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01 अक्तूबर 2024

(आखि़र) सबने इक़रार किया कि हाए अफ़सोस बेशक हम ही ख़ुद सरकश थे

 (आखि़र) सबने इक़रार किया कि हाए अफ़सोस बेशक हम ही ख़ुद सरकश थे (31)
उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें इससे बेहतर बाग़ इनायत फ़रमाए हम अपने परवरदिगार की तरफ़ रूजू करते हैं (32)
(देखो) यूँ अज़ाब होता है और आख़ेरत का अज़ाब तो इससे कहीं बढ़ कर है अगर ये लोग समझते हों (33)
बेशक परहेज़गार लोग अपने परवरदिगार के यहाँ ऐशो आराम के बाग़ों में होंगे (34)
तो क्या हम फ़रमाबरदारों को नाफ़रमानो के बराबर कर देंगे (35)
(हरगिज़ नहीं) तुम्हें क्या हो गया है तुम तुम कैसा हुक़्म लगाते हो (36)
या तुम्हारे पास कोई ईमानी किताब है जिसमें तुम पढ़ लेते हो (37)
कि जो चीज़ पसन्द करोगे तुम को वहाँ ज़रूर मिलेगी (38)
या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं जो रोज़े क़यामत तक चली जाएगी कि जो कुछ तुम हुक्म दोगे वही तुम्हारे लिए ज़रूर हाजि़र होगा (39)
उनसे पूछो तो कि उनमें इसका कौन जि़म्मेदार है (40)

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