नये बने टॉयलेट पर बीस दिन से ताले!
वे लोग कहां हैं?
जिनके शरीर में सिन्दूर बहता है!'
ये फोटो कोटा शहर में माणिक भवन के सामने
ये फोटो गत 19 मई को खींचे गए थे।
पिछले बीस दिन से यह टॉयलेट बनकर तैयार खड़ा है लेकिन लगता है, इसे बनाने वाली एजेंसी इसके ताले खोलना भूल गई है। ऐसे में कोटड़ी गोवर्धनपुरा से गुमानपुरा चौपाटी तक के तमाम दुकानदार और उनमें आने वाले ग्राहक लघुशंका निवृत्ति के लिए एक शापिंग माॅल को कृतार्थ कर रहे हैं।
पहले एक गली को गौरवान्वित कर रहे थे लेकिन गली में दूसरे तल्ले पर फैशन शाॅप खुल गई तो उसने लोग खड़े किए, जिन्होंने हाथ जोड़ना शुरू किया तो लोगों ने एक शापिंग माॅल में जाना शुरू कर दिया। नगर निगम के स्वनामधन्य कर्णधारों को शायद पता भी नहीं होगा कि तलब उठने पर लोग अपनी नैचर्स काल को कहां खल्लास कर रहे हैं?
कहने को यह इतना बड़ा मसला भी नहीं है कि संडास के ताले खुलवाने के लिए जनान्दोलन का आह्वान किया जाए। हां, यह हो सकता है कि नगर निगम इसके उद्घाटन के लिए किसी माननीय को ढूंढ रही हो और माननीय तैयार न हो रहे हो। सवाल पूछ रहे होंगे कि टॉयलेट का लोकार्पण करने पर लोग क्या कहेंगे? इसी कशमकश में उद्घाटन की तारीख पर तारीख पड़ती जा रही हो।
मुझे लगता है कि कोई जनप्रतिनिधि तो टॉयलेट जैसी तुच्छ चीज का लोकार्पण करने को शायद ही तैयार हो? ऐसे में नगर निगम को चाहिए कि वह अपनी सर्वश्रेष्ठ महिला सफाई कर्मचारी से इसके ताले खुलवाएं। पिंक टॉयलेट का इससे अच्छा लोकार्पण शायद दूसरा नहीं हो सकता।
इस शानदार टॉयलेट को पिंक टॉयलेट बनाया गया है यानी महिलाओं को समर्पित किया गया है। पहले यहां शहर का सबसे गन्दा मूत्रालय था लेकिन वह पूरी तरह पुरूषों को समर्पित था। अब सवाल यह है कि वे सारे मर्द अब कहां खल्लास होंगे? एक तरफ शहर दिनदुना, रात चौगुना बढ़ता जा रहा है, जनसंख्या बढ़ती जा रही है और हमारे नगर निगम के कर्ताधर्ता आधी आबादी ( पुरूष वर्ग ) से उसको पहले से मिल रही जन सुविधाएं छीन रहे हैं। नगर निगम को बताना चाहिए कि शहर के मर्द अब कहां जाएंगे?

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