राजस्थान के साहित्य साधक" पुस्तक का कोटा ग्रामीण पुलिस अधीक्षक सुजीत शंकर करेंगे 10 मार्च को विमोचन
पुस्तक का रिस्पॉन्स रचनाकारों और पाठकों के समन्वयक सहयोग पर निर्भर
( पुस्तक पर एडवोकेट अख्तर खान अकेला का लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल से साक्षात्कार )
राजस्थान के और प्रवासी साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान को ले कर, साहित्यिक समन्वयक ,, विख्यात लेखक डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल द्वारा ,, लिखी है पुस्तक " राजस्थान के साहित्य साधक " का विमोचन कोटा जिले के ग्रामीण पुलिस अधीक्षक सुजीत शंकर सोमवार 10 मार्च को साहित्यिक गतिविधियों के शीर्ष लेखक और प्रशंसकों के बीच करेंगे। पुस्तक पर चर्चा के दौरान यह जानकारी लेखक डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल ने दी। डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल से जब पूछा गया कि इस पुस्तक को आने में इतना विलंब क्यों हुआ तो संकुचाते हुए , मुस्कुराते हुए , उनका उत्तर था कि कुछ आर्थिक परेशानियां थी उन्हें दूर किया गया । लेखक डॉक्टर सिंघल कहते है देर आयद दुरुस्त आयद,,, वोह कहते हैं पुस्तक आ गई है और अब तुरंत दान महाकल्याण की तर्ज पर लोकार्पण भी सोमवार 10 मार्च को होने जा रहा है। डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल से जब पूंछा गया कि आपने साहित्यिक मामलों की प्रकाशित इस पुस्तक में पुलिस अधीक्षक महोदय को मुख्य अतिथि बनाया है इसके पीछे क्या मंतव्य रहा है , ? डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल फिर मुस्कुराये , उन्होंने जवाब दिया आपको तो ज्ञात है कि मेरे पिता पुलिस विभाग में कर्तव्यनिष्ठ उप अधीक्षक रहे थे और मैंने पुलिस विषय पर ही डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है । पहले भी मेरी कई किताबों का विमोचन पुलिस विभाग को कोटा स्थित डी आईं जी,, आई जी और एस पी साहब द्वारा किया जा चुका है। कल रात सपने में पिताजी आए और बोले बेटे तू तो पुलिस को भूल ही गया। पहले तो पुलिस अधिकारियों के पास जाता था किताब का विमोचन करवाता था, मुझे बड़ी शांति मिलती थी। बस यही मुख्य वजह रही कि ,,इस नई किताब का लोकार्पण पुलिस अधीक्षक महोदय से करवा रहा हूं। सुबह होते ही मैंने मित्र के. डी. अब्बासी से चर्चा की तो हम दोनों एस पी साहब से भेंट करने चले गए। एसपी सुबीर सहज, सरल, मृदु व्यवहार के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं। उन्हें जब अपना पुलिस परिवार के होने का बैक ग्राउंड भी बताया तो उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी। इस किताब के प्रकाशन का खर्च आपने कैसे मैनेज किया के मेरे इस प्रश्न पर उन्होंने बताया कि कुछ राशि तो पुस्तक में शामिल रचनाकारों से अंश सहयोग से प्राप्त हुई। यह राशि इतनी कम थी कि पुस्तक का प्रकाशन संभव नहीं था। इस बीच कई प्रकार के सुझाव आए। खैर मैंने अपने परिचितों से जब प्रकाशन स्थगित करने की बात कही तो उन्होंने मेरा हौंसला बढ़ाते हुए अपनी ओर से सहयोग के लिए आश्वस्त किया। