एहसास के ज़ख्मों को छिपाना भी नहीं हैं
आँखों से मगर अश्क बहाना भी नहीं हैं
अल्फाज़ की हुरमत कहीं पामाल ना कर दे
तनक़ीद निगारों का ठिकाना भी नहीं हैं
हर सम्त नज़र आती है तस्वीर तुम्हारी
इस घर में कोई आइना खाना भी नहीं हैं
हासिल भी जो हो जाये तू ईमान गंवा कर
इस शर्त पे दुनिया तुझे पाना भी नहीं हैं .
दुनिया पे भरोसा सिया आये अभी कैसे
दुनिया को अभी ठीक से जाना भी नहीं हैं
सिया सचदेव

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)