कोटा बूंदी लोकसभा चुनाव में प्रह्लाद गुंजल की जीती हुई बाज़ी हार में कैसे बदली , इसकी समीक्षा कांग्रेस हाईकमान द्वारा तुरंत करवाकर एक्शन लेना ज़रूरी
प्रह्लाद गुंजल को , सुबूत एकत्रित कर , जगदीश ठाडा बनाम ललित किशोर चतुर्वेदी याचिका में प्रतिपादित सिद्धांतों के तहत , कोर्ट से भी इंसाफ की मांग उठाना ही चाहिए ,
सोचो सिर्फ 21 हज़ार भाजपा में गए वोट अगर कोंग्रेस में कन्वर्ट हो जाते तो नतीजे क्या होते,
कोंग्रेस के विधायक, विधायक प्रत्याक्षी, प्रदेश पदाधिकारी, ज़िला पदाधिकारी, वरिष्ठ कोंग्रेसियों की भाग संख्याओं में कोंग्रेस को कितने वोट मिले समीक्षा हो, एक भाग संख्या में तो प्रदेश पदाधिकारी जी के परिवार के जितने वोटर हैं, इतने वोट भी ओम जी के मुक़ाबिल गुंजल को नहीं मिले,
कोटा 6 जून कोटा बूंदी लोकसभा चुनाव के परिणामों ,, चुनाव प्रचार के तोर तरीक़ों ,, कांग्रेस के सफलतम ,भीतर घाती, ऍन वक़्त पर दल बदल , कुछ लोगों की निष्क्रियता पर , निश्चित तोर पर , कांग्रेस हाईकमान को जांच करवाकर एक्शन लेना ही चाहिए, जबकि कोटा जिला, कोटा देहात , और बूंदी कांग्रेस को , इस मामले में संयुक्त बैठक आयोजित कर, समीक्षा करना ज़रूरी हो गया है ,,
चुनाव में महासंग्राम होता है , हार जीत होती रहती है , जो जीतता ,है वोह सिकंदर होता है , कोटा लोकसभा चुनाव में भी , तीसरी बार सांसद चुनाव जीतने के बाद ओम बिरला सिकंदर बन गए है , लेकिन इस बार हार जीत लाखों की नहीं , सिर्फ हज़ारों की , वोह भी , काफी जी तोड़ कोशिशों के बाद , हुई है , यह इस चुनाव को रोमांचक बनाने के लिए काफी रहा ,, सिर्फ 21 हज़ार वोट भी अगर कोंग्रेस अपने प्रत्याक्षी के पक्ष में कन्वर्ट कर लेती तो नतीजे उलट जाते, ,इस चुनाव में , भाजपा से कांग्रेस में शामिल प्रह्लाद गुंजल को , कांग्रेस हाईकमान ने प्रत्याक्षी तो बना दिया , लेकिन चुनाव समर में उन्हें अकेला छोड़ दिया , ,और कई दिग्गज तो उन्हें फफेड़ने के प्रयासों में जुटे रहे , तो कई लोग , भाजपा से गलबहियें मिलाकर, प्रह्लाद गुंजल के खिलाफ दल ,बदल कर या फिर कांग्रेस में ही रहकर, अंदर ही अंदर भाजपा के मददगार बनते नज़र आये ,, कांग्रेस की इस जीती हुई बाज़ी में हार को लेकर , एक चिंतन होना ज़रूरी है , कार्यर्कताओं की बैठक में , मशवरा होना चाहिए , इतना ही नहीं , कांग्रेस हाईकमान को , इस मामले में गुप्त जांच करवाकर, ,संबंधित दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही कर, उन्हें दंडित भी करना ज़रूरी है ,, इधर उक्त चुनाव में ,, क़ानून , निर्वाचन नियमों की भी खुली धज्जियां उड़ाई गईं ऐसी आम शिकायत रही , ,निर्वाचन आयोग में शिकायतें भी हुई , हिन्दू मुस्लिम , धर्म आधारित चुनाव करने के सभी प्रयास हुए , केंद्रीय और राजस्थान की मशीनरी के दुरूपयोग के आरोप भी ,लगे अगर उक्त मामलों के पुख्ता सुबूत जुटा कर जगदीश ठाडा बनाम ललित किशोर चतुर्वेदी की रिट याचिका में प्रतिपादित सिद्धांत जिसमे ललित चतुर्वेदी के निर्वाचन के बाद भी उन्हें प्रार्थमिक स्तर पर , ,,,चुनाव नियमों का उलंग्घन कर दुराचरण करते हुए चुनाव जीतने का प्राथमिक दोषी मानकर, ,, उनके , विधानसभा में सवाल उठाने , वेतन , भत्ते उठाने पर भी अस्थाई रोक लगा दी थी , उक्त प्रतिपादित सिद्धांतों सहित अन्य चुनाव नियमों में नियमों में प्रतिपादित सिद्धांतों के तहत अगर प्रह्लाद गुंजल याचिका दायर करते है , तो भी ,जांच तो प्रश्नगत हो ही सकती है , यूँ भी अगर ओम जी बिरला उनके कद्दावर होने के नाते अगर राजस्थान के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार बनाये जाते है , तो भी कोटा में उप चुनाव सम्भव है , और फिर प्रहलद गुंजल मैदान में होंगे , ,
कोटा लोकसभा चुनाव समर में ,, कोटा बूंदी हॉट सीट थी , यहां चाहे , कांग्रेस प्रत्याक्षी प्रह्लाद गुंजल चुनाव हार गए हों , लेकिन वोह हार कर भी जीते हुए प्रