कोटा मेला , मेला नहीं रहा , मटमैला हो गया ,, आयोजकों का मन साफ़ नहीं मेला ही हो गया इसीलिए मेला , मेला नहीं रहा सच में मेला हो गया ,
कोटा 18 अक्टूबर कोटा मेला , मेला हो गया , क्यों हुआ किसलिए हुआ , यह कोटा की आम जनता को , मेले के दर्शकों को सोचना है , आयोजकों को खुद से पूंछना है , अगर इक्का दुक्का ओरिजनल पत्रकार आज़ाद हुआ हो तो उसे स्वतंत्र निष्पक्ष समीक्षा करना है ,कोटा में पहले मेले में कुछ गड़बड़ होती थी तो आम लोग चुप भी रहें तो छात्र शक्ति कूद पढ़ती थी , वर्तमान के लोकसभा अध्यक्ष , ओम जी बिरला , विधायक संदीप शर्मा , पूर्व विधायक प्रह्लाद गुंजल ,, पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष मनमोहन जोशी , प्रह्लाद गुंजल, कांग्रेस के जगदीश राजावत , पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत , पूर्व उप महापौर योगेंद्र खींची , अशोक कालरा, कुलदीप कपूर निक्का सहित कई जांबाजों के शरीर पर लगी पुलिस की लाठियों के निशाँन उनके खिलाफ आंदोलन के लगे मुक़दमें इस कड़वे सच की गवाह हैं , लेकिन अब छात्रों में ऐसी सोच ,, ऐसा दम कहाँ , ,हमारे कोटा नगर निगम की एक पीढ़ी , स्वर्गिय वीरेंदर सिंह जी बग्गा जो पत्रकार भी थे , मेरे अग्रज भी थे , नगर निगम के मेले दशहरे के सभी कार्यक्रमों के वोह खुले ज़िम्मेदार रहते थे , आज के कार्यक्रमों से कई गुना ज़्यादा आकर्षक , सस्ते कार्यक्रम होते थे , वी वी आई पी कार्यक्रम , भीड़ भरे माहौल में होते थे , , दर्शकों में वाहवाही होती थी , और अब स्वर्गीय वीरेंद्र जी बग्गा के सुपुत्र भाई जितेंद्र जी बग्गा दो पीढ़ियां हो गई, उन्होंने बदलाव देखा है वोह भी नगर निगम में हैं वोह बात अलग है, के वोह अभी मेले की व्यवस्थाओं से अलग हैं , लेकिन वोह जब ऊँगली पकड़ कर पापा के साथ मेले में जाते थे और अब मेले के प्रचारक बनकर मेले की दशा कहो या फिर दुर्दशा देखते हैं , तो क्या सोचते हैं , वोह खुद अपने दिल की धड़कनों से पूंछ कर बता देंगे ,,,,,राष्ट्रिय स्तर के ज़िम्मेदारों के बावजूद भी , राष्ट्रिय स्तर का दर्जा प्राप्त करने के लिए तरसता , तड़पता कोटा मेला , कभी इतना मेला नहीं हुआ था , वजह साफ़ है के उन दिनों मेला मेले की तरह से होता था , मेले के आयोजनों में दिलों में मेल नहीं होता था , दशहरा पर्व अलबत्ता बहतरीन होता है , रावण जी जलने से इंकार करते हैं , उन्हें डीज़ल , पेट्रोल से जलाया जाता है गिराया जाता है , राजस्थान के मुख्यमंत्री की सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बताकर पूर्व सुरक्षा रिहर्सल नहीं होता है , मेले में हाथी पागल हो जाता है , इतना ही नहीं , अवैध रूप से बिना किसी पूर्व स्वीकृति , लाइसेंस के ,, मुख्यमंत्री की मौजूदगी में ड्रोन धड़ाम से गिर जाता है , यह सब हो सकता है , जब दशहरे के सिस्टम में संवेदनाओं से ज़्यादा मनमानी हो , एकल निर्णय हों , खेर दशहरा पर्व सभी को मुबारक रहा , बधाई हो , बुराई पर अच्छाई की जीत हुई , ,इसके बाद जो मेला हुआ वोह सभी ने देखा है , अखबारी खबरे अलग हो सकती हैं , लेकिन अतीत के झरोंखों से अगर इस मेले का आंकलन किया जाए तो सुबह सवेरे फजर की अज़ान , सुबह की मंदिरों की आरती की घंटियों के वक़्त तक चलने वाले मुशायरे को इस मेले में दफन कर दिया ,, ऐसा करने वाले खुश हो सकते हैं , इनके समर्थक चड्डी छाप , फूल छाप कोंग्रेसी खुशियां मना सकते हैं , ऐसा