ऐसा देश है मेरा/ साहित्यकार........749
जितेंद्र कुमार शर्मा ' निर्मोही ', झालावाड़
बहुआयामी साहित्य सृजन के शिल्पी.........
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राजस्थान के प्रसिद्ध रचनाकारों में झालावाड़ में हिंदी, उर्दू और बृज भाषा के साहित्य की त्रिवेणी में जन्में प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवि जितेन्द्र कुमार शर्मा ' निर्मोही ' ने अपनी साहित्यिक यात्रा में बहुआयामी साहित्य का सृजन किया, जिसने उन्हें लोकप्रियता प्रदान की। उनके द्वारा रचित " द्रौपदी " प्रबन्धकाव्य एक ऐसी रचना है जिसमें इस युग में व्याप्त मूल्य हीनता, नारी का अपमान, हत्या तथा भ्रष्टाचार, बलात्कार, जैसे कृत्य जो देश एवं धरती को विनाश की ओर ले जा रहे हैं, द्रौपदी के चरित्र के माध्यम से नारी मनोविज्ञान उसका अन्तर्मन उसका स्वाभिमान एवं अस्मिता के अपमानित होने पर कैसा प्रलंयकारी रूप उपस्थित हो जाता है, इसको इन्होंने बहुत ही प्रभावपूर्ण शब्दों में वर्णित किया है। कलात्मकता एवं मार्मिकता हृदय को छू लेती है। अपमानित होकर जब नारी जब विकराल रूप धर लेती है तो वीरों का भी सर्वनाश होता है। यह रचना सत्रह सर्गों में विभाजित है। प्रथम दस सर्गों में मंगलाचरण सहित द्रौपदी के प्राकट्य एवं अनुपम सौन्दर्य के प्राकृतिक एवं कलात्मक मनोहारी रूप वर्णन द्वारा नारी की महिमा को स्थापित किया गया है।
सम्पूर्ण सृष्टि उसका आँचल,
वह धरती है या गगनांचल।
महाकाव्य द्रौपदी का मानवीय चित्रण करता है...." वह अर्जुन से कविता कहती और अर्जुन उसको गाते और मुदित हो कृष्ण को मूलभाव समझाते हैं। रचनाकार के द्रोपदी जैसे महाकाव्य के साथ - साथ उनके साहित्य को पढ़ना एक अलग ही अभिव्यक्ति का अनुभव लेना है।'' प्रो. राधेश्याम मेहर इनके साहित्य जीवन और साहित्यिक यात्रा के संदर्भ में इन्हें जीवन दर्शन का कवि बताते हुए कहते हैं ''आर छै जी पार छै या नदी की धार छै''। इनका सूफी दर्शन अद्भुत है ..........
" दूर जंगल से गुजरने वालों
पास में एक नदी भी बहती है''
उनका यह शेर तो कालजयी है -
'मौत से जब भी जूझता हूँ मैं
जिंदगी पास खड़ी रहती है''
** श्रृंगार गीतों से अपनी यात्रा प्रारम्भ करने वाला गीतकार जब हिन्दी गीत गाता है तो संयोग श्रृंगार वो यूँ उकेरता है...........
'लाज की अग्नि रेखा को अब लांघिये
नेह के क्षीर में अब शयन कीजिये
पीर के क्षीर को छोडिये मोहिनी
अश्रु वाले नयन उन्नयन कीजिए''
ऐसे ही वियोग श्रृंगार के राजस्थानी गीत की बानगी देखिए..….....
