस्थान उच्च न्यायालय को इस संबंध में पत्र लिखा है जिसमें पत्र को जनहित याचिका मानकर उसमें उठाएं गए गवाहान के अकारण पक्षद्रोही होने सहित कई बिंदुओं पर केंद्र, राज्यसरकारों,अधीनस्थ न्यायालयों को आवश्यक दिशा निर्देश देने की गुहार लगाई है। सोसाइटी महासचिव अख्तर खांन अकेला ने पत्र में कहा कि है पुलिस अनुसंधान अधिकारी, अपनी जान की बाज़ी लगाकर वैज्ञानिक,तकनीकी अनुसंधान के ज़रिये साक्ष्य एकत्रित कर अभियुक्तों को गिरफ्तार करता है। उच्चतम न्यायलय के दिशा- निर्देशों के अनुसार गवाह की आई डी आधार कार्ड,फोटो लेता है और हस्ताक्षर करवाता है। मजिस्ट्रेट के समक्ष 164 सी आर पी सी के तहत बयान करवाता है। इतना सब कुछ होने के बाद चाहे योनशोषण की पीड़िता हो,हत्या के मामले में फरियादी हो,गवाह हो या फिर गंभीर चोटों, जानलेवा चोटों की रिपोर्ट के साथ फरियादी हो, अंडर दी टेबल कहो,आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट कहो, फरियादी ,गवाहान,मुल्ज़िम के बीच अघोषित लेनदेन, समझौते होते है और गवाह न्यायालय में उपस्थित होकर उसके साथ हुई वारदात से मुकर जाता है। हस्ताक्षर वगैराह के मामले में भी अजीब से बयांन देता है। यहां तक मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गये बयानों से भी साफ़ इंकार कर देता है। कभी पुलिस कर्मियों की समझाइश का कहकर बयान देना कहता है। ऐसे में अदालत मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारीयों की सारी मेहनत बेकार होती है और गवाह,फरियादी,मुल्ज़िम के बीच सौदेबाज़ी की परम्परा को बढ़ावा मिलता है। गवाहान के खिलाफ, ऐसे पक्षद्रोही होने पर किस तरह की कार्यवाही का आवश्यक मार्गदर्शन हो। ऐसे मामले में पक्षद्रोही गवाहान की चोटें , उसके हस्ताक्षर, मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयानों का निष्कर्ष किस तरह से निकाला जाए। अभियुक्त जो भी हो, हर हाल में उसे सज़ा मिले और जो बेगुनाह हो, झूंठा फंसाया गया हो,वो निर्दोष साबित हो। इस सिद्धांत के मामलों की संख्या में जो वृद्धि हुई है वह देश और समाज सहित न्यायिक व्यवस्था के लिए घातक है। अख्तर खान अकेला ने उच्च न्यायालय से इस मामले में उक्त बिंदुओं पर केंद्र , राज्य सरकार सहित ,आवश्यक पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देकर ऐसी घातक साक्ष्य मुकरने की परम्परा के खिलाफ कार्यवाही संबंधित बिंदु और आवश्यक दिशा निर्देश तय कर सभी को पाबंद करने के निर्देश देने और गवाहान, फरियादी को प्रोटेक्शन,पूर्व समझाइश,अभियोजन के स्टाफ, ऑफिस,भत्तों में बढ़ोत्तरी की भी मांग उठाई है। यूँ तो सर्वोच्च न्यायलय की डबल बेंच के न्यायधीश सी के प्रसाद व जगदीश सिंह खेहर ने 7 जनवरी 2014 को गुजरात सरकार बनाम किशन भाई वगेरा की क्रिमनल अपील क्रमांक 1485 /2008 मामले में विस्तृत चर्चा कर किसी भी आपराधिक मामले की पैरवी,अनुसंधान मामले में अनुसंधान अधिकारी की भूमिका,पैरवी के वक़्त लोकअभियोजक की भूमिका मामले में,विस्तृत दिशा निर्देश देकर,सभी राज्य की सरकारों को इस मामले में, कमेटियों का गठन कर,अनुसंधान अधिकारी,लोक अभियोजकों की सेमिनारें कर उन्हें मार्गदर्शित करने और उनकी भूमिका पत्रावलियों में बरी होने के बाद जांच कर उनके खिलाफ कार्यवाही के निर्देश भी जारी किये है,लेकिन सिर्फ राजस्थान सरकार ने संवेदनशीलता दिखाकर इस मामले में गंभीर क़दम उठाये और प्रदेश