कोटा संभाग के झालावाड़ ज़िले के मनोहरथाना के गांव में , जो स्कूल दुःखनातिका हुई है , उससे देश भर के संवेदनशील लोगों का कलेजा हिल गया है , लेकिन सरकार तो सरकार है , वोह ना हिलती है , ना टस से मस होती है , कुछ दिन निकलेंगे , कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे के मददगार हो जाएंगे , इस्तीफे की ,मांग , फौजदारी मुक़दमे की मांग सब मिली जुली नूरा कुश्ती में, दफन हो जायेगी , अख़बार लिखना बंद कर देंगे , शिक्षा मंत्री मदन जी दिलावर के इस्तीफे का दबाव , धरा का धरा रह जाएगा , ,, लेकिन एक अदालत उपर वाले की होती है , वहां जो सही फैसला होता है , वोह होकर ही रहता है , बस अब तो क़ुदरत के ही फैसले का इन्तिज़ार है ,,,राजस्थान में यूँ तो शिक्षा मंत्रालय , कांटो भरा ताज है , यहां , स्कूली शिक्षा को कोचिंग और प्राइवेट स्कूलों ने लीर लिया है , जबकि स्कूली शिक्षकों को चुनाव ,, जनगणना ,, सहित गैर शिक्षा कार्यों में लगाने ,, स्कूलों में ही ,, कम्प्यूटरीकृत ,, मिड डे मील सहित कई अन्य कार्यों की ज़िम्मेदारी होने ,से सरकारी शैक्षणिक व्यवस्थाएं और भटक गई हैं , ऐसे में ट्रांसफर की ज़िदों पर बैठे शिक्षकों , उनके समर्थक नेताओं ने इस विभाग को , शिक्षा मंत्री के लिए और मुसीबत बना दिया है , भाजपा सरकार में शिक्षा विभाग पाठ्यक्रमों में अपने विचार डालने के प्रयासों के तहत , स्कूली शिक्षा आम तोर पर संघ समर्थक विधायक को शिक्षा मंत्री का पद देने की परम्परा सी रही है , अफ़सोस यह है , के हर ज़िले , कस्बे ,,गांव , ढाणी में संघ की शाखाओं का विस्तार होने के बाद भी , संघ से जुड़े लोगों ने , अपने ही संघ के शिक्षा मंत्रियों से , उनके अपने ही संघ के क्षेत्रों की पाठशालाएं सुधारने की कोई कोशिशें नहीं कीं , विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस और भाजपा का तो कहना ही किया , अधिकमत जगह तो कांग्रेस और भाजपा का गठबंधन है , जनता जाए भाड़ में , तू मेरी मत कह , में तेरी नहीं कहूंगा के सिद्धांत की राजनीति है कांग्रेस के विपक्ष में रहते , भाजपा के विपक्ष में रहते , किसी भी ब्लॉक , अध्यक्ष , जिला अध्यक्ष , या पार्षद , प्रतिपक्ष विधायक , हारे हुए विधायक प्रत्याक्षी ने इस तरफ ध्यान दिया ही नहीं ,, अख़बारों की सुर्ख़ियों में भी यह शैक्षणिक समस्यायें रही ही नहीं ,,खासकर दो दिन के अवकाश लेने वाले शैक्षिक सम्मेलनों में भी किसी भी शिक्षक ने कभी इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा ही नहीं की , शिकायत ही नहीं की , सुझाव ही नहीं दिए , कोटा जैसे कोचिंग शहरों में कोचिंग में ही पढ़े कलेक्टर , एस पी लगाए जाने से , इनका रुख , कोचिंगों की तरफ ही रहा , सरकारी स्कूली शिक्षा की तरफ इन्होने कोई सोच बनाई ही नहीं ,, स्कूली शिक्षा में हर स्कूल की अभिभावक समिति होती है , हर स्कूल में , स्थानीय , पार्षद , , पंच , सरपंच से कोऑर्डिनेशन रहता है , इतना ही नहीं , हर स्कूल में पार्षद प्रतिनिधि के रूप में , सदस्य नामज़द किये जाते है लेकिन , स्कूली शिक्षा फिर भी मुर्दा है , अव्यवस्थित है , समस्याओं से घिरी है , शिक्षा मंत्री मदन दिलावर कोटा के ही हैं , बारां के भी कहे जा सकते हैं , झालावाड़ के पास स्थित सीमा से सटी विधानसभा अटरू और रामगंजमंडी के निर्वाचित प्रतिनिधि भी हैं , लेकिन उन्होंने हर व्यवस्था को , मज़हबी ऐंगल ,, कांग्रेस , भाजपा के ऐंगल से ज़्यादा और शैक्षणिक सुधार की दृष्टि से बहुत से भी बहुत कम देखा , वोह पंचायत की ज़िम्मेदारी में रहे , तो शिक्षा क्षेत्र में अपने विशेषाधिकारियों के भरोसे रहे , स्कूलों में गए तो सही , पेड़ लगवाए , शिक्षकों को निलंबित किया , पाठ्यक्रमों को रोका , लेकिन स्कूलों की जर्जर इमारतों को रोकने और स्कूलों