प्रश्न 1:पत्रकारिता के सिद्धांतों के अनुसार, ऐसी खबर को अखबार के प्रथम पृष्ठ पर प्रथम लीड में दिखाया जाना चाहिए था। लेकिन आज देखिए, यह खबर सिर्फ एक कोने में, छोटी-सी जगह में क्यों छपी है?
अख्तर खान अकेला
का जवाब:
"यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे सरकार अपने मीडिया प्रबंधन के माध्यम से खबरों की प्राथमिकता तय करती है। जब कोई खबर सत्ता के खिलाफ़ जाती है या सरकार की छवि को नुकसान पहुँचाने का दावाँ करती है, तो उसे जानबूझकर दबाया या सीमित जगह पर छाप दिया जाता है। यहां भी वही खेल चल रहा है – जब विधायक सुभाष गर्ग ने अधिकारियों पर आरोप लगाए और सरकार की छवि खराब करने का मुद्दा उठाया, तो इसकी गंभीरता को कम करके दिखाया गया।"
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प्रश्न 2:
राजस्थान विधानसभा में विधायक सुभाष गर्ग द्वारा विषेशाधिकार प्रस्ताव लाया गया है। क्या उनके आरोपों में वजन है, और क्या यह तरीका पत्रकारिता में भी झलकता है?
अख्तर खान अकेला का जवाब:
"जब सत्ता अपने विरोधी आवाजों को दबाने की कोशिश करती है, तो कभी-कभी ऐसी घटनाएं सामने आ जाती हैं जहाँ आरोपों की सच्चाई पर प्रश्न उठे बिना उन्हें छिपाया जाता है। विधायक सुभाष गर्ग का मामला हमें यही संदेश देता है – यदि सत्ता को नुकसान पहुँचाने वाले आरोप सही हैं, तो उन्हें दबाने के बजाय खुलकर सामने लाना चाहिए। इसी तरह, पत्रकारिता में भी जब खबरों को छुपाया जाता है, तो जनता को सही जानकारी नहीं मिल पाती।"
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प्रश्न 3:
वहीं दूसरी ओर, भाजपा विधायक अजय सिंह क्लिक ने नागौर पुलिस अधीक्षक और उनके कार्यकर्ताओं पर ‘दुर्भावना’ की बात उठाई। इस संदर्भ में उनकी बातों का क्या महत्व है?
अख्तर खान अकेला का जवाब:
"यह बात दर्शाती है कि जब एक ही राजनीतिक दल के अंदर भी मतभेद और विरोधाभास देखने को मिलते हैं, तो सवाल उठता है कि पुलिस या प्रशासनिक तंत्र भी राजनीतिक प्रभाव से मुक्त है या नहीं। अजय सिंह क्लिक का आरोप, खासकर तब जब विशेषाधिकार प्रस्ताव की कोई पहल नहीं की जा रही, हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या इन आरोपों में कुछ सच्चाई छिपी है। यह एक इशारा है कि प्रशासनिक अंगों में भी पक्षपात की संभावना मौजूद है।"
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प्रश्न 4:
जयपुर विधानसभा में कांग्रेस विधायक श्रवण कुमार ने अपने ही पूर्व मंत्री पर तंज कसते हुए अपशब्दों का प्रयोग किया। क्या इससे भी मीडिया में खबरों की सटीकता और निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं?
अख्तर खान अकेला का जवाब:
"यह घटना दर्शाती है कि राजनीतिक मैदान में हर मुद्दे पर आग लग जाती है। जब अंदर ही अंदर दल के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ शब्दों का आदान-प्रदान करते हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या असली मुद्दा जनता तक पहुँच रहा है या फिर दलों के आपसी झगड़ों को ही प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में पत्रकारिता का एक कर्तव्य बनता है कि वह इन घटनाओं का निष्पक्ष विश्लेषण करे, बजाय इसके कि सिर्फ कहानियों को दबाया जाए या कुछ को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाए।"
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प्रश्न 5:
इन सभी घटनाओं से क्या सीख मिलती है, और हमें मीडिया तथा प्रशासन के इस प्रबंधन से क्या उम्मीद करनी चाहिए?
अख्तर खान अकेला का जवाब:
"सबसे बड़ी सीख यह है कि लोकतंत्र में खबरों का आदान-प्रदान तभी संभव है जब मीडिया और प्रशासन दोनों ही निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखें। जनता को सच्चाई तक पहुँचाने के लिए सवाल उठाने होंगे और उसके पीछे छिपे हितों को उजागर करना होगा। हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसे मामलों में विधानसभा अध्यक्ष तथा संबंधित प्रशासनिक अधिकारी सख्त, निष्पक्ष और न्यायसंगत कदम उठाएं – ताकि न सिर्फ राजनीतिक दलों के अंदर की गलतियों को सुलझाया जा सके, बल्कि मीडिया को भी वह स्वतंत्रता मिले जिससे वह निर्भीकता से काम कर सके।"
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इस प्रकार अखंड टाइम के मंच से यही संदेश है – 'मैनेजमेंट ऑफ जर्नलिज्म' का खेल जितना भी गहराई से खेला जाए, जनता को सच्चाई तक पहुँचने का अधिकार हमेशा बरकरार रहना चाहिए।
Arun Unfiltered
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