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा मुंबई की श्रीमती किरण खेरुखा , ओडिशा के दिनेश कुमार माली, कोलकाता के राजेंद्र केडिया, कोटा के रामेश्वर शर्मा ' रामू भैया ' और डॉ. अपर्णा पाण्डेय का जिन्होंने प्रकाशन के लिए भरपूर आर्थिक सहयोग प्रदान किया, और परिणाम स्वरूप पुस्तक अंततोगत्वा प्रकाशित हुई। लेखक डॉक्टर प्रभात सिंघल से मेरा अगला प्रश्न था कुछ इस किताब के बारे में बताएं किस प्रकार की किताब है। उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि वैसे तो मूलतः यह पुस्तक राजस्थान के साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान पर लिखी गई है , परन्तु जब इसके तथ्यों को देखते हैं तो इसका राष्ट्रीय स्वरूप दिखाई देता है। इस किताब में राजस्थान के प्रवासी साहित्यकार मुंबई की लोकगीतों और लोक साहित्य से जुड़ी किरण खेरुखा हैं तो ओडिशा राज्य में निवास करने वाले प्रसिद्ध समालोचक दिनेश कुमार माली हैं, कोलकाता के ऐसे साहित्यकार जिन्होंने 65 वर्ष में लेखन शुरू कर साहित्य जगत में विशेष स्थान बना लिया राजेंद्र केडिया, कोलकाता की ही नारी विमर्श की प्रसिद्ध साहित्यकार कुसुम खेमानी, रतलाम में अजहर हाशमी, मुंबई में युवा साहित्यकार ओम नागर, कानपुर में राजेंद्र राव , भोपाल में डॉ. विकास दवे, रमाकांत उद्भ्रांत, डॉ. रति सक्सेना, ऋतु भटनागर आदि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार पुस्तक को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करती है। वे बताते हैं कि अजमेर संभाग से डॉ. संदीप अवस्थी, डॉ.अखिलेश पारलिया, डॉ. मधु खंडेलवाल' मधुर ' शिखा अग्रवाल हैं। जयपुर संभाग से वेद व्यास, नंद भारद्वाज ,इकराम राजस्थानी, डॉ. मंजुला सक्सेना आदि हैं। जोधपुर संभाग से फारुख आफरीदी और डॉ.गजेसिंह राजपुरोहित हैं। बीकानेर संभाग से जय प्रकाश पांड्या ज्योतिपुंज, डॉ.नीरज दइया, बीकानेर, प्रभात गोस्वामी और राजेन्द्र पी. जोशी हैं। उदयपुर संभाग से डॉ. विमला भंडारी,,बी. एल. आच्छा,, डॉ. चंद्रकांता बंसल,,डॉ. मधु अग्रवाल, मधु माहेश्वरी,प्रो. डाॅ . मंजु चतुर्वेदी, मीनाक्षी पंवार ' मीशांत, रागिनी प्रसाद जैसे साहित्यकार है। लेखक ने कहा कि यह दुख की बात है कि पुस्तक प्रकाशन के दौरान डॉ. महेंद्र भानावत और डॉ. इन्द्र प्रकाश श्रीमाली का निधन हो गया। मैं इन दोनों के पति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूं। भरतपुर संभाग से डॉ. इन्दु शेखर ' तत्पुरुष'डॉ. पुरुषोत्तम 'यक़ीन "सीकर संभाग से बाल मुकुंद ओझा, श्याम महर्षि, रतनगढ़ और हनुमानगढ़ से दीनदयाल शर्मा हैं। पुस्तक की इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर सिंघल कहते हैं कि कोटा संभाग से भी जितेंद्र निर्मोही, रामेश्वर शर्मा रामू भैया, डॉ.अपर्णा पांडेय, डॉ.अतुल चतुर्वेदी, विजय जोशी, अतुल कनक,भगवत सिंह जादौन ' मयंक', सी.एल.सांखला, हेमराज सिंह 'हेम ', काली चरण राजपूत ,किशन प्रणय,डॉ. कृष्णा कुमारी ,मोहन शर्मा, डॉ.प्रीति मीना, रघुनंदन हटीला ''रघु', राम स्वरूप मूंदड़ा, रश्मि गर्ग, श्यामा शर्मा, डॉ. वैदेही गौतम और विश्वामित्र दाधीच भी अपने साहित्यिक अवदान के साथ नज़र आएंगे। पुस्तक की भूमिका के बारे में जब उनसे पूंछा गया तो उन्होंने बताया मुझे सभी साहित्यकार एक से बढ़ कर एक लगे। अनेक साहित्यकारों ने राष्ट्रीय और यहां तक कि विश्वस्तरीय पहचान भी बनाई है। साहित्य की कोई विधा ऐसी नहीं है जिस पर राजस्थान के साहित्यकार सक्रिय नहीं हो। इन सब बातों को भूमिका के लेखक कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने शिद्दत से उभारा है। डॉक्टर सिंघल ने कहा कि विजय जोशी द्वारा लिखी भूमिका को मैं पुस्तक की आत्मा कह सकता हूं, उन्होंने कहा कि में । बताना चाहूंगा कि पुस्तक के आकृषक आवरण पृष्ठ की परिकल्पना भी विजय जोशी ने की है जो स्वयं चित्रकार भी हैं। उनसे जब पूंछा गया कि आपको इस पुस्तक से क्या आशाएं हैं तो उन्होंने वही शांत स्वभाव से मुस्कुराते हुए कहा कि लेखक तो उम्मीद ही कर सकता है । अच्छा रेस्पॉन्स के सवाल का जवाब तो मैं रचनाकारों और पाठकों पर ही छोड़ता हूं।
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