'अजी झूला झूला पड्या निमड़ा नीचै आंगन बखर्या गीत
पडी प्रीत पाटकली सूनी दूर बस्या मनमीत
हिंडोलो रीतो जावै छै, बैरी गीत न भावै छै
बेगा आज्यो जी साहिब जी, थांकी याद सतावै छै''।
** रचनाकार हिंदी, राजस्थानी और उर्दू भाषाओं में गद्य और पद्य दोनो विधाओं में लिखते हैं । जब कथा लिखने लगे तो देश की प्रतिनिधि पत्रिका 'हंस', 'कथाप्रवाह', 'कथा समय', 'परिकथा' में पाठकों ने पढ़ा व सराहा। उनकी एक कहानी ''एक नजर का प्यार'' बहुत चर्चित रही। इसका प्रारम्भ कुछ इस तरह है.............''कॉलेज का टाइम का मंजर याद ही आता है, जब 'वो' यानि कि 'नर्गिस' जब कॉलेज से निकलती तो सैंकडों निगाहें उसका पलक पावड़े बिछाकर इंतजार करती रहती। कोई कहता 'संगमरमर का ये तराशा हुआ बदन, लोग इसे ताजमहल कहते है।' कोई कहता 'चौहदवीं का चाँद हो या आफताब हो जो भी हो खुदा की कसम लाजवाब हो।'''
** इनकी अधिकांश कहानियाँ स्मृतियों को संजोए हैं । साहित्यकार डॉ. विवेक मिश्र कहते हैं कि इनका स्मृति युक्त कथा साहित्य अनूठा होता है। मध्य प्रदेश के कथाकार समीक्षक डॉ. रामसिंह कहते हैं, इनकी कहानियाँ प्रेमचन्द की परम्परा की तरह उर्दू जुबां में हैं, उनकी कहानियाँ प्रेम और रोमांस लिखने वाले अफसानानिगारो की याद दिलाती है।'' इनकी कहानियों का राजस्थानी और उर्दू में अनुवाद भी हुआ है। शोध करने वाले इनके काव्य और कहानियों को अपने शोध कार्य में उपयोग कर रहे हैं और इनके रचनाकर्म पर शोध भी कर रहे हैं।
** राजस्थानी भाषाविज्ञ डॉ. कन्हैयालाल शर्मा ने कहा कि ''उनके संयोग और वियोग श्रृंगार के गीत अनूठे है।'' मुंबई के मधुकर गौड ने जब देश भर के गीतकारों का सर्वे कराया तो उन्हें देश के श्रेष्ठ 350 गीतकारों में पाया। बाल कवि बैरागी उन्हें सांस्कृतिक निष्ठा और जीवन दर्शन का कवि मानते है, जिसके जीवन के साथ पर्यावरणीय चिंतन चलता है। ये कॉलेज में विद्यार्थी काल से ही राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में भागीदारी करते है और बाल कवि बैरागी, चन्द्रसेन विराट से बाद में कुँवर बैचेन से साहित्यिक सरोकार रखते रहे हैं। उन्हें फिल्मी गीतकार मिलते हैं और साहित्यकार के अनुभवों की यात्रा के दौरान उन्हें जैनेन्द्र, अज्ञेय, दिनकर, सोनवलकर आदि कवि साहित्यकार मिलते रहे।
** इनकी संस्मरण कृति ''उजाले अपनी यादों के'' को राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर का प्रतिष्ठित डॉ. कन्हैयालाल सहल पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसके बाद आई संस्मरण कृति ''सफर दर सफर'' जिसकी समीक्षा कितने ही विद्वानों ने की है। इसकी समीक्षा प्रातिष्ठित पत्रिका ''साक्षात्कार'' सहित कई पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। इनकी निबंध, नाटक, काव्य समीक्षा, बाल साहित्य आदि विधाओं की लगभग 20 कृतियाँ हिन्दी और राजस्थानी साहित्य की धरोहर हैं।
** झालावाड़ की साहित्यिक गंगा में पूरी शिद्दत से गौते लगाते हुए वर्ष 1997 में ये कोटा आए, कहते हैं यहां साहित्य के हालात देखते हुए राजस्थानी भाषा लेखन का एक आंदोलन चलाया। इन्होंने न केवल साहित्य की उन्नति में योगदान किया वरन नवोदित प्रतिभाओं को आगे लाने और बढ़ाने में भी मार्गदर्शन प्रदान किया और कई संस्थाओं को स्थापित भी किया। प्रयासों से आज हाड़ोती में राजस्थानी भाषा के अनेक साहित्यकार इनके प्रोत्साहन के शुक्रगुजार हैं। कहते हैं आज हाड़ोती में राजस्थानी भाषा में लिखने का अच्छा माहोल है, साहित्य की सभी विधाओं में साहित्यकार खूब लिख रहे हैं।
