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17 अक्टूबर 2017

तुम्हारे डर से नजीब लापता है ,,तुमने नजीब को गुमा दिया

तुम्हारे डर से नजीब लापता है ,,तुमने नजीब को गुमा दिया ,,पुलिस में रिपोर्ट लिखी ,,जांच सी बी आई से करवाने की नौटंकी की ,,लेकिन जांच के नाम पर जो दिखावा हुआ ,उसकी पोल ,दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका में सी बी आई और केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी टिपण्णी देकर खोल दी है ,,,यह नजीब भारतीय था ,,इस नजीब की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की है ,,नजीब कहाँ गया ,,किसने गायब किया ,,ज़िंदा है या मुर्दा ,,मारा तो किसने मारा ,,क्यों मारा ,,किस विचारधारा ने मारा ,,यह सवाल अनुत्तरित है ,,क्यौं है ,क्या सरकार को पता है ,,क्या सरकार ने कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई ,,नहीं दिखाई तो क्यों नहीं दिखाई ,,एक गांय पशु पर हिंसा के खिलाफ तिलमिला जाने वाले लोग ,,एक नजीब जो इंसान है ,एक बेबस लाचार माँ का बेटा है ,,उस की खोज पर ,,उसके खिलाफ अत्याचार पर ,एक अल्फ़ाज़ लिखना ,,बोलना नहीं चाहते ,,उनकी विचारधारा , उनकी सोच पर उनके राष्ट्र धर्म ,उनके राजधर्म पर आज सभी शर्मिंदा है ,,खेर एक माँ अपने बेटे की तलाश में भटकती है ,इंसाफ के लिए आन्दोलन करती है ,पुलिस से इन्साफ की भीख मांगती है ,एक वरिष्ठ नागरिक ,,एक सम्मानित नागरिक ,,एक महिला ,,एक अबला के साथ देखिये ,,स्मृति ईरानी साहिबा ,,देखिये सुष्मा स्वराज साहिबा ,,देखिये महिलाओ को माताओं ,,बहनो कहकर टिपण्णी करने वाले आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय ,,देखिये राष्ट्रपति महोदय ,,देखिये ,,क्या यह बेबस ,,लाचार माँ के साथ ऐसा सुलूक होना चाहिए ,,क्या इस मामले में सरकार उसकी पुलिस ने खोजबीन को लेकर क्या क़दम उठाये ,,जनता के सामने नहीं आना चाहिए ,,या फिर किसी कहानी के लेखक का इन्तिज़ार है जो वक़्त ब वक़्त प्रकाशित अपनी मन मर्ज़ी के मुताबिक़ प्रकाशित की जा ,सकेगी ,,जनाब संवेदनाये जगाओ ,,थोड़ा इंसान बन जाओ ,,थोड़ा सच के साथ खड़े रहने के साहसी बनो ,,अगल बगल मत देखो ,,गुमराह मत करो ,,खुद गुमराह मत हो जाओ ,,बस इंसानियत देखो ,,नजीब और उसकी माँ के साथ नाइंसाफी देखो ,,उसका धर्म ,,उसकी ज़ात मत देखो ,,प्लीज़ एक पल एक क्षण के लिए खुद को इंसान कर लो ,,वरना जो तुम हो ,,जो तुम्हारा दिमाग है वैसा तो तुम लिखोगे ही सही ,क्योंकि राज भी ,तुम्हारा ,,डंडा भी तुम्हारा ,अख़बार भी तुम्हारा ,,टी वी भी तुम्हारा ,,संसद भी तुम्हारी ,,क़लम भी तुम्हारी ,,तुम्हे रोकने का साहस खुदा के सिवा किसी में नहीं ,,लेकिन बस याद रखना उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती ,,आज जो खंडहर बढे बढे महलो के तुम देखते हो वोह भी कभी ऐसे ही इतराते थे ,उनका नामलेवा भी आज कोई नहीं है ,भाई ,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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