97 सूरए अल क़द्र
सूरए अल क़द्र मक्का या मदीना में नाजि़ल हुआ और इसकी पाँच (5) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
हमने (इस कु़रान) को शबे क़द्र में नाजि़ल (करना शुरू) किया (1)
और तुमको क्या मालूम शबे क़द्र क्या है (2)
शबे क़द्र (मरतबा और अमल में) हज़ार महीनो से बेहतर है (3)
इस (रात) में फ़रिश्ते और जिबरील (साल भर की) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार के हुक्म से नाजि़ल होते हैं (4)
ये रात सुबह के तुलूअ होने तक (अज़सरतापा) सलामती है (5)
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
हमने (इस कु़रान) को शबे क़द्र में नाजि़ल (करना शुरू) किया (1)
और तुमको क्या मालूम शबे क़द्र क्या है (2)
शबे क़द्र (मरतबा और अमल में) हज़ार महीनो से बेहतर है (3)
इस (रात) में फ़रिश्ते और जिबरील (साल भर की) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार के हुक्म से नाजि़ल होते हैं (4)
ये रात सुबह के तुलूअ होने तक (अज़सरतापा) सलामती है (5)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)