** उभरते साहित्यकारों को मार्गदर्शन प्रदान करना, उनकी कृतियां प्रकाशित कराने में सहयोग करना, प्रकाशित कृतियों का लोकार्पण कराना, उनकी कृतियों पर समीक्षा लिखना, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित करना आदि उपक्रमों से ये साहित्य जगत में अपना स्थान बनाने और साहित्यकारों को प्रतिस्थापित करने की भूमिका में नजर आते हैं।
** राजस्थानी के साहित्यकारों को प्रोत्साहन देने के लिए आप ज्ञान भारती संस्था से जुड़े। इस संस्था के माध्यम से से हर वर्ष स्व.गौरी शंकर कमलेश पुरस्कार राजस्थानी भाषा के साहित्यकार को प्रदान किया जाता है। एक और स्व.कमला कमलेश पुरस्कार भी शुरू किया गया है। इन्होंने जब 1999 में संस्था के माध्यम से दो दिवसीय राजस्थानी रचनाकर सम्मेलन बुलाया उस समय तक राजस्थानी गद्य में स्व. प्रेम जी प्रेम का गद्य साहित्य, विजय जोशी का एक कहानी संग्रह और डॉ. हरिमोहन प्रधान का यात्रा वृत्तांत था। माता जी कमला कमलेश, गिरधारी लाल मालव और इन्होंने ने गद्य में कृतियां लिखी थी। अतः बाहर से विद्वान बुलाए गए। उन्होंने कार्यशाला में कहा था कि यहां तो राजस्थानी भाषा साहित्य में गद्य की कृतियां ही नहीं हैं ,किस पर चर्चा करें। आज प्रयासों से आज यहां राजस्थानी साहित्य की काफी अच्छी स्थिति हो गई है। जहां कहीं भी आज कोटा के साहित्य की चर्चा चलती है इनका नाम आए बिना पूरी नहीं होती हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर से राजस्थानी भाषा का आगीवाण पुरस्कार प्राप्त यह साहित्यकार हाड़ौती अंचल में भी राजस्थानी भाषा साहित्यअग्रणीय साहित्यकार है। इन्होंने बताया कि विद्वानों के मत में ये राजस्थानी भाषा साहित्य के दस सर्वश्रेष्ठ नवाचार उपन्यासकारों और दस सर्वश्रेष्ठ समीक्षकों में गिने जाते है।
** साहित्य के संदर्भ में कहा जा सकता है कि इनके साहित्य में मानवीय मूल्यों का आधिक्य, संवेदना, विषम परिस्थितियों से जूझने की ताकत , पर्यावरण व जल संरक्षण , गीतों में संजोग और वियोग के दृश्य और कहानियों में प्रेम और समरसता का बोध है। डॉ. विकास दवे निदेशक मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी भोपाल कहते हैं, " इनके जीवन में जितनी सरलता और विविधता लिए हुए है, उनका साहित्य भी तदानुसार वैसा ही है। राजस्थानी और हिंदी साहित्य के विद्वान उन्हें हाड़ोती अंचल की संस्कृति और यहां की साहित्यिक सेवाओं को बेबाकी से सामने लाने वाला साहित्यकार मानते हैं। अपनी आलोचना और समीक्षा की कृतियों से उनके द्वारा अंचल के रचनाकारों के रचनाकर्म को उद्घाटित किया है। इस अंचल के राजस्थानी रचनाकारों को विशेष रूप से युवा पीढी को सामने लाने का उनका परिश्रम हमेशा याद किया जाएगा ।"
** साहित्य सृजन :
रचनाकार के साहित्य सृजन का फलक व्यापक है। कविता, दोहे, छंद, ग़ज़ल कहानी,आध्यात्मिक निबंध, संस्मरण, नाटक, उपन्यास एवं आलोचना आदि इनके साहित्यिक कैनवास के चमकते मोती हैं। हिंदी में जंगल से गुजरते हुए (काव्य), धूप के साये में चाँदनी (काव्य), मुरली बाज उठीअणधाता (आध्यात्मिक निबंध), उजाले अपनी यादों के (संस्मरण), भोर पर चढ़ आई धूप (काव्य), हाड़ोती अंचल का आधुनिक काव्य (समालोचना), ना जा रे! जोगिया(उपन्यास), नीर की पीर (रेडियो नाटक), तेरे चेहरे की तलाश (कहानी संकलन),विचार एवं संवाद (निबंध), कुछ तराने कुछ फसाने (निबंध), मैं भी गीत सुना दूँ, (गीत-नवगीत) की रचना प्रमुख हैं। हिंदी में ही इन्होंने विचार एवं संवाद (आलेख), सफर दर सफर (संस्मरण), मुंह बोलते अक्षर (समीक्षा), राधेश्याम मेहर कृतित्व और व्यक्तित्व एवं बलवीर सिंह करुण पर मोनोग्राफ भी लिखा है। प्रोफेसर कृष्ण बिहारी भारतीय ने इनके काव्य साहित्य पर एक कृति लिखी है। जितेन्द्र निर्मोही: काव्य के विविध रंग " प्रकाशनाधीन है।
