ये वही दोज़ख़ तो है जिसमें तुम लोग शक किया करते थे (50)
बेशक परहेज़गार लोग अमन की जगह (51)
(यानि) बाग़ों और चष्मों में होंगे (52)
रेशम की कभी बारीक और कभी दबीज़ पोशाकें पहने हुए एक दूसरे के आमने सामने बैठे होंगे (53)
ऐसा ही होगा और हम बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरों से उनके जोड़े लगा देंगे (54)
वहाँ इत्मेनान से हर किस्म के मेवे मंगवा कर खायेंगे (55)
वहाँ पहली दफ़ा की मौत के सिवा उनको मौत की तलख़ी चख़नी ही न पड़ेगी और ख़ुदा उनको दोज़ख़ के अज़ाब से महफूज़ रखेगा (56)
(ये) तुम्हारे परवरदिगार का फज़ल है यही तो बड़ी कामयाबी है (57)
तो हमने इस क़़ुरआन को तुम्हारी ज़बान में (इसलिए) आसान कर दिया है ताकि ये लोग नसीहत पकड़ें तो (58)
(नतीजे के) तुम भी मुन्तजि़र रहो ये लोग भी मुन्तजि़र हैं (59)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
08 जुलाई 2024
ये वही दोज़ख़ तो है जिसमें तुम लोग शक किया करते
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)