करने वाली विचारधारा के समर्थक , इनके साथ लगे हमारे अपने समाज के नौकर चाकर इनकी इस हरकत ,, मेले से मुशायरा , ग़ज़ल , क़व्वाली कार्यक्रमों की हत्या करने पर खुशियों से झूम कर , इस क़दम की इनके इशारों पर ता थय्या का डांस कर खुशियां जताते हुए देखे जा सकते हैं , लेकिन हक़ीक़त यह है , के मेले को , कई सालों से आयोजन के नाम पर हीरो से ज़ीरो बनाने की कोशिशें की जा रही हैं , एक वक़्त था , जब ना महापोर होते थे , ना वार्ड पार्षद होते थे , सिर्फ कलेक्टर , नगर निगम के प्रशासक , आयुक्त ही इस मेले को , अपने नियंत्रण में बेहतर से बहतरीन आयोजित करके दिखाते थे , गड़बड़ियां होने पर यहां छात्रों की एक लम्बी फौज होती थी , विपक्ष में हंगामाई आंदोलनकारी होते थे , जो कार्य्रकमों में आकर अपनी बात मनवाने की मांग को लेकर हुड़दंग करते थे , लाठीचार्ज होते रहते थे कई कार्य्रकम स्थगित , असफल हो जाते थे , लेकिन अब वोह मेला कहां रहा, वर्तमान मेला तो जेबी मेला , मनमौजी मेला , थोपा जाने वाला मेला हो गया है , राष्ट्रिय पर्व के लिए आवेदन , प्रक्रिया , राष्ट्रोय मेले की प्रशासनिक घोषणा होने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता , ,खेर में बात कर रहा हूँ , अतीत के सफल से भी सफलतम मेलों की , देश भर में मेले के आयोजन की सफलता की धूम मचाने वाले मेलों की , और वोह मेले ,, दो या तीन कर्मचारियों के सुझाव से खूब चलते थे , फायर ऑफिसर राहत खान जमाली , रेवेन्यू निरीक्षक वीरेंद्र सिंह बग्गा ,, गोशाला प्रभारी प्रदीप सक्सेना ,, भंवर सिंह , और दो तीन साथी और , बस मेला इनके हवाले होता था , एक से एक , सांस्कृतिक कार्यक्रम , फ़िल्मी नाइटें , बहतरीन क़व्वाली मुक़ाबला , बेहतरीन ग़ज़ल संध्या , बेहतरीन से भी बहतरीन कवि सम्मेलन , बहतरीन राष्ट्रिय मुशायरा , स्थानीय मुशायरा कवि सम्मेलन , बेहतरीन से भी बेहतरीन पंजाबी , ,सिंधी कार्यकम , राजस्थानी कवि सम्मेलन ,, और स्थानीय कार्यक्रमों में स्थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए अलग अलग कार्यक्रम, किसानों को जोडनेके लियें , उनके परिवारों की सहूलियतों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम तो होते ही थे , साथ ही , किसान मेला अलग से लगता था , जहाँ पशु बिकने आते थे , जहां किसानों के लिए अलग से उनके सभी कृषि आवश्यक कार्यों की सामग्री सस्ते दामों में मिलती थी , व्यवस्थित झूले ,, सर्कस , मोत के कुए ,, सभी की न्यूनतम दरें निर्धारित , न्यूनतम मुनाफे फिक्सिंग के साथ आम लोगों के लिए सुविधाजनक , चाट , पकोड़ी के सेम्पल की चेकिंग , ठेलों , खोमचों का व्यवस्थित जमावड़ा , मेले में खुला प्रवेश , मेले से निकलने के लिए खुली निकासी , कोई बंदिश नहीं , कोई पाबंदी नहीं , किशोरपुरा गेट के पहले से ही मेले की दुकाने सजी रहती थी ,, आस पास दोनों तरफ खिलोने वाले , गुब्बारे वाले , चाट पकोड़ी , गजक , मूंगफली , रेडीमेड , किचन , ज़रूरी सामानों की थडियों सहित , हज़ारों हज़ार दुकाने , फिर दाएं बाएं फिल्म स्टूडियो , जहां आकर्षक फोटो की व्यवस्थित व्यवस्थायें होती थीं ,मेला घूम कर आओ फोटो हाथ में, वोह भी उस वक़्त जब डिजिटल युग नहीं ,, पुराने कैमरे , रील फिर रील निकालकर फोटो अँधेरे में धोने के ज़माने थे , तब ब्लेक ऐंड व्हाइट और फिर कलर युग में भी लोग फोटो स्टूडियो पर अपनी यादें समेटते थे , सर्कस कम मुनाफे में चलते