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03 अक्टूबर 2025

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा जी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी की मौजूदगी में रावण कुप्रबंध, हाथी के पगला जाने की जो घटनाएं हुईं लेकिन इसके लियें किसी को भी निलंबित नहीं किया, ना इंजीनियर, मेला चेयरमेन, मेला अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही हुई

 

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा जी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी की मौजूदगी में रावण कुप्रबंध, हाथी के पगला जाने की जो घटनाएं हुईं लेकिन इसके लियें किसी को भी निलंबित नहीं किया, ना इंजीनियर, मेला चेयरमेन, मेला अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही हुई , उल्टे अव्यवस्थाओं को शाबाशी, इसे राजधर्म प्रशासनिक व्यवस्था का बदलाव कहें या फिर दबाव , यूँ भी मुख्यमंत्री के किसी भी कार्यक्रम का पूर्व रिहर्सल स्क्रीनिंग, व्यवस्थाओं को पूर्व आंकलन के नियम की अनदेखी भी हुई, कोटा मेले दशहरे में मुख्यमंत्री जी , लोकसभा अध्यक्ष जी की उपस्थिति में नहीं जलने की ज़िद करने वाले रावण की कहानी , रात्रि नो बजे से सुबह होते होते , कुछ ऐसी बदलती चली के सभी रावण जैसे ज्ञानी लगने लगे , रावण खुद सोचता होगा के , बाद मेरे मरने के , बाद भी रावण मौजूद क्यों हैं ,,एक रावण ,, कोटा में बना रावण , जो सच मुच् का दम्भी, भ्रष्ट, मनमानी करने वाला, रावण था , या फिर पुतला यह तो कोटा का निष्पक्ष , ईमानदार जर्नलिज़्म ,, पत्रकारिता का स्वाभिमान ही तय कर पायेगा , लेकिन कल बृहस्पतिवार की रात्रि आदरणीय ओम जी बिरला अध्यक्ष लोकसभा , आदरणीय मुख्यमंत्री भजन लाल जी , और रिकॉर्ड तय करने वाले सी ई ओ सहित कोटा की आम जनता , सारे पत्रकार , प्रबुद्ध लोगों ,, सोशल एक्टिविस्टों की मौजूदगी में जब , हरे वस्त्र धारी ,, दुबले , पतले , छरहरे , रावण को जलाने की कोशिश की और उसने ना नुकुर किया , फिर लोगों को रावण के नहीं जलने का सच सामने दिखा , तो कोटा के सभी पत्रकारों , प्रबुद्ध लोगों , सोशल एक्टिविस्टों ने दिल की बात जो देखा वोह मौके से ही सोशल मीडिया पर आलोचनात्मक सत्य के रूप में उजागर किया , मुझे लगा के चलो एक रावण के बनने , और रावण बनाने की ज़िद , फिर रावण के नहीं जलने की ज़िद से , कोटा की स्वतंत्र पत्रकारिता , खोजी पत्रकारिता , ज़रा आज़ाद तो हुई , बहुत कुछ सच लिखा जा रहा है , जब सम्पादकों , पत्रकारों , प्रबुद्ध एक्टिविस्टों ने मौके की रिपोर्टिंग की , और परवाह नहीं की के मौके पर आदरणीय मुख्यमंत्री भी है , लोकसभा अध्यक्ष भी हैं , वोह सोशल मिडीया पर सच्चाई के तास्सुरात उजागर करते रहे , करते रहे , में बहुत खुश था , के चलो कोटा में भी अब पत्रकारिता लगभग ट्रेडिल मशीन से छपने ,, कम्पोज़िंग करते हुए जो सच लिखने वाली पत्रकारिता होती थी , जो सच लिखने की साहसिक पत्रकारिता होती थी , फिर से , पत्रकारिता का वही सच्चा दौर इस रावण की ज़िद के चलते शुरू होने जा रहा है , लेकिन रात से , अर्द्ध रात्रि , फिर सुबह होते होते , आखिर रावण की जीत हुई , और सारा कड़वा सच अखबारों से , रिपोर्टिंग से गायब था , अगर , मगर , किन्तु , लेकिन परन्तु के बीच , सच दब गया था , निष्पक्ष पत्रकारिता , ओरिजनल जर्नलिज़्म , फिर से वही आज के दौर वाला था , मैनेजेबल था , रात भर में ऐसा क्या हुआ जो , , सम्पादकों , रिपोर्टरों की सोच ही बदल गई और अख़बारों की सुर्खिया रावण के जलने से लेकर ,बनने से लेकर बजट से लेकर उसके नाप तोल में लगातार आ रहे अंतर् से लेकर , कुतर्कों के जवाबों से सब कुछ भरा था, कुछ लिखा था कुछ छुपा था, सब कुछ तो बदल गया था , ,जी हाँ कोटा वासियों , सोशल मीडिया एक्टिविस्टों , सभी ने यह कटु सत्य देखा है , के रोज़ मर्रा होने वाली रिपोर्टिंग में रावण का क़द 215 फिट से बढ़ता रहा है , और