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17 नवंबर 2024

एक तेरा इशारा नहीं है*..पुस्तक की समीक्षा.

 

एक तेरा इशारा नहीं है*..पुस्तक की समीक्षा.
लेखक.....वेद प्रकाश "परकाश".
समीक्षक....दिनेश गौतम.
वेद प्रकाश जी की पुस्तक पढ़ कर पाया, आधा जीवन संगीत में बिताने के बाद, गृहस्थी चलाने के लिए अपना काम धंधा शुरू किया, ग़ज़लें सुनना बहुत पसंद था लेकिन ग़ज़लों का अर्थ नहीं समझते थे, जिस इलाके मक़बरा में यह रहते हैं वहाँ शायरों का जमावड़ा है, धीरे-धीरे ऐसी लत लगी, आज नाम चीन शायरो में गिनती होने लगी. संगीत के शौकीन वेद प्रकाश जी सितार वादन व अन्य वाद्य यंत्रों में पारंगत हैं. ग़ज़ल की एक पुस्तक प्रकाशित हुई है, जिसमें 68 ग़ज़लें हैं.
ग़ज़ल एक काव्यात्मक रूप है जिसमें तुकांत दोहे होते हैं जो आमतौर पर उर्दू या फ़ारसी में होते हैं, जिन्हें संगीत के साथ साथ गया जाता है, ग़ज़ल एक ही बह्र और वजन के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है, इसके पहले शेर को मतला कहते हैं और ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता. हिंदी के अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपनाया. वेद प्रकाश जी की ग़ज़लों में यह सब देखने को मिलता है. हिंदी के रचनाकार जैसे निराला, शमशेर, बलबीर सिंह रंग आदि ने बख़ूबी लिखा. इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्धी दुष्यंत कुमार को मिली, जिन्होंने विभिन्न विषयों को चुनकर ग़ज़लें लिखी, वैसे देखा जाए तो ग़ज़ल का मतलब महबूब का महबूबा से वार्तालाप करना है, समय के साथ- साथ ग़ज़ल तमाम विषयों पर लिखी गई. ग़ज़ल को उसके पूर्व गौरव पर पुनर्जीवित करने का श्रेय संगीतकार जगजीत सिंह को जाता है, जिन्होंने इसे ऐसे प्रारूप में प्रस्तुत किया जिसने न केवल तत्काल जन आकर्षक प्राप्त किया, बल्कि मूल शास्त्रीय संगीत में नए सिरे से रुचि पैदा की, साथ ही दुनिया भर में उर्दू के अध्ययन की माॅंग भी बढ़ी
वेद प्रकाश जी की शिक्षा कोटा में ही हुई, हाई सेकेंडरी, संगीत भूषण गायन वादन की शिक्षा ग्रहण की. शादी के बाद खाली बैठे समय में जगजीत सिंह चित्रा सिंह की ग़ज़लें सुनना पसंद करते थे, लेकिन उन्हें बस सुनने में आनंद आता था, लेकिन ग़ज़लों का अर्थ नहीं समझते थे. मक़बरा इलाके में शायरों के बीच बैठकर ग़ज़ल के बारे में जानकारी प्राप्त की, और मुंबई निवासी श्री आर पी शर्मा महर्षि को उस्ताद बनाया, अपनी लिखी ग़ज़लों को मुंबई भेजते, और दुरुस्त करवाते. बाद में कोटा में मरहूम जनाब इशाक मोहम्मद रोशन कोटवी साहब को उस्ताद बनाया, कोटवी साहब ने इन्हें तरास कर एक उम्दा शायर बनाया. उस्ताद कोटवी साहब के जन्मदिन पर कार्यक्रम करते रहे, उनके इंतकाल के बाद भी यह सिलसिला चलता रहा, कोरोना काल में सब गतिविधियां बंद हो गई, इसके बाद उनके मित्र के कहने पर 14 अप्रैल 2024 को बज़्म- ए-रोशन का ईजाद किया, हर माह के प्रथम रविवार को एक काव्य गोष्ठी होती है, इसमें शायर अपनी ग़ज़लें पेश करते हैं. वेद प्रकाश जी की ग़ज़लें कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई, आकाशवाणी व कवि सम्मेलन व मुशायरो के माध्यम से निरंतर प्रसारण होता रहा. अच्छा साहित्य पढ़ने शास्त्रीय संगीत सुनना विशेष कर अच्छे शायरों का कलाम सुनना इनकी अभिरुचि रही है. अनेक संस्थाओं से जुड़े रहे, भारतेंदु समिति कोटा के आजीवन सदस्य इसके अलावा विकल्प, अंजुमन शेरो अदब , हम सुकन, बज़्मे अदब, काव्य मधुबन, सारंग साहित्य समिति, साहित्य परिषद, आर्यावर्त, जनवादी लेखक संघ आदि अनेक साहित्यिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी निभाई. कई सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित किया. वेद प्रकाश जी की ग़ज़ल संग्रह उत्कृष्ट कोटि की है, हर ग़ज़ल एक संदेश देती नज़र आती है, पाठक का मन अपनी ओर आकर्षित करती है, ऐसा मेरा मत है.
