परिवारों में परंपरा बन चुका है,नैत्रदान
2. घोर दुख में भी संतोष पहुँचाता है,नेत्रदान
3. शहर में दो देवलोकगामियों के हुए नेत्रदान
यह
शाश्वत सत्य है की,मृत्यु के दुख को किसी भी तरह से भरा नहीं जा सकता है,
जिस परिवार में यह दुखद घटना घटती है, उन्हें इस दुख से बाहर निकलने में
सालों भी लग जाते हैं । ऐसे समय में यदि शोकाकुल को परिवार के सदस्य,दिवंगत
के नेत्रदान का पुनीत कार्य संपन्न करवाते हैं,तो कुछ हद तक उनका दुख इस
बात से कम हो जाता है कि,उनके दिवंगत परिजन किसी की आँखों में अभी भी जीवित
है ।
शहर में आज दो परिवारों ने घर में शोक आने पर,पूर्व की भांति
फिर अपने दिवंगत परिजनों का नेत्रदान करवाया । देर रात भीमगंजमंडी निवासी
आशीष गर्ग की माताजी श्रीमती मंजू गर्ग का आकस्मिक निधन हुआ, इस दुख से
बाहर निकलने के लिए, बेटे आशीष ने तुरंत ही शाइन इंडिया फाउंडेशन को संपर्क
किया और माता जी के नेत्रदान का कार्य संपन्न करवाया । दो माह पूर्व अपने
भाई स्व० समीर गुप्ता व वर्ष 2015 में पिता स्व० महावीर प्रसाद गर्ग का भी
नेत्रदान परिजनों ने संपन्न करवाया था ।
इसी क्रम में दोपहर में
चित्रगुप्त कॉलोनी निवासी शिक्षा विभाग में सेवारत प्रदीप गौतम के पुत्र
पंकज गौतम का भी आकस्मिक निधन हुआ । संस्था के ज्योति मित्र विनय शर्मा की
प्रेरणा पर पंकज के नेत्रदान का कार्य संपन्न हुआ । नेत्रदान के इस पुनीत
कार्य में,पत्नी मिनी,भाई आदित्य,माँ उमा ,चाचा ललित गौतम व सत्यनारायण
गौतम का सहयोग रहा । ज्ञात हो कि,प्रदीप ने 2 वर्ष पूर्व अपनी माताजी
विद्या देवी गौतम का भी नेत्रदान संपन्न करवाया था ।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 अक्तूबर 2024
परिवारों में परंपरा बन चुका है,नैत्रदान
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