आखिर में यह 215 फिट से बढ़कर 233 से भी ज़्यादा फिट का हो गया , नापने का तरीक़ा भी बताया गया , ड्रोन से नापा गया , एक डोरी फिर दूसरी डोरी इस आधुनिक इंजीनियरिंग युग में नाप तोल की वजह बनी ,और बस रिकॉर्ड बनाने वाले आंकड़े को सही मान लिया गया , किसने नापा , क्या किसी पत्रकार जी ने अपने तरीके से उसका पोस्टमार्टम किया , क्या किसी पत्रकार जी ने उसका नाप बार बार कम ज़्यादा क्यों हुआ , और जब नाप फिक्स था तो फिर रावण बनाने का बजट कितना रहा , पहले कितना बजट था ,फिर नाप बढ़ने से बजट कितना हुआ , एक इंजीनियर कहते हैं , हमने जूते नहीं नापे थे , तो क्यों नहीं नापे थे , क्या जूतों को मुफ्त में बनाया गया था , फिर रावण नहीं जलने के पीछे मखमल को गीली होना बताया वही मखमल जिसे सूखने में 12 घंटे से ज़्यादा नहीं लगते , जबकि धूप भी थी , एक दिन पहले तो रावण के गुणगान थे , बारिश में रावण तनकर खड़ा रहा , जैसी खबरें थीं , ,लेकिन रावण जलने में कोई दिक़्क़त ना आये इसकी कोई पूर्व कार्य योजना नहीं तय्यार हुई , मेला आयोजक , मेला अधिकारी , इंजीनियर , मेला समिति अध्यक्ष ने कोई भी व्यवस्था नहीं देखी सिर्फ कार्यक्रम कटौती , बढ़ोतरी में लगे रहे , वोह भी जब , तब , देश के लोकसभा के अध्यक्ष , ,राजस्थान के मुख्यमंत्री इतिहास में क़रीब पहली बार इस रावण के जलने के गवाह बनने वाले थे ,विश्व रिकॉर्ड बनने वाला था ,ज़रा सोचो विश्व रिकॉर्ड बनाने के नाप तोल करने वाले , रिपोर्टिंग करने वाले अगर मैनेज नहीं होते , सच लिखने वाले हो गए होते , तो रावण बनने से लेकर , उसके नापतोल के फ़र्क़ की कहानी से लेकर , उसके जलाने और फिर फायर ब्रिगेड बुलाकर जलाने , शुभ मुहर्त , पर रावण के नहीं जलने की धार्मिक मान्यताओं पर अगर वोह धर्म गुरुओं से सम्पर्क कर सच प्रकाशित कर देते तो क्या होता ,,,, खेर रावण नापने की वोह ड्रोन से उड़ाई गई रस्सी अभी भी मौजूद है , अब तो किसी पत्रकार साहब को उसे अपने खुद के इंच टेप से नाप लेना , चाहिए ,, रावण का टेंडर कितने का था , बना कितने में ,, फिर टेंडर से कितना अधिक बजट बढ़ाया गया , स्वीकृति विधिक रूप से थी या नहीं, , क्या यह सब रूल्स ऑफ़ ला के मुताबिक़ हुआ , चलो और सुनो , रावण को खड़ा करने और बनाने में 12 टन यानी 12000 किलो स्टील लोहा लगने की बात भी सामने आई , मान भी लिया , यह एक्ज़ेक्ट नाप , एक्ज़ेक्ट तोल 12 टन को लेकर तोल किया किसने , , चलो , रावण नहीं जला , फिर नहीं जला , फिर बढ़ी मुश्किलों में फायर ब्रिगेड , पेट्रोल , डीज़ल से जलाया , जल गया , मुहर्त के अलावा टाइम पर जला कोई बात नहीं , लेकिन जिस लोहे का ज़िक्र किया गया ,जिस स्टील का ज़िक्र किया गया ,वोह 12 टन यानि 12000 किलो , स्टील लोहा तो जला नहीं ना , वोह तो होगा , पता है वोह स्टील लोहा 12 000 किलो गिरी से गिरी हालत में 70 रूपये किलो भी माने तो , 840000 आठ लाख चालीस हज़ार रूपये का होता है , और चलो लोहा जल कर स्क्रेप बन गया तो पचास रूपये किलो भी अगर बिकेगा तो 600000 छह लाख रूपये का होता है , वोह लोहा कहा हैं , कैसे उठाया गया , किधर रखा गया ,,, यह जब व्यवस्थाएं कोनसी थी , कितने की थी , ऐंकर और मेले के कैमरे रावण दहन के वक़्त रावण दहन से भटके हुए क्यों थे , , वगेरा वगेरा कई मामले ऐसे है , जिन पर कुछ सच तो उजागर होना ही चाहिए , लेकिन क्या करें यहां तो रात को पत्रकारिता ज़िंदा हुई थी , फिर सुबह होते होते फिर से मैनेजेबल सी लगी , सकारात्मक सी हो गई , खेर में गलत , सारे अख़बार सच्चे हैं , क्योंकि बहुमत जो है उसका नहीं , बहुमत तो अख़बारों का है ,, ,पत्रिका से सेवानिवृत्त पत्रकार साथी , धीरेन्द्र राहुल साहब और दूसरे कई सेवानिवृत्त पत्रकार जैसे ओम कटारा जी , वगेरा वगेरा इस दर्द को बहुत बहतर तरीके से समझ सकते हैं ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

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