स्तरीय कमेटी का गठन कर जिला स्तरीय कमेटियां गठित कर ऐसे लापरवाह अनुसंधान अधिकारी, पैरवी करने में लापरवाही बरतने वाले लोकअभियोजकों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश है, लेकिन वर्तमान हालातों में इन सब की मेहनत को अगर गवाहान, डंके की चोट और आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट के माध्यम से,बरामदगी, गिरफ्तारी, स्वतंत्र गवाह चोटों का मेडिकल , गवाहान,परिवादी के, मजिस्ट्रेट के समक्ष स्वतंत्र अनुसंधान साबित करने के लिए , निष्पक्ष बयान करवाने के बावजूद भी ,गवाह अगर मुकर जाये, मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गये बयानों से इंकार कर दे, हस्ताक्षर थाने में खाली कागज़ पर करवाने का झूंठ बोलकर सभी न्यायिक अनुसंधान व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने की कोशिशें करता रहे तो ऐसे लोगों के लिए कार्यवाही करने ऐसी परम्परा को रोकने सहित सभी बिंदुओं पर आवश्यक दिशा निर्देश न्यायिक व्यवस्था से जुड़े ,गवाहान, फरियादी , मुल्ज़िम,अभियोजन पक्ष,अनुसंधान अधिकारी,गवाह के निष्पक्ष बयांन लेने वाले न्यायिक अधिकारी प्रकरण का विचारण कर रहे। न्यायिक अधिकारीयों के लिए आवश्यक दिशा निर्देश ज़रूरी है ताकि देश में न्याय का भय पैदा हो सके और आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट के नाम पर जो बाहुबली गिरी,जो सौदेबाज़ी की व्यवस्थाएं है,जो अपराध करके खरीद फरोख्त कर बरी होने फिर अपराध करने की गंदगी है,उस पर रोक लग सके।

 

फरियदी और गवाह के बयानों से मुकरने पर बने सज़ा का क़ानून
*ह्यूमन दिलीप सोसाइटी ने लिखा राजस्थान उच्च न्यायालय को पत्र*
कोटा,17 फरवरी। ह्यूमन रिलीफ सोसायटी के महासचिव एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने राजस्थान उच्च न्यायालय को इस संबंध में पत्र लिखा है जिसमें पत्र को जनहित याचिका मानकर उसमें उठाएं गए गवाहान के अकारण पक्षद्रोही होने सहित कई बिंदुओं पर केंद्र, राज्यसरकारों,अधीनस्थ न्यायालयों को आवश्यक दिशा निर्देश देने की गुहार लगाई है।
सोसाइटी महासचिव अख्तर खांन अकेला ने पत्र में कहा कि है पुलिस अनुसंधान अधिकारी, अपनी जान की बाज़ी लगाकर वैज्ञानिक,तकनीकी अनुसंधान के ज़रिये साक्ष्य एकत्रित कर अभियुक्तों को गिरफ्तार करता है। उच्चतम न्यायलय के दिशा- निर्देशों के अनुसार गवाह की आई डी आधार कार्ड,फोटो लेता है और हस्ताक्षर करवाता है। मजिस्ट्रेट के समक्ष 164 सी आर पी सी के तहत बयान करवाता है। इतना सब कुछ होने के बाद चाहे योनशोषण की पीड़िता हो,हत्या के मामले में फरियादी हो,गवाह हो या फिर गंभीर चोटों, जानलेवा चोटों की रिपोर्ट के साथ फरियादी हो, अंडर दी टेबल कहो,आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट कहो, फरियादी ,गवाहान,मुल्ज़िम के बीच अघोषित लेनदेन, समझौते होते है और गवाह न्यायालय में उपस्थित होकर उसके साथ हुई वारदात से मुकर जाता है। हस्ताक्षर वगैराह के मामले में भी अजीब से बयांन देता है। यहां तक मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गये बयानों से भी साफ़ इंकार कर देता है। कभी पुलिस कर्मियों की समझाइश का कहकर बयान देना कहता है। ऐसे में अदालत मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारीयों की सारी मेहनत बेकार होती है और गवाह,फरियादी,मुल्ज़िम के बीच सौदेबाज़ी की परम्परा को बढ़ावा मिलता