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24 फ़रवरी 2025

निश्चित तोर पर एडवोकेट एक्ट में संशोधन ज़रूरी है , लेकिन वकीलों को बंधुआ मज़दूर , हुकम का गुलाम बनाने के लिए नहीं , ज़िम्मेदार और ईमानदार बनाने के लिए ,संशोधन होना चाहिए, यूँ एडवोकेट एक्ट में सभी तरह के प्रावधान हैं

 

निश्चित तोर पर एडवोकेट एक्ट में संशोधन ज़रूरी है , लेकिन वकीलों को बंधुआ मज़दूर , हुकम का गुलाम बनाने के लिए नहीं , ज़िम्मेदार और ईमानदार बनाने के लिए ,संशोधन होना चाहिए, यूँ एडवोकेट एक्ट में सभी तरह के प्रावधान हैं , जूनियर , सीनियर की सीमा रेखा है , तो मुफ्त में कुछ मुक़दमे लड़ने की भी बंदिशें है , ,लेकिन कोई पढ़े तो सही , खेर मंत्री है , संतरी है , प्रशासनिक अधिकारी , हाईकोर्ट जज , जज , सुप्रीमकोर्ट के जज , खुद बार कौंसिल के पदाधिकारी सियासत के ऊँचे ओहदों पर , पार्टी से जुड़कर आ गए है , तो फिर यह मुगालते भरे जुमले , संशोधन तो आना ही हैं , ,, खेर देश सहमत है , के वकील समुदाय जिसने देश को आज़ादी का संघर्ष कर आज़ाद कराया , उसे चुस्त , दुरुस्त करने के लिए बेहतर से बेहतर होना ही चाहिए , इसके लिए सबसे पहले तो , देश भर की अदालतों में वकीलों को , कोर्ट में इंफ़्रा स्ट्रक्चर ,, लाइब्रेरी की ज़रूरत है , जो कहीं भी सरकार द्वारा उपलब्ध नहीं करवाई गई है , वोह बात अलग है , हाईकोर्ट , सुप्रीमकोर्ट ने कई बार निर्देश भी दिए है , लेकिन सरकार तो सरकार है , विदेशी वकीलों को देश में घुसाना चाहती है , ,देश में कई वकील ऐसे है , जो मात्र सदस्य बनकर अपने दूसरे व्यवसाय में लगे हुए हैं , और देश भर में जिला स्तरीय बार एसोसिएशन , बार कॉंसिल्स के चुनाव में स्लीपर वोट के नाम से , ,निर्वाचन का गणित बिगाड़ते है , ,,ऐसे में ज़रूरी है , के, जो नियमित अदालत में प्रेक्टिस कर रहे हैं , वही वकील अदालतों में प्रवेश करे , वही वकील बार कौंसिल , बार एसोसिएशन के चुनाव में हिस्सेदारी दिखाएं , उन्हें ही सही एक्टिव नियमित न्यायालयों में उपस्थित वकीलों में से सही नेतृत्व चुनने का अधिकार हो , सभी जानते है , के हर ज़िले में स्लीपर वोट जो सिर्फ फीस जमा कराकर , कभी कभार किसी वार्षिक सभा , भोजन प्रसादम के वक़्त नज़र आते है , लेकिन उन्हें न्यायालय परिसर में कोनसी अदालत कहाँ है इसकी जानकारी भी नहीं है ,, संशोधन होना चाहिए , के न्यायिक अधिकारी के पूर्व तीन साल का वकालत का नियमित उपस्थिति वाला अनुभव हो , तभी वोह न्यायिक अधिकारी की परीक्षा देने का हक़दार होगा , ऐसा हुआ तो फिर वकीलों के अनुभव के आधार पर फैसले होंगे , पूर्व प्रशिक्षित जानकारी भी साथ होगी , ,संशोधन करना है , तो वकीलों की संस्था के निर्वाचन नियमों में कीजिये ,, जिसमे सिर्फ नियमित उपस्थिति वकील साथियों में से ही , वोटिंग अधिकार के साथ नियमित वकील साथी को निर्वाचन का अधिकार रहे ,, बाहरी स्लीपर वोटर्स जो सिर्फ वोटिंग के ही दिन आते हैं , उन्हें रोका जाए , चाहे गुप्त जांच सरकारी एजेंसी के ज़रिये ,,करवाई जाए , वकील साथियों का एक रजिस्टर भी हो , जिसमे वकीलों की उपस्थिति आने का समय भी निर्धारित हो जाए , आकस्मिक आवश्यकतानुसार दूसरे ज़िले , राज्य में अगर वोह उपस्थित है तो उसे छूट दी जाए , बीमारी , घरेलू ज़रूरत के काम काज के लिए भी आवश्यकतानुसार उसे छूट दी जाए , बार कौंसिल के चुनाव , निर्धारित समयावधि पर सुनिश्चित हर हाल में हों ,ऐसा क़ानून बने , प्रिफरेंस की वोटिंग व्यवस्था खत्म हो , सीधे वोट हों , जिसके ज़्यादा वोट हो , फिर उससे कम हों , ऐसे संख्या के अनुसार उनका निर्वाचन हों , बार कौंसिल में सीटें बढ़ाई जाएँ ,, एक व्यक्ति प्रिफरेंस के आधार पर नहीं सिर्फ एक ही वोट डालने के लिए अधिकृत हो , और उसी हिसाब से गिनती की जाकर निर्वाचन आरोही क्रम से वोट लाने वाले प्रत्याक्षियों का हो जाए , ,बार कौंसिल चुनाव ,. बार एसोसिएशन चुनाव में जो भी प्रत्याक्षी हों , उनके निर्वाचन के बाद , ऐसा