सूरए अन नहल
सूरए अन नहल मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी एक सौ अठ्ठाइस (128) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला हैं
ऐ कुफ़्फ़ारे मक्का (ख़़ुदा का हुक्म (क़यामत गोया) आ पहुँचा तो (ऐ काफिरों बे फायदे) तुम इसकी जल्दी न मचाओ जिस चीज़ को ये लोग शरीक क़रार देते हैं उससे वह ख़ुदा पाक व पाकीज़ा और बरतर है (1)
वही अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिसके पास चाहता है ‘वहीं’देकर फ़रिश्तौं को भेजता है कि लोगों को इस बात से आगाह कर दें कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मुझी से डरते रहो (2)
उसी ने सारे आसमान और ज़मीन मसलहत व हिकमत से पैदा किए तो ये लोग जिसको उसका शरीक बनाते हैं उससे कहीं बरतर है (3)
उसने इन्सान को नुत्फे से पैदा किया फिर वह यकायक (हम ही से) खुल्लम खुल्ला झगड़ने वाला हो गया (4)
उसी ने चरपायों को भी पैदा किया कि तुम्हारे लिए ऊन (ऊन की खाल और ऊन) से जाडे़ का सामान है (5)
इसके अलावा और भी फायदें हैं और उनमें से बाज़ को तुम खाते हो और जब तुम उन्हें सिरे शाम चराई पर से लाते हो जब सवेरे ही सवेरे चराई पर ले जाते हो (6)
तो उनकी वजह से तुम्हारी रौनक़ भी है और जिन शहरों तक बग़ैर बड़ी जान ज़ोख़म में डाले बगै़र के पहुँच न सकते थे वहाँ तक ये चैपाए भी तुम्हारे बोझे भी उठा लिए फिरते हैं इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ मेहरबान है (7)
और (उसी ने) घोड़ों ख़च्चरों और गधों को (पैदा किया) ताकि तुम उन पर सवार हो और (इसमें) ज़ीनत (भी) है (8)
(उसके अलावा) और चीज़े भी पैदा करेगा जिनको तुम नहीं जानते हो और (खुश्क व तर में) सीधी राह (की हिदायत तो ख़ुदा ही के जि़म्मे हैं और बाज़ रस्ते टेढे़ हैं (9)
और अगर ख़़ुदा चाहता तो तुम सबको मजि़ले मक़सूद तक पहुँचा देता वह वही (ख़ुदा) है जिसने आसमान से पानी बरसाया जिसमें से तुम सब पीते हो और इससे दरख़्त शादाब होते हैं (10)
ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला हैं
ऐ कुफ़्फ़ारे मक्का (ख़़ुदा का हुक्म (क़यामत गोया) आ पहुँचा तो (ऐ काफिरों बे फायदे) तुम इसकी जल्दी न मचाओ जिस चीज़ को ये लोग शरीक क़रार देते हैं उससे वह ख़ुदा पाक व पाकीज़ा और बरतर है (1)
वही अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिसके पास चाहता है ‘वहीं’देकर फ़रिश्तौं को भेजता है कि लोगों को इस बात से आगाह कर दें कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मुझी से डरते रहो (2)
उसी ने सारे आसमान और ज़मीन मसलहत व हिकमत से पैदा किए तो ये लोग जिसको उसका शरीक बनाते हैं उससे कहीं बरतर है (3)
उसने इन्सान को नुत्फे से पैदा किया फिर वह यकायक (हम ही से) खुल्लम खुल्ला झगड़ने वाला हो गया (4)
उसी ने चरपायों को भी पैदा किया कि तुम्हारे लिए ऊन (ऊन की खाल और ऊन) से जाडे़ का सामान है (5)
इसके अलावा और भी फायदें हैं और उनमें से बाज़ को तुम खाते हो और जब तुम उन्हें सिरे शाम चराई पर से लाते हो जब सवेरे ही सवेरे चराई पर ले जाते हो (6)
तो उनकी वजह से तुम्हारी रौनक़ भी है और जिन शहरों तक बग़ैर बड़ी जान ज़ोख़म में डाले बगै़र के पहुँच न सकते थे वहाँ तक ये चैपाए भी तुम्हारे बोझे भी उठा लिए फिरते हैं इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ मेहरबान है (7)
और (उसी ने) घोड़ों ख़च्चरों और गधों को (पैदा किया) ताकि तुम उन पर सवार हो और (इसमें) ज़ीनत (भी) है (8)
(उसके अलावा) और चीज़े भी पैदा करेगा जिनको तुम नहीं जानते हो और (खुश्क व तर में) सीधी राह (की हिदायत तो ख़ुदा ही के जि़म्मे हैं और बाज़ रस्ते टेढे़ हैं (9)
और अगर ख़़ुदा चाहता तो तुम सबको मजि़ले मक़सूद तक पहुँचा देता वह वही (ख़ुदा) है जिसने आसमान से पानी बरसाया जिसमें से तुम सब पीते हो और इससे दरख़्त शादाब होते हैं (10)
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