है। गवाहान के खिलाफ, ऐसे पक्षद्रोही होने पर किस तरह की कार्यवाही का आवश्यक मार्गदर्शन हो। ऐसे मामले में पक्षद्रोही गवाहान की चोटें , उसके हस्ताक्षर, मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयानों का निष्कर्ष किस तरह से निकाला जाए। अभियुक्त जो भी हो, हर हाल में उसे सज़ा मिले और जो बेगुनाह हो, झूंठा फंसाया गया हो,वो निर्दोष साबित हो। इस सिद्धांत के मामलों की संख्या में जो वृद्धि हुई है वह देश और समाज सहित न्यायिक व्यवस्था के लिए घातक है।
अख्तर खान अकेला ने उच्च न्यायालय से इस मामले में उक्त बिंदुओं पर केंद्र , राज्य सरकार सहित ,आवश्यक पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देकर ऐसी घातक साक्ष्य मुकरने की परम्परा के खिलाफ कार्यवाही संबंधित बिंदु और आवश्यक दिशा निर्देश तय कर सभी को पाबंद करने के निर्देश देने और गवाहान, फरियादी को प्रोटेक्शन,पूर्व समझाइश,अभियोजन के स्टाफ, ऑफिस,भत्तों में बढ़ोत्तरी की भी मांग उठाई है।
यूँ तो सर्वोच्च न्यायलय की डबल बेंच के न्यायधीश सी के प्रसाद व जगदीश सिंह खेहर ने 7 जनवरी 2014 को गुजरात सरकार बनाम किशन भाई वगेरा की क्रिमनल अपील क्रमांक 1485 /2008 मामले में विस्तृत चर्चा कर किसी भी आपराधिक मामले की पैरवी,अनुसंधान मामले में अनुसंधान अधिकारी की भूमिका,पैरवी के वक़्त लोकअभियोजक की भूमिका मामले में,विस्तृत दिशा निर्देश देकर,सभी राज्य की सरकारों को इस मामले में, कमेटियों का गठन कर,अनुसंधान अधिकारी,लोक अभियोजकों की सेमिनारें कर उन्हें मार्गदर्शित करने और उनकी भूमिका पत्रावलियों में बरी होने के बाद जांच कर उनके खिलाफ कार्यवाही के निर्देश भी जारी किये है,लेकिन सिर्फ राजस्थान सरकार ने संवेदनशीलता दिखाकर इस मामले में गंभीर क़दम उठाये और प्रदेश स्तरीय कमेटी का गठन कर जिला स्तरीय कमेटियां गठित कर ऐसे लापरवाह अनुसंधान अधिकारी, पैरवी करने में लापरवाही बरतने वाले लोकअभियोजकों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश है, लेकिन वर्तमान हालातों में इन सब की मेहनत को अगर गवाहान, डंके की चोट और आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट के माध्यम से,बरामदगी, गिरफ्तारी, स्वतंत्र गवाह चोटों का मेडिकल , गवाहान,परिवादी के, मजिस्ट्रेट के समक्ष स्वतंत्र अनुसंधान साबित करने के लिए , निष्पक्ष बयान करवाने के बावजूद भी ,गवाह अगर मुकर जाये, मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गये बयानों से इंकार कर दे, हस्ताक्षर थाने में खाली कागज़ पर करवाने का झूंठ बोलकर सभी न्यायिक अनुसंधान व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने की कोशिशें करता रहे तो ऐसे लोगों के लिए कार्यवाही करने ऐसी परम्परा को रोकने सहित सभी बिंदुओं पर आवश्यक दिशा निर्देश न्यायिक व्यवस्था से जुड़े ,गवाहान, फरियादी , मुल्ज़िम,अभियोजन पक्ष,अनुसंधान अधिकारी,गवाह के निष्पक्ष बयांन लेने वाले न्यायिक अधिकारी प्रकरण का विचारण कर रहे। न्यायिक अधिकारीयों के लिए आवश्यक दिशा निर्देश ज़रूरी है ताकि देश में न्याय का भय पैदा हो सके और आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट के नाम पर जो बाहुबली गिरी,जो सौदेबाज़ी की व्यवस्थाएं है,जो अपराध करके खरीद फरोख्त कर बरी होने फिर अपराध करने की गंदगी है,उस पर रोक लग सके।

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