प्रतिबंध लगाया जाए , के वोह ,पद पर रहते हुए , या पद से हटने के एक साल बाद तक , राजकीय अधिवक्ता ,, महाधिवक्ता , अतिरिक्त महाधिवक्ता , पब्लिक प्रोसिक्यूटर ,, हायकोर्ट जज ,, राज्य सभा सदस्य , विधान परिषद सदस्य नहीं बन सकेगा , कोई लोकसभा , विधानसभा का भी चुनाव किसी पार्टी से नहीं लड़ सकेगा , ,यह जो पार्टी विचारधारा के नाम पर ,, वकीलों के बटवारे के प्रकोष्ठ है , विभाग है , कास्ट , धर्म के आधार पर भी कुछेक वकीलों के संगठन बने है , उन पर सख्ती होना चाहिए हर हाल में ऐसे लोग जो बार कौंसिल की स्वायत्ता को भग्न करते हुए , ऐसे सियासी पार्टियों के संघटन , वगेरा से जुड़ते हैं , उनके विरुद्ध कार्यवाही का सख्त अधिकार बार कौंसिल के पास रहे , न्यायिक विभाग से जुड़े लोगों की सेवानिवृत्ति के बाद , उनको वकालत का लाइसेंस देते वक़्त देखा जाए के इनका रवय्या निजी तोर पर वकीलों की स्वायत्ता ,,उनके लिए बने , विधि नियम के विपरीत तो नहीं रहा है , ,आपराधिक प्रवृत्ति से जुड़े लोगों की समीक्षा ज़रूरी है , आकस्मिक , पारिवारिक ,सम्पत्ति से उपजे विवादों को इनसे अलग रखा जाए , ,, प्रत्येक जिला बार एसोसिएशन पर पाबंदी हो के वोह साल में दो बार कम से कम , किसी ना किसी न्यायिक बिंदु पर , एक बढ़ी कार्यशाला का आयोजन रखेंगे , जबकि बार कौंसिल को, नेशनल बार कौंसिल पर भी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी वृहद स्तरीय कार्यशालाएं वकीलों की गुणवत्ता ,,विधिक ज्ञान वृद्धि के लिए करवाने की ज़िम्मेदारी आवश्यक रूप से हो ,, यूँ भी वकील साथी अपने जीवन में कई मामले मुफ्त में लड़ते हैं , यह सभी जानते है , पक्षकार से फीस निर्धारण , और फीस वसूली का नियम हो , पेनल लायर्स ,अन्य नियुक्तियों में सियासत से अलग हटकर गुणवत्ता के आधार पर नियुक्तियों के प्रावधान हो जाए , तो बात बन जाए , वकील कहने को तो कोर्ट ऑफिसर होता है , लेकिन उसकी सुनवाई उस तरह नहीं होती , ऐसे में , हर अदालत में , इजलास में ,, सी सी टी वी कैमरे लगाए जाए , ऑर्डर शीट का डिस्प्ले हो , आवश्यकता पढ़ने पर , सी सी टी वी कैमरे की सी डी देने का प्रावधान हो , ताकि वकीलों की उपस्थिति , उनकी बहस , फ़ाइल की बहस में है , या निर्णय में इसका रिकॉर्ड , रहे और कोई तकरार भी हो तो सच्चाई सामने रहे , अदालतों में एक वक़्त में एक ही काम किया जाए , यह सुनिश्चित किया जाये , बयानों के वक़्त जो प्रक्रिया निर्धारित है , जिसमे गवाह के वक़्त न्यायिक अधिकारी खुद अपनी भाषा में , गवाह की भाव भंगिमा की टिप्पणी के साथ लिखवाएंगे , इसकी भी पालना सुनिश्चित हो , विडिओ कॉन्फ्रेंसिग नियमों में वकील साथियों द्वारा दूसरे ज़िलों की अदालतों में जिरह और बहस करने का भी प्रावधान रखा जाए , और भी बहुत कुछ है जिस पर चिंतन , मंथन करके , वकीलों की पढ़ाई , व्यवसायिक संवर्धन , कौशल ज्ञान , ,,आमोद , प्रमोद और आवश्यकता पढ़ने पर आर्थिक मदद , स्टाइफंड , पेंशन ,, इलाज की स्कीम सरकार द्वारा अनुदान देकर शुरू की जाए , क्योंकि अब तक जो भी है ,वोह वकील साथियों की आपसी जमा पूंजी से ही होता है , इसमें सरकार को भी हर साल के बजट में , मात्र न्यायिक व्यवस्था देने के लिए पृथक से कई करोड़ रूपये का बजट स्वीकृत कर राशि जमा करवाना चाहिये , अगर ऐसा सरकार करे , तो उसे अधिकार है उसका एक प्रतिनिधि इस राशि के खर्च , उपयोग के नियंत्रण में अन्य निर्वाचित वकील साथियों के प्रतिनिधि के साथ नियुक्त किया जाए , लेकिन सरकार का कोई योगदान नहीं और बस दो कुछ मत , नियन्त्रण करने के लिए आ जाओ , तो यह अंग्रेजी निति हरगिज़ हरगिज़ वकीलों के खिलाफ सरकार की नहीं चलना चाहिए , किसी भी तरह का कोई भी डॉक्यूमेंट उसकी तहरीर तब तक मान्य नहीं कि जाए जब तक उस डॉक्यूमेंट पर प्रारूपकर्ता के रूप में किसी वकील के हस्ताक्षर, एनरोलमेंट नम्बर ना हो, ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

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