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09 जुलाई 2024

ये किताब (क़ुरआन) ख़ुदा की तरफ़ से नाजि़ल हुई है जो ग़ालिब और दाना है

 

45 सूरए अल जासियह
सूरए जासियह मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी सैतीस (37) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
हा मीम (1)
ये किताब (क़ुरआन) ख़ुदा की तरफ़ से नाजि़ल हुई है जो ग़ालिब और दाना है (2)
बेशक आसमान और ज़मीन में ईमान वालों के लिए (क़ुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (3)
और तुम्हारी पैदाइश में (भी) और जिन जानवरों को वह (ज़मीन पर) फैलाता रहता है (उनमें भी) यक़ीन करने वालों के वास्ते बहुत सी निशानियाँ हैं (4)
और रात दिन के आने जाने में और ख़ुदा ने आसमान से जो (ज़रिया) रिज़क (पानी) नाजि़ल फ़रमाया फिर उससे ज़मीन को उसके मर जाने के बाद जि़न्दा किया (उसमें) और हवाओं फेर बदल में अक़्लमन्द लोगों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं (5)
ये ख़ुदा की आयतें हैं जिनको हम ठीक (ठीक) तुम्हारे सामने पढ़ते हैं तो ख़ुदा और उसकी आयतों के बाद कौन सी बात होगी (6)
जिस पर ये लोग ईमान लाएंगे हर झूठे गुनाहगार पर अफ़सोस है (7)
कि ख़ुदा की आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं और वह सुनता भी है फिर ग़़ुरूर से (कुफ़्र पर) अड़ा रहता है गोया उसने उन आयतों को सुना ही नहीं तो (ऐ रसूल) तुम उसे दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो (8)
और जब हमारी आयतों में से किसी आयत पर वाकि़फ़ हो जाता है तो उसकी हँसी उड़ाता है ऐसे ही लोगों के वास्ते ज़लील करने वाला अज़ाब है (9)
जहन्नुम तो उनके पीछे ही (पीछे) है और जो कुछ वह आमाल करते रहे न तो वही उनके कुछ काम आएँगे और न जिनको उन्होंने ख़ुदा को छोड़कर (अपने) सरपरस्त बनाए थे और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है (10)

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