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10 अप्रैल 2015

तड़पते मरीज से डॉक्टर बोले- कीड़े नहीं निकालेंगे, बदबू आ रही है, खुद निकालो


तड़पते मरीज से डॉक्टर बोले- कीड़े नहीं निकालेंगे, बदबू आ रही है, खुद निकालो
अलवर. गले के कैंसर से तड़पते एक 64 वर्षीय वृद्ध के इलाज में डॉक्टरों ने शुक्रवार को संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर दी। राजीव गांधी अस्पताल में ड्रेसिंग नहीं की तो गले में कीड़े पड़ गए। कीड़ों के कारण गले से रक्तस्राव हो रहा था। जब परिजन शुक्रवार को ईएनटी ओपीडी में लेकर पहुंचे तो डॉक्टरों ने इलाज करने से ही इनकार कर दिया। कीड़े निकालने के लिए परिजनों ने विनती की तो डॉक्टर बोले हम कीड़े नहीं निकालेंगे। बदबू आ रही है। रोगी को ओपीडी से बाहर ले जाओ और अपने आप कीड़े निकालो। रोगी के पुत्र को ग्लब्स पहना दिया। लेकिन जब कीड़े देखकर उसके हाथ कांप गए।
दयानगर दाउदपुर निवासी प्रभुदयाल शर्मा एक साल से गले के कैंसर से पीड़ित हैं। सांस लेने में दिक्कत होने पर डॉक्टरों ने गले में नली डाल दी। जब डॉक्टरों ने नली नहीं बदली तो परिजनों की ओर से नली को बदलते-बदलते घाव हो गया। शुक्रवार को गले में कीड़े दिखाई दिए तो रोगी का पुत्र हरीश शर्मा और पुत्रवधू पिंकी उन्हें लेकर अस्पताल में पहुंचे। यहां डॉ. समीर शर्मा से मिले पर उन्होंने रोगी की ओर ध्यान ही नहीं दिया। फिर वे उन्हें डॉ. एलपी बंसल के पास लेकर गए। वे रोगी को देखकर बोले बदबू आ रही है यहां क्यों लाए हो। बाहर ले जाओ। जब उन्हें बताया कि गले से कीड़े निकालने हैं तो डॉ. बंसल बोले हम कीड़े नहीं निकालेंगे। तारपीन का तेल छिड़को और अपने आप ही निकालो।
ड्रेसिंग नहीं की तो पड़ गए कीड़े
हरीश अपने पिता के गले में हुए घाव की ड्रेसिंग कराने बुधवार को राजीव गांधी अस्पताल पहुंचा तो डॉ. समीर शर्मा ने मना कर दिया। वे बोले 15 दिन से पहले ड्रेसिंग नहीं करेंगे। इससे पहले आना भी मत। ड्रेसिंग नहीं होने के कारण रोगी को गले में कीड़े पड़ गए।
बीकानेर में हो चुकी है एक मौत
बीकानेर के पीबीएम हॉस्पिटल में भी गले में कीड़े पड़ने से एक युवक की मौत हो चुकी है। यहां भी डॉक्टरों द्वारा ड्रेसिंग नहीं करने पर दो दिन में ही युवक के गले के घाव में कीड़े पड़ गए थे। गिड़गिड़ाते परिजनों की डॉक्टरों ने नहीं सुनी तो युवक की 31 मार्च को मौत हो गई।
कीड़े शरीर में भी फैल चुके हैं। इससे इलाज करना संभव नहीं है। इसमें कीड़े निकाले तो रोगी को खून की उल्टी हो सकती है। इसके लिए अस्पताल में संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। बेहतर है कि वे जयपुर में इलाज कराएं। क्योंकि रोगी की क्रिटिकल स्टेज है। इसके लिए रोगी की पर्ची पर भी लिख दिया है।
-डॉ. भगवान सहाय, पीएमओ अलवर

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