** जिस प्रकार आपका हिन्दी साहित्य समृद्ध है वैसे ही आपकी राजस्थानी में एक दर्जन कृतियां प्रकाश में आई हैं। इन कृतियों में ई बात को मिजाज (काव्य), बांदरवाल की लड़्याँ (निबंध), हाड़ौती अंचल को राजस्थानी काव्य (समीक्षा), बणजारी जूण (संस्मरण), नुगरी (उपन्यास), कफन को पजामो (कहाणियाँ), गाधि सुत (खण्ड काव्य) मुख्य हैं। राजस्थानी बाल साहित्य अर दीठ ’म्हूं धरती छूं’ (बाल साहित्य) का प्रकाशन करवाया और राजस्थानी काव्य में सिणगार पर आलेख लिखा। आपने बाल काव्य "जंगली जनावरां की पछाण " भी लिखा। हाल ही में आपका रामजस की रामकथा (उपन्यास) प्रकाशित हुआ है। राजस्थानी उपन्यास एक दृष्टि में तथा राजस्थानी कहानियां एक दृष्टि में प्रकाशनाधीन हैं। इनकी कुछ रचनाएं अभी अप्रकाशित हैं।
** पुरस्कार/ सम्मान :
आपके साहित्यिक योगदान और सृजन के लिए आपको विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका जा है। “जंगल से गुजरते हुए काव्य” काव्य कृति पर स्वतंत्रता सैनानी नवनीत दास सम्मान, विश्व हिन्दी दिवस पर “सहस्त्राब्दी सम्मान” नई दिल्ली, जिला प्रशासन झालावाड़ एवं नारायण सेवा संस्थान उदयपुर से सम्मानित, “कन्हैयालाल सहल पुरस्कार वर्ष 2011-12″ राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर,‘‘साहित्य श्री’’, भारतेन्दु समिति कोटा, मदर इण्डिया संस्थान, नयापुरा, कोटा द्वारा आर्यवृत साहित्य सम्मान, सारंग साहित्य समिति कोटा द्वारा सम्मानित“जगमग दीपज्योति” अलवर से सम्मान,” स्व. घनश्याम लाल बंसल स्मृति सम्मान, बाराँ ,“विंध्य कोकिल भैयालाल व्यास स्मृति पुरस्कार 2014” छतरपुर (म.प्र.), साहित्य मंड़ल नाथद्वारा से ”साहित्य विभूषण 2015“, हल्दीघाटी संस्थान नाथद्वारा से ”सोहन लाल द्विवेदी सम्मान“, सर्व ब्राह्यण समाज से सम्मानित, अखिल भारतीय राष्ट्रीय साहित्य सलिला सम्मान सलूम्बर, अखिल भारतीय साहित्य परिषद बून्दी, झालावाड़, ‘‘राजन फाउण्डेशन अकोला’’ चित्तौड़गढ़ से राष्ट्रीय साहित्य सम्मान, दो बार नागरिक अभिनंदन, प्रबंधक डिब्बा मालखाना पश्चिम रेलवे कोटा द्वारा सम्मानित, सनाढ्य समाज कोटा से ब्राह्मण गौरव, स्व. रतन लाल व्यास शैक्षणिक संस्थान फलौदी जोधपुर द्वारा “राजस्थान साहित्य सिरोमणी” पुरस्कार एवं सम्मान रेलवे पेंशनर समाज, कोटा प्रमुख पुरुस्कारों में शामिल हैं। आपको वन पर्यावरण सेवा के लिए लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड 2012” से भी सम्मानित किया गया।
** परिचय :
स्वभाव से मिलनसार, हंसमुख और आत्मीय होने ,नवोदित युवा रचनाकारों को सदैव प्रोत्साहित करने और राजस्थानी साहित्य के विकास के प्रति निरंतर चिंतनशील जितेंद्र कुमार शर्मा ' निर्मोही ' का जन्म राजस्थान के झालावाड़ में 7 अप्रैल 1953 को पिता रमेश चन्द्र शर्मा और माता कमला देवी के आंगन में हुआ। आपने विज्ञान विषय में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की और सेवा निवृत्ति के पश्चात कोटा खुला विश्वविद्यालय से 2015 में हिंदी और 2017 में राजस्थानी भाषा में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। गर्वित होते यह कहते हुए, " जीवन में कुछ कर सका या नहीं पर श्रीमती को साहित्यकार बना दिया।" आपकी धर्मपत्नी श्यामा शर्मा ने बाल रचनाकार के रूप में पहचान बनाई है। आप विभिन्न अकादमियों और देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। आपकी रचनाएं देश के पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं और आकाशवाणी केंद्र और टीवी चैनल्स से प्रसारित होती है। आप राजस्थान सरकार के वन विभाग से सेवा निवृत हैं और आज भी साहित्य सृजन में पूर्ण सक्रिय हैं।
संपर्क :
ठ 422,आर के पुरम,
कोटा - 3240010 ( राज.)
मोबाइल - 9413007724
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा
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