थे , तब शेर , चीते , भालू भी सर्कस में आते थे , लेकिन अब सार्वजनिक परामर्श बैठकें नहीं होतीं , होती भी है तो रस्म अदायगी होती है , एक तरफा एक ही विचार के लोगों को बुलाया जाता है , पहले मेले आयोजन के पूर्व एक कमेटी , उप कमेटी बना करती थी , जो अब एकल योजना हो गई है , मनमानी की शुरआत हो गई है , भ्रष्टाचार के मामले चाहे कांग्रेस का ज़माना हो , या फिर अभी भाजपा का युग हो , दोनों में , ऐंटी करप्शन पुलिस जांच करती रही है , वोह बात अलग है के जांच रिपोर्टें फिर ठंडे बास्ते में देखने को मिलती हैं ,, एक वक़्त था जब कोटा में छात्र शक्ति हुआ करती थी , कोटा की व्यवस्थाओं , अव्यवस्थाओं , भ्रष्टाचार के मामलों से उनका सरोकार होता था , वोह चमचे नहीं आज़ाद हुआ करते थे , भाईसाहबों , पार्टियों के गुलाम नहीं , राष्ट्रीयता सोच के तहत आज़ाद हुआ करते थे , वोह अव्यवस्था , मनमानी के खिलाफ बोला करते थे , लड़ा करते थे , ताक़त के बल पर उसे रोका करते थे , लेकिन अब छात्र शक्ति तो खत्म हो गई , टुकड़ों में बंट गई , मशीन बन गई , पार्टियों और भाईसाहबों के इर्द गिर्द रह गई ,, और शक्तिविहीन भी हो गई , कॉलेजों में बटवारे हो गए , सो दो सो छात्रों के कॉलेज कहलाने लग गए तो फिर, ऐसे में छात्र शक्ति से भी क्या उम्मीद रही , लेकिन तब मेलों में ज़रा भी गड़बड़ी होने पर , मनमानी होने पर छात्रों का प्रतिकार होता था , हिम्मत से होता था इतना होता था के पुलिस लाठियां , आंसू गैस के गोले भी उनके हौसले को तोड़ नहीं पाते थे , लेकिन अब जो करो मौज मस्ती करो , जैसा चाहो ,करो कोई पूंछने वाला नहीं कहने वाला नहीं , और फिर भाजपा के तो खासकर वर्तमान कोटा भाजपा के तो , कोटा कांग्रेस पूरी तरह से जेब में है, यस मेन है , जी हुज़ूर है , उनकी बोलने की हिम्मत ही नहीं , और जब कोटा कांग्रेस के बढे नेता ही अव्यवस्थाओं , मुशायरा कटौती पर मुंह फेर कर खड़े रहेंगे , खामोशी इख़्तियार करेंगे तो उनके कुलबुलाते जी हुज़ूरी तो फिर खुद बा खुद खामोश रहेंगे , खेर कोटा जानता है , के इस मेले को , फिर से पहले की तरह , सजाया जा सकता था , संवारा जा सकता था , अखबारी रिपोर्ट अपनी जगह अलग है , विज्ञापनों के ज़रिये अख़बार में कोई भी खबर प्रकाशित करवाई जा सकती है ,लेकिन कड़वा सच यही है , के मेले को तमाशा बनाकर रख दिया , दुकानों के एलॉटमेंट , उनकी किरायेदारी , उप किरायेदारी , फिर दूसरों को महंगे दामों पर किरयेदारी , झूले , सर्कस की ज़मीनों की किराया व्यवस्था वसूली , फिर दूसरों को वोह ज़मीन महंगे दामों में शिकमी किरायेदारी , थड़ी वालों , ठेले वालों के साथ जो हुआ उनकी कहानी , ,खाने पीने की चीज़ों में पुराना तेल ,, मिलावट की चीज़े , फ़ूड सेफ्टी एक्ट के विधि नियमों के खिलाफ नुकसान पहुंचाने वाले खाध पदार्थ ,,अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनने की कहानियां इससे ज़्यादा यह मेला कुछ नहीं रहा , ,यह सब किसी अन्य के नेतृत्व में होता , तो तकलीफ नहीं होती , लेकिन एक शख्सियत विवेक राजवंशी ,, जिनकी निष्पक्षता , सहज ह्रदयता , इमानदारी ,, सभी को साथ लेकर चलने की जो पहचान थी , उनके नेतृत्व में अगर यह हुआ तो ठीक नहीं हुआ , बस यही कहने को जी चाहता है , आप तो ऐसे ना थे , आप तो ऐसे हरगिज़ ना थे , ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
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