सूरए अल वाकिअह मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी (95) पिच्चान्नवे आयते हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
जब क़यामत बरपा होगी और उसके वाकि़या होने में ज़रा झूट नहीं (1)
(उस वक़्त लोगों में फ़र्क ज़ाहिर होगा) (2)
कि किसी को पस्त करेगी किसी को बुलन्द (3)
जब ज़मीन बड़े ज़ोरों में हिलने लगेगी (4)
और पहाड़ (टकरा कर) बिल्कुल चूर चूर हो जाएँगे (5)
फिर ज़र्रे बन कर उड़ने लगेंगे (6)
और तुम लोग तीन किस्म हो जाओगे (7)
तो दाहिने हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (वाह) दाहिने हाथ वाले क्या (चैन में) हैं (8)
और बाएं हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (अफ़सोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं (9)
और जो आगे बढ़ जाने वाले हैं (वाह क्या कहना) वह आगे ही बढ़ने वाले थे (10)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 सितंबर 2024
(उस वक़्त लोगों में फ़र्क ज़ाहिर होगा)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)