समझौते के आधार पर SC/ST एक्ट का आपराधिक मामला रद्द किया जा सकता है, लेकिन पीड़ित को प्राप्त सरकारी मुआवजा लौटाना होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
न्यायालय: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
केस संख्या: Criminal Appeal No. 9930 of 2024
केस का नाम: Rahul Gupta एवं अन्य बनाम State of U.P. एवं अन्य
पीठ: न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव
न्यायालय संख्या: 86
स्रोत: इलाहाबाद हाईकोर्ट (SC/ST Act)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण स्पष्टता दी कि यदि SC/ST एक्ट से संबंधित आपराधिक मामला वास्तव में निजी विवाद का हो और अपराध पीड़ित की जाति के कारण न हुआ हो, तो सत्यापित समझौते के आधार पर कार्यवाही रद्द की जा सकती है।
हालाँकि, न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि पीड़ित/सूचक को SC/ST अधिनियम के तहत प्राप्त सरकारी मुआवजा अनिवार्य रूप से लौटाना होगा।
आरोपियों ने चार्जशीट दिनांक 30.04.2024 एवं समन आदेश दिनांक 19.07.2024 को चुनौती देते हुए आपराधिक अपील दायर की थी। मामला केस क्राइम संख्या 0126/2024, थाना ब्रह्मपुरी, ज़िला मेरठ से संबंधित था, जिसमें धारा 147, 323, 500, 504, 506 IPC तथा धारा 3(2)(va) SC/ST Act के आरोप थे।
अपील के दौरान दोनों पक्षों ने यह बताया कि आपसी समझौता हो चुका है, जिसे विशेष न्यायाधीश, SC/ST Act, मेरठ द्वारा 04.12.2024 को विधिवत सत्यापित भी कर दिया गया।
हाईकोर्ट के निर्देश पर जिलाधिकारी, मेरठ से रिपोर्ट तलब की गई, जिसमें यह सामने आया कि सूचक/पीड़ित ने SC/ST अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त मुआवजा अभी तक वापस नहीं किया है।
न्यायालय ने कहा कि—
रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि मामला मुख्यतः निजी प्रकृति का विवाद है;
प्रथम दृष्टया यह नहीं पाया गया कि अपराध पीड़ित की जाति के कारण किया गया हो;
समझौता स्वेच्छा से, बिना किसी दबाव या प्रलोभन के किया गया है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Ramawatar बनाम State of M.P. (2022) 13 SCC 635 का हवाला देते हुए कहा कि:
> यदि SC/ST एक्ट के अंतर्गत दर्ज अपराध मूलतः निजी/नागरिक प्रकृति का हो और अधिनियम का उद्देश्य प्रभावित न होता हो, तो न्यायालय समझौते के आधार पर कार्यवाही रद्द कर सकता है।
साथ ही, Full Bench निर्णय – Ghulam Rasool Khan बनाम State of U.P. (2022) का उल्लेख करते हुए कहा गया कि SC/ST Act की धारा 14-A(1) के अंतर्गत आपराधिक अपील में ही समझौते के आधार पर मामला निस्तारित किया जा सकता है, अलग से धारा 482 CrPC की आवश्यकता नहीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने—
समस्त आपराधिक कार्यवाही एवं समन आदेश रद्द (Quash) किए;
आपराधिक अपील को समझौते की शर्तों पर स्वीकार किया;
सूचक/पीड़ित को निर्देश दिया कि वह प्राप्त सरकारी मुआवजा एक सप्ताह के भीतर संबंधित प्राधिकरण को लौटाए।
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि—
SC/ST एक्ट के मामले हर स्थिति में अ-समझौतावादी (non-compoundable) नहीं होते;
यदि अपराध जाति-आधारित न हो और निजी विवाद हो, तो समझौते पर मामला रद्द किया जा सकता है;
सरकारी मुआवजा समझौते के बाद अपने पास नहीं रखा जा सकता — उसे लौटाना अनिवार्य है।
निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, लेकिन साथ ही SC/ST अधिनियम के तहत दी गई सरकारी सहायता का अनुचित लाभ भी नहीं लिया जा सकता।

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