उसने हर बार -
न सिर्फ़ मुझे तोड़ा
मेरी रूह
मेरे जज़्बात
मेरे प्यार
मेरी क़दर
मेरे मान - सम्मान
स्वाभिमान
मेरे वजूद
मेरी अहमियत
मेरी ज़रूरत
उसके प्रति
मेरा ग़ुरूर
मेरी आस
मेरा अटूट विश्वास
मेरा दीवानापन
मेरा पागलपन
मेरा समर्पण
मेरा निश्छल प्रेम
मेरी भावना
सबका क़त्ल कर डाला ,
और इतने बर्दाश्त के बाद
जब मुझे ग़ुस्सा आया
तो बड़ी ही चालाकी से
सारा दोष मेरे ग़ुस्से पे डाल दिया ,
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