ज़िंदगी तू ने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं
तेरे दामन में मिरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं
आप इन हाथों की चाहें तो तलाशी ले लें
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
हम ने देखा है कई ऐसे ख़ुदाओं को यहाँ
या ख़ुदा अब के ये किस रंग में आई है बहार
ज़र्द ही ज़र्द है पेड़ों पे हरा कुछ भी नहीं
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं
राजेश रेड्डी
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