और दूसरी (ग़नीमतें भी दी) जिन पर तुम क़ुदरत नहीं रखते थे (और) ख़ुदा ही उन पर हावी था और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है (21)
(और) अगर कुफ़्फ़ार तुमसे लड़ते तो ज़रूर पीठ फेर कर भाग जाते फिर वह न (अपना) किसी को सरपरस्त ही पाते न मददगार (22)
यही ख़ुदा की आदत है जो पहले ही से चली आती है और तुम ख़ुदा की आदत को बदलते न देखोगे (23)
और वह वही तो है जिसने तुमको उन कुफ़्फ़ार पर फ़तेह देने के बाद मक्के
की सरहद पर उनके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे रोक दिए और तुम लोग जो कुछ
भी करते थे ख़ुदा उसे देख रहा था (24)
ये वही लोग तो हैं जिन्होने कुफ़्र किया और तुमको मस्जिदुल हराम (में
जाने) से रोका और क़ुरबानी के जानवरों को भी (न आने दिया) कि वह अपनी
(मुक़र्रर) जगह (में) पहुँचने से रूके रहे और अगर कुछ ऐसे ईमानदार मर्द और
ईमानदार औरतें न होती जिनसे तुम वाकि़फ न थे कि तुम उनको (लड़ाई में
कुफ़्फ़ार के साथ) पामाल कर डालते पस तुमको उनकी तरफ़ से बेख़बरी में नुकसान
पहँच जाता (तो उसी वक़्त तुमको फतेह हुयी मगर ताख़ीर) इसलिए (हुयी) कि
ख़ुदा जिसे चाहे अपनी रहमत में दाखि़ल करे और अगर वह (ईमानदार कुफ़्फ़ार
से) अलग हो जाते तो उनमें से जो लोग काफि़र थे हम उन्हें दर्दनाक अज़ाब की
ज़रूर सज़ा देते (25)
(ये वह वक़्त) था जब काफि़रों ने अपने दिलों में जि़द ठान ली थी और
जि़द भी तो जाहिलियत की सी तो ख़ुदा ने अपने रसूल और मोमिनीन (के दिलों) पर
अपनी तरफ़ से तसकीन नाजि़ल फ़रमाई और उनको परहेज़गारी की बात पर क़ायम रखा
और ये लोग उसी के सज़ावार और एहल भी थे और ख़ुदा तो हर चीज़ से ख़बरदार है
(26)
बेशक ख़ुदा ने अपने रसूल को सच्चा मुताबिके़ वाक़ेया ख़्वाब दिखाया था
कि तुम लोग इन्शाअल्लाह मस्जिदुल हराम में अपने सर मुँडवा कर और अपने थोड़े
से बाल कतरवा कर बहुत अमन व इत्मेनान से दाखि़ल होंगे (और) किसी तरह का
ख़ौफ न करोगे तो जो बात तुम नहीं जानते थे उसको मालूम थी तो उसने फ़तेह
मक्का से पहले ही बहुत जल्द फतेह अता की (27)
वह वही तो है जिसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चा दीन देकर भेजा ताकि
उसको तमाम दीनों पर ग़ालिब रखे और गवाही के लिए तो बस ख़ुदा ही काफ़ी है
(28)
मोहम्मद ख़ुदा के रसूल हैं और जो लोग उनके साथ हैं काफि़रों पर बड़े
सख़्त और आपस में बड़े रहम दिल हैं तू उनको देखेगा (कि ख़ुदा के सामने)
झुके सर बसजूद हैं ख़ुदा के फज़ल और उसकी ख़ुशनूदी के ख़्वास्तगार हैं
कसरते सुजूद के असर से उनकी पेशानियों में घट्टे पड़े हुए हैं यही औसाफ़
उनके तौरेत में भी हैं और यही हालात इंजील में (भी मज़कूर) हैं गोया एक
खेती है जिसने (पहले ज़मीन से) अपनी सूई निकाली फिर (अजज़ा ज़मीन को गे़ज़ा
बनाकर) उसी सूई को मज़बूत किया तो वह मोटी हुयी फिर अपनी जड़ पर सीधी खड़ी
हो गयी और अपनी ताज़गी से किसानों को ख़ुश करने लगी और इतनी जल्दी
तरक़्क़ी इसलिए दी ताकि उनके ज़रिए काफि़रों का जी जलाएँ जो लोग ईमान लाए
और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे ख़ुदा ने उनसे बख़शिश और अज्रे अज़ीम का
वायदा किया है (29)
सूरएअल फ़तह ख़त्म
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