क्या वह लोग ख़़ुदा का शरीक ऐसों को बनाते हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह ख़ुद (ख़़ुदा के) पैदा किए हुए हैं (191)
और न उनकी मदद की कुदरत रखते हैं और न आप अपनी मदद कर सकते हैं (192)
और अगर तुम उन्हें हिदायत की तरफ बुलाओंगे भी तो ये तुम्हारी पैरवी नहीं
करने के तुम्हारे वास्ते बराबर है ख़्वाह (चाहे) तुम उनको बुलाओ या तुम
चुपचाप बैठे रहो (193)
बेशक वह लोग जिनकी तुम ख़़ुदा को छोड़कर हाजत करते हो वह (भी) तुम्हारी
तरह (ख़ुदा के) बन्दे हैं भला तुम उन्हें पुकार के देखो तो अगर तुम सच्चे
हो तो वह तुम्हारी कुछ सुन लें (194)
क्या उनके ऐसे पाव भी हैं जिनसे चल सकें या उनके ऐसे हाथ भी हैं जिनसे
(किसी चीज़ को) पकड़ सके या उनकी ऐसी आँखे भी है जिनसे देख सकें या उनके
ऐसे कान हैं जिनसे सुन सकें (ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि तुम अपने बनाए
हुए शरीको को बुलाओ फिर सब मिलकर मुझ पर दाव चले फिर (मुझे) मोहलत न दो
(195)
(फिर देखो मेरा क्या बना सकते हो) बेषक मेरा मालिक व मुमताज़ तो बस ख़ुदा
है जिस ने किताब क़ुरान को नाजि़ल फरमाया और वही (अपने) नेक बन्दों का
हाली (मददगार) है (196)
और वह लोग (बुत) जिन्हें तुम ख़ुदा के सिवा (अपनी मदद को) पुकारते हो न
तो वह तुम्हारी मदद की कुदरत रखते हैं और न ही अपनी मदद कर सकते हैं (197)
और अगर उन्हें हिदायत की तरफ बुलाएगा भी तो ये सुन ही नहीं सकते और तू तो
समझता है कि वह तुझे (आँखें खोले) देख रहे हैं हालाकि वह देखते नहीं
(198)
(ऐ रसूल) तुम दरगुज़र करना एख़्तियार करो और अच्छे काम का हुक्म दो और जाहिलों की तरफ से मुह फेर लो (199)
अगर शैतान की तरफ से तुम्हारी (उम्मत के) दिल में किसी तरह का (वसवसा
(शक) पैदा हो तो ख़ुदा से पनाह मागों (क्यूंकि) उसमें तो शक ही नहीं कि वह
बड़ा सुनने वाला वाकि़फकार है (200)
बेषक लोग परहेज़गार हैं जब भी उन्हें शैतान का ख़्याल छू भी गया तो चैक पड़ते हैं फिर फौरन उनकी आँखें खुल जाती हैं (201)
उन काफिरों के भाई बन्द शैतान उनको (धर पकड़) गुमराही के तरफ घसीटे जाते हैं फिर किसी तरह की कोताही (भी) नहीं करते (202)
और जब तुम उनके पास कोई (ख़ास) मौजिज़ा नहीं लाते तो कहते हैं कि तुमने
उसे क्यों नहीं बना लिया (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै तो बस इसी वही का पाबन्द
हूँ जो मेरे परवरदिगार की तरफ से मेरे पास आती है ये (क़ुरान) तुम्हारे
परवरदिगार की तरफ से (हक़ीकत) की दलीलें हैं (203)
और इमानदार लोगों के वास्ते हिदायत और रहमत हैं (लोगों) जब क़ुरान पढ़ा
जाए तो कान लगाकर सुनो और चुपचाप रहो ताकि (इसी बहाने) तुम पर रहम किया जाए
(204)
और अपने परवरदिगार को अपने जी ही में गिड़गिड़ा के और डर के और बहुत चीख़
के नहीं (धीमी) आवाज़ से सुबह व श्याम याद किया करो और (उसकी याद से)
ग़ाफिल बिल्कुल न हो जाओ (205)
बेषक जो लोग (फरिशते बग़ैरह) तुम्हारे परवरदिगार के पास मुक़र्रिब हैं और
वह उसकी इबादत से सर कशी नही करते और उनकी तसबीह करते हैं और उसका सजदा
करते हैं (206) सजदा
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
13 मई 2025
और जब तुम उनके पास कोई (ख़ास) मौजिज़ा नहीं लाते तो कहते हैं कि तुमने उसे क्यों नहीं बना लिया (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै तो बस इसी वही का पाबन्द हूँ जो मेरे परवरदिगार की तरफ से मेरे पास आती है ये (क़ुरान) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (हक़ीकत) की दलीलें हैं
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