मुंबई। बाल ठाकरे के निधन के बाद एक बार फिर से परिवार की कलह
सड़क पर आ गई है। इस बार झगड़ा ठाकरे की राजनीतिक विरासत को संभालने को
नहीं, बल्कि उनकी करोड़ों की संपत्ति को लेकर है। संपत्ति को लेकर झगड़ा
बाल ठाकरे के छोटे बेटे उद्धव और राज ठाकरे के बीच नहीं, तीनों बहुओं के
बीच है। मुख्य झगड़ा चार मंजिला इमारत मातोश्री को लेकर है। यहीं पर
रविवार को बाल ठाकरे की वसीयत को परिवार के सदस्यों के बीच पढ़ा गया ।
वहां मौजूद एक सूत्र ने बताया कि जैसे ही वकील ने ठाकरे की वसीयत
पढ़ना शुरू किया, पारिवार के सदस्य आपस में ही लड़ने लगे। हर कोई अधिक से
अधिक संपत्ति पर अपना हक जता रहा था।
मातोश्री का निचला हिस्सा कार्यालय के तौर पर काम आता है।
यहां शिवसेना प्रमुख और बाल ठाकरे बैठते थे। पहली मंजिल ठाकरे के बेटे
जयदेव की पत्नी स्मिता के कब्जे मे है। पति से अलग होने के बावजूद भी
स्मिता का मातोश्री के एक हिस्से पर कब्जा है।
जयदेव से तलाक के बाद स्मिता मातोश्री के बाहर आ गई थीं, क्योंकि
उनके और सीनियर ठाकरे को लेकर कई प्रकार की अफवाह मीडिया में उड़ती रहती
थी। इसी तरह उद्वव और उनकी पत्नी रश्मि के साथ भी स्मिता के संबंध कुछ ठीक
नहीं थे। खासतौर से तब से, जब से उद्वव ने शिवसेना की जिम्मेदारी संभाली
थी। उद्वव के लाख चाहने के बावजूद स्मिता ने अपना हिस्सा को छोड़ा नहीं
है।
तीसरी मंजिल उद्धव और रश्मि के हिस्से में आई है। उद्धव अपने दोनों बेटों के साथ यहां रहते हैं। उद्वव की पत्नी रश्मि नहीं चाहती हैं कि स्मिता और माधवी इस घर में रहें। बस यहीं से कलह की शुरूआत हुई। तीनों बहुओं में कोई भी झुकने को तैयार नहीं है। स्मिता और माधवी का साफ कहना है कि वे किसी भी कीमत पर मातोश्री नहीं छोड़ेंगी।
शिवसेना के कुछ नेता कहते हैं कि उद्वव और राज के बीच संपत्ति को लेकर
कोई विवाद नहीं है। बाल ठाकरे की संपत्ति में राज का कोई रुझान नहीं है।
उनके पास पहले से ही काफी संपत्ति है। लेकिन उद्धव के साथ संबंध सही नहीं
होने के कारण राज ठाकरे, स्मिता और माधवी की ओर खड़े हैं। इन सबके बीच,
उद्धव की स्थिति बड़ी अजीब-सी बन गई है। तीन महिलाओं की लड़ाई में वह फंस
गए हैं। सेना के एक नेता का कहना है कि उद्धव स्मिता को बिल्कुल पसंद नहीं
करते हैं। उनकी यही कोशिश है कि स्मिता किसी तरह से मातोश्री से बाहर चली
जाएं। स्मिता की राजनीति महत्वाकांक्षा किसी से छुपी नहीं है। बताया जाता
है कि रविवार को उद्धव और स्मिता के बीच काफी तू-तू, मैं-मैं भी हुई। इतना
ही नहीं, दोनों एक-दूसरे को अदालत में देख लेने की धमकी भी दे रहे थे।
दो-तीन साल पहले ठाकरे ने वसीयत को लेकर बात की थी। उन्होंने अपने
बेहद करीबी दोस्त को गवाह बनाना चाहा था, लेकिन अखबार ने उस दोस्त के
हवाले से लिखा है कि उन्होंने गवाह बनने से मना कर दिया था। उनका कहना था
कि उन जैसे उम्रदराज के बजाय किसी युवा व्यक्ति को गवाह बनाया जाए। एक
वरिष्ठ वकील के अनुसार, 2009 में जब ठाकरे की एंजियोप्लास्टी हुई थी, तब
उन्होंने वसीयत बनवाने के बारे में सोचा था। अगर वसीयत नहीं हुई तो हिंदू
उत्तराधिकार कानून के तहत इसका बराबर बंटवारा संतानों के बीच होता है।
ठाकरे के तीन बेटे हैं। उनकी कोई बेटी नहीं है। तीन बेटों में बिंदु माधव
इस दुनिया में नहीं हैं। जयदेव ने काफी पहले पिता से नाता तोड़ लिया था और
उद्धव बाल ठाकरे के राजनीतिक वारिस हैं। हालांकि, अंतिम दिनों में जयदेव
पिता के पास थे।
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