सूरए अद दुख़ान मक्का में नाजि़ल हुआ और इसमें (59) उनसठ आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहमवाला है
हा मीम (1)
वाज़ेए व रौशन किताब (कु़रआन) की क़सम (2)
हमने इसको मुबारक रात (शबे क़द्र) में नाजि़ल किया बेशक हम (अज़ाब से) डराने वाले थे (3)
इसी रात को तमाम दुनिया के हिक़मत व मसलेहत के (साल भर के) काम फ़ैसले किये जाते हैं (4)
यानि हमारे यहाँ से हुक्म होकर (बेशक) हम ही (पैग़म्बरों के) भेजने वाले हैं (5)
ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है, वह बेशक बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है (6)
सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है सबका मालिक (7)
अगर तुममें यक़ीन करने की सलाहियत है (तो करो) उसके सिवा कोई माबूद नहीं -
वही जिलाता है वही मारता है तुम्हारा मालिक और तुम्हारे (अगले) बाप दादाओं
का भी मालिक है (8)
लेकिन ये लोग तो शक में पड़े खेल रहे हैं (9)
तो तुम उस दिन का इन्तेज़ार करो कि आसमान से ज़ाहिर ब ज़ाहिर धुआँ निकलेगा (10)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 जुलाई 2024
वाज़ेए व रौशन किताब (कु़रआन) की क़सम
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)