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15 मई 2025

(ऐ ईमानदारों खुदा और उसके रसूल की इताअत करो और उससे मुँह न मोड़ो जब तुम समझ रहे हो

 ये वह वक़्त था जब अपनी तरफ से इत्मिनान देने के लिए तुम पर नींद को ग़ालिब कर रहा था और तुम पर आसमान से पानी बरस रहा था ताकि उससे तुम्हें पाक (पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दूर कर दे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे और पानी से (बालू जम जाए) और तुम्हारे क़दम ब क़दम (अच्छी तरह) जमाए रहे (11)
(ऐ रसूल ये वह वक़्त था) जब तुम्हारा परवरदिगार फरिश्तों से फरमा रहा था कि मै यकीनन तुम्हारे साथ हूँ तुम ईमानदारों को साबित क़दम रखो मै बहुत जल्द काफिरों के दिलों में (तुम्हारा रौब) डाल दूँगा (पस फिर क्या है अब) तो उन कुफ्फार की गर्दनों पर मारो और उनकी पोर पोर को चटिया कर दो (12)
ये (सज़ा) इसलिए है कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालिफ की और जो शख़्स (भी) ख़़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालफ़त करेगा तो (याद रहें कि) ख़़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब करने वाला है (13)
(काफिरों दुनिया में तो) लो फिर उस (सज़ा का चखो और (फिर आखि़र में तो) काफिरों के वास्ते जहन्नुम का अज़ाब ही है (14)
ऐ ईमानदारों जब तुमसे कुफ़्फ़ार से मैदाने जंग में मुक़ाबला हुआ तो (ख़बरदार) उनकी तरफ पीठ न करना (15)
(याद रहे कि) उस शख़्स के सिवा जो लड़ाई वास्ते कतराए या किसी जमाअत के पास (जाकर) मौके़ पाए (और) जो शख़्स भी उस दिन उन कुफ़्फ़ार की तरफ पीठ फेरेगा वह यक़ीनी (हिर फिर के) ख़ुदा के ग़जब में आ गया और उसका ठिकाना जहन्नुम ही हैं और वह क्या बुरा ठिकाना है (16)
और (मुसलमानों) उन कुफ़्फ़ार को कुछ तुमने तो क़त्ल किया नही बल्कि उनको तो ख़़ुदा ने क़त्ल किया और (ऐ रसूल) जब तुमने तीर मारा तो कुछ तुमने नही मारा बल्कि ख़़ुद ख़़ुदा ने तीर मारा और ताकि अपनी तरफ से मोमिनीन पर खूब एहसान करे बेशक ख़ुदा (सबकी) सुनता और (सब कुछ) जानता है (17)
ये तो ये ख़ुदा तो काफिरों की मक्कारी का कमज़ोर कर देने वाला है (18)
(काफि़र) अगर तुम ये चाहते हो (कि जो हक़ पर हो उसकी) फ़तेह हो (मुसलमानों की) फ़तेह भी तुम्हारे सामने आ मौजूद हुयी अब क्या गु़रूर बाक़ी है और अगर तुम (अब भी मुख़तलिफ़ इस्लाम) से बाज़ रहो तो तुम्हारे वास्ते बेहतर है और अगर कहीं तुम पलट पड़े तो (याद रहे) हम भी पलट पड़ेगें (और तुम्हें तबाह कर छोड़ देगें) और तुम्हारी जमाअत अगरचे बहुत ज़्यादा भी हो हरगिज़ कुछ काम न आएगी और ख़़ुदा तो यक़ीनी मामिनीन के साथ है (19)
(ऐ ईमानदारों खुदा और उसके रसूल की इताअत करो और उससे मुँह न मोड़ो जब तुम समझ रहे हो (20)

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