सूरए अल मुरसलात मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी पचास (50) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
हवाओं की क़सम जो (पहले) धीमी चलती हैं (1)
फिर ज़ोर पकड़ के आँधी हो जाती हैं (2)
और (बादलों को) उभार कर फैला देती हैं (3)
फिर (उनको) फाड़ कर जुदा कर देती हैं (4)
फिर फरिश्तों की क़सम जो वही लाते हैं (5)
ताकि हुज्जत तमाम हो और डरा दिया जाए (6)
कि जिस बात का तुमसे वायदा किया जाता है वह ज़रूर होकर रहेगा (7)
फिर जब तारों की चमक जाती रहेगी (8)
और जब आसमान फट जाएगा (9)
और जब पहाड़ (रूई की तरह) उड़े उड़े फिरेंगे (10)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
04 नवंबर 2024
फिर ज़ोर पकड़ के आँधी हो जाती हैं
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