इन्होंने अपनी पहली पुस्तक अपने उस्ताद अल्लामा रोशन कोटवी जी को समर्पित की है. वेद प्रकाश जी व्यावसायिक गतिविधियों से जुड़े होने के बावजूद अपना क़ीमती समय निकालकर 9 अप्रैल 2024 को हमारे ख़ास मुलाक़ात कार्यक्रम में पधारे, इस दौरान साहित्य चर्चा में तरन्नुम में अपनी ग़ज़लें पेश की दर्शकों को अपनी ओर खींचा. इस दौरान इन्होंने ग़ज़ल संग्रह भेंट की.
वेद प्रकाश जी "परकाश" जब ग़ज़ल शुरू करते हैं तो पहले मतले से ही लोग उनके गिरविदा हो जाते हैं, अच्छी ग़ज़ल और अच्छे तरन्नुम के सबब एक के बाद एक साथ कई ग़ज़लें सुनाई, उनके शायराना सलाहिएयतो और उनके ज़ोक ए सलीम में मरहूम उस्ताद रोशन कोटवी की रहनुमाई नज़र आती है, रोशन कोटवी साहब 2008 में हमारे कार्यक्रम से जुड़े थे.
*एक तेरा इशारा नहीं है* ग़ज़ल संग्रह को पढ़कर बहुत आनंद आया.
पृष्ठ संख्या 25 में अंकित पहली ग़ज़ल में लिखते हैं....
.... जान मिट्टी में डालता है तू
नर्म पौदो को पालता है तू
मुश्किलों में संभालता है तू
हर बला सर से टालता है तू
ग़मजदा` को ख़ुशी अता करके
बहरेग़म से निकालता है तू
प्र संख्या 46 में लिखते हैं....
देख ली आशिक़ी आपकी।
मेरा ग़म है ख़ुशी आपकी।।
दोस्ती ,दोस्ती, आपकी।
दुश्मनी ,दुश्मनी आपकी।।
कुछ ना छोड़ी कमी आपने।
क्या इनायत हुई आपकी।।
अब मैं किसशे शिकायत करूँ।
देख कर बेरुख़ी आपकी।।
इस पुस्तक में उर्दू का हिंदी में शब्दार्थ समझा कर शायर ने आसान कर दिया.
शायर वेद प्रकाश जी की ग़ज़लों में ख़ूबसूरती नज़र आती है.
प्र संख्या 54 में. ग़ज़ल में लिखते हैं...
वफाऐ मेरी भूलना तो अच्छी बात नहीं।
किसी के दिल को दुखाना तो अच्छी बात नहीं।।
बना के दीवाना जहाँ की नज़रों में।
मुझे तमाशा बनाना तो अच्छी बात नहीं।।
किसी के इस तरह इज़हारे शौक़ पर हॅंस कर।
हवा में बात उड़ाना तो अच्छी बात नहीं।।
बुझे बुझे से जो रहते हो आजकल मुझसे।
यू मेरी जी को जलाना तो अच्छी बात नहीं।।
और अंत में लिखते हैं..
दस्ते क़ज़ा से कौन ऐ "परकाश" बच सका।
तेरी है क्या विसात सिकंदर उठाए हैं।।
प्र 64 में प्रेम का इज़हार कर बात करते हैं....
ए जाने मोहब्बत मेरे अश्आर की बातें।
सब तेरे लिए है तीरे फ़नकार की बातें।।
है उनके तकल्लूम जो तकरार की बातें।
होती है यही इश्क़ के इज़हार की बातें।।
और ग़ज़ल के अंत में मक़्ता लिखते हैं..
." परकाश" तुम्हीं क्या हो, थीं साहिर की ज़ुबाँ पर।
इक रेशमी पाज़ेब की झंकार की बातें।।
इसी तरह प्र संख्या 86 में लिखते हैं..
.... ख़ुदा के घर में शैताॅं की सुकूमत होती जाती है।
मोहब्बत की जगह हर दिल में नफ़रत होती जाती है।।
बुराई की तरफ़ माइल तबीयत होती जाती है।
इलाही क्या तीरे बंदों की फ़ितरत होती जाती है।।
और अंत में मक़्ता पेश करते हैं..
... तुम्हारा हमारा ख़ुदा है इक "परकाश"
ख़ुदा हमारा तुम्हारा जुदा नहीं होता|
प्र संख्या 90 में ग़ज़ल के माध्यम से क़लमकार के लिए सच्चाई का आईना पेश कर लिखते हैं...
गीत ,ग़ज़ल, चौपाई ,लिख।
पर उनमें सच्चाई लिख।।
राइ का मत पर्वत कर।
पर्वत को मत राइ लिख।।
क्या-क्या तुने कर्म किए।
लिख लिख आना पाई लिख।।
मंदिर मस्जिद किसके घर।
किसका तु सोदाई लिख।।
वक़्त ग़नीमत जान अपना।
गूॅंज उठी शहनाई लिख।।
किसका दुश्मन कौन बना।
कौन है किसका भाई लिख।।
रिश्वतख़ोरी और फ़रेब।
नेता की नेताई लिख।।
और अंत में लिखते हैं..
जाती है 'परकाश' बला।
फ़ज़्ले ख़ुदा से आई लिख।।
पृष्ठ 126 में लिखते हैं...
शिकवा मुझे उसे ज़ुल्म के बानी से नहीं है।
ख़ुद होश में जो अपनी जवानी से नहीं है।।
मसलूब भी होते हैं सदाक़त के अलमदार।
ज़ाहिर ये क्या ईसा की कहानी से नहीं है।।
और अंत में मक़्ता में लिखते हैं...
... 'परकाश' उसे देखे कोई मेरी नज़र से
बढ़कर कोई उस युसूफ़े सानी से नहीं है |
वेद प्रकाश जी की इस पुस्तक में ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं, पुस्तक को पढ़कर बहुत अच्छा लगा, हर पाठक वर्ग इसे पसंद करेगा.
मेरी शुभकामनाऍं हैं इनकी लेखनी निरंतर चलती रहे.
सद्भावी दिनेश गौतम संपादक
STN Channel kota


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