के पास ,, मंदीरों के पास शराब की दुकाने हटाने, सड़को पर भटकती गो माता संरक्षण में इनकी कोई पहल नहीं रही ,,,,,,, खेर अभी सीधी बात , झालावाड़ में जर्जर भवन गिरने से सात निर्दोष बच्चों की मोत का मामला है , इस मामले में खुद मदन जी दिलावर ने शिक्षा मंत्री होने के नाते नैतिकता के नाम पर सारी ज़िम्मेदारी खुद पर ही ली है ,यह सियासी बयान हो सकता है , सियासी जुर्म स्वीकारोक्ति हो सकती है , लेकिन मदन दिलावर को जो व्यक्तिगत रूप से जानते हैं , वोह जानते हैं कि मदन जी सियासत कम , काम ज़्यादा करने में विश्वास रखते हैं , में खुद उन्हें , 1992 से उनके पोलोटेक्निक से पोलिटिकल कॅरियर से उन्हें नज़दीक से जानता हूँ ,पत्रकारिता के वक़्त , उनके कॅरियर , स्वभाव , आर्थिक स्थिति ,, साफ़ गोई ,, निर्भीकता ,, अपने ही लोगों से संघर्ष का जज़्बा इनका मेने खूब देखा है ,, टिकिट मिलने की ख़ुशी और टिकिट कटने के गम के हालातों से में खूब वाक़िफ़ हूँ ,, ,सहकारिता मंत्री के वक़्त , दूसरे मंत्रालय के वक़्त , यह सिफारिशों से कोसों दूर रहकर अपने ही स्टाइल में काम करते रहे हैं , पिछले कार्यकाल में , इनका , विवाद ,, तात्कालिक मुख्यमंत्री वसुंधरा सिंधिया जी से भी हुआ और यह यात्राओं में , पैरों में चोट लगने से प्लास्टर गर्म पट्टी बंधने की वजह से उन यात्राओं में शामिल नहीं हुए , घर से ही इन्होने अपने कामकाज निपटाए , अभी पांच हज़ार रूपये रिश्वत के लिफ़ाफ़े का मामला फिर पुलिस रिपोर्ट की कहानी सभी ने देखी है , तो फिर राजस्थान के शिक्षा मंत्री की हैसियत से , सक्रिय रहकर भी वोह निष्क्रिय कैसे रह गए , यह एक गंभीर चिंता का विषय है , ,इस बार तो , दैनिक भास्कर अख़बार सहित ,, सभी अख़बार , स्कूलों के टीचर्स , बच्चे वगेरा , जर्जर इमारतों के बारें में , इनसे शिकायत करते रहे हैं , दैनिक भास्कर ने तो लगातार सीरीज़ चलाई , याचना पत्र के रूप में बढे कॉलम प्रकाशित किये , फिर भी , शिक्षा मंत्री मदन दिलावर गच्चा कैसे खा गये , यह उन्हें खुद को सोचना है , बात साफ़ हैं , इस बार मदन जी दिलावर की शिक्षा क्षेत्र की टीम , उनकी वफादार और बहतर सलाहकार नहीं है , यही वजह रही है ,के इनकी अधीनस्थ टीम ने , ऐसे गंभीर मामले को संभालने के लिए कोई विशेष क़दम नहीं उठाये , इन्हे कोई तत्काल कार्य करने की सलाह नहीं दी, बस यहीं , मदन जी दिलावर गच्चा खा गए ,, और आज झालावाड़ की इस दुखांतिका के बाद उन्हें नीचा देखना पढ़ रहा है , जो भी मदन जी दिलावर को नज़दीक से जानते हैं ,,, वोह जानते है के मदन जी दिलावर , उनके इस विभाग की लापरवाही के कारण इस दुखांतिका का बोझ शायद वोह ज़्यादा दिन नहीं उठा सकें और खुद ही इस्तीफा दे दें या विभाग बदलवा लें , या इस लापरवाही की जांच करवाकर खुद के ही नज़दीकी ज़िम्मेदार स्टाफ में से , कुछ लोगों के खिलाफ कठोर से भी कठोरतम कार्यवाही कर एक सबक़ सिखाने वाला उदाहरण पेश करें , खेर आगे क्या होता है , यह अलग बात है , लेकिन अभी , तो शिक्षा विभाग को , जर्जर इमारतों की मरम्मत , बच्चों की सुरक्षा, उनकी बहतर पढ़ाई के बारे में , कोई तो जिलेवार , कस्बे वार , दलगत राजनीती से ऊपर उठ कर ,, निष्पक्ष लोगों की कमेटियां बनाकर , बहतर से बहतर कैसे किया जाए इस पर विचार करे और यह विचार करना ही चाहिए , रचनात्मक कार्य करने के लिए पहल करना ही चाहिए , ,इस्तीफा देने की परम्परा तो वैसे भी अब भाजपा में है भी नहीं , लेकिन मदन जी कुछ अलग हैं शायद वोह इस्तीफा दे भी दें, लेकिन मंत्रियों को हटाने की हिम्मत मंत्रियों से टॉप जूनियर रहे , मुख्यमंत्री किसी भी क़ीमत पर कर भी नहीं सकते ,, ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
akhtar khan akela
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)