आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

24 दिसंबर 2025

संजीव भानावत , पत्रकारों के उस्ताद की फेसबुक वॉल से, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में माननीय कुलपति प्रो. पवन कुमार शर्मा के साथ घटित हिंसक और आपराधिक घटना अत्यंत दुखद एवं चिंताजनक है। यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था, शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता और संवाद की संस्कृति पर सीधा आघात है।

 

संजीव भानावत , पत्रकारों के उस्ताद की फेसबुक वॉल से, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में माननीय कुलपति प्रो. पवन कुमार शर्मा के साथ घटित हिंसक और आपराधिक घटना अत्यंत दुखद एवं चिंताजनक है। यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था, शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता और संवाद की संस्कृति पर सीधा आघात है।
लोकतंत्र का मूल मंत्र संवाद, सहमति और संवैधानिक मर्यादा है—न कि बल, भय या हिंसा। असहमति को व्यक्त करने के अनेक लोकतांत्रिक और संवैधानिक रास्ते उपलब्ध हैं। ऐसे में एक वरिष्ठ नागरिक, शिक्षाविद और कुलपति जैसे संवैधानिक दायित्व पर आसीन व्यक्ति के साथ इस प्रकार का व्यवहार निंदनीय और अस्वीकार्य है।
इस प्रकरण में दोषियों के विरुद्ध कठोरतम और निष्पक्ष कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी शिक्षा संस्थानों की गरिमा को चुनौती देने का दुस्साहस न कर सके।
इसके साथ ही, इस घटना को केवल कानून-व्यवस्था के प्रश्न के रूप में देखना पर्याप्त नहीं होगा। राज्य में बिना समुचित आवश्यकता के, बहुत कम छात्र संख्या वाले नए विश्वविद्यालय खोलना, वह भी पर्याप्त बुनियादी ढांचे, योग्य फैकल्टी और आवश्यक स्टाफ के अभाव में, उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। परिणामस्वरूप न केवल शैक्षणिक मानक लगातार गिर रहे हैं, बल्कि पुराने और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय भी गंभीर आर्थिक संकट से जूझने को विवश हैं।
आज स्थिति यह है कि अनेक विश्वविद्यालयों के सामने आय सृजन के अवसर लगभग बंद हो चुके हैं। न तो नए संसाधन विकसित किए जा रहे हैं और न ही संस्थानों को आत्मनिर्भर बनाने की ठोस नीति दिखाई देती है। इसी का प्रत्यक्ष परिणाम यह है कि राज्य के अनेक पेंशनधारी महीनों से पेंशन न मिलने के कारण गंभीर आर्थिक और मानसिक संकट में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दशकों तक सेवा देने के बाद यदि बुज़ुर्ग नागरिकों को अपने ही अधिकार के लिए भटकना पड़े, तो असंतोष और पीड़ा का जन्म लेना स्वाभाविक है।
यह भी स्पष्ट है कि पेंशन भुगतान की समस्या केवल वर्तमान तक सीमित नहीं रहेगी। यदि समय रहते ठोस और दूरदर्शी समाधान नहीं निकाले गए, तो आने वाले वर्षों में अन्य विश्वविद्यालयों में भी यही संकट और उससे उपजी हताशा, असंतोष और टकराव फैलने की पूरी आशंका है।
अतः राज्य सरकार से यह अपेक्षा है कि वह
पेंशनर्स की समस्याओं को मानवीय और दूरदर्शी दृष्टि से समझे,
लंबित पेंशन भुगतान को शीघ्र और स्थायी रूप से सुनिश्चित करे,
उच्च शिक्षा संस्थानों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण और आय सृजन के ठोस उपाय करे,
तथा संवाद आधारित लोकतांत्रिक समाधान को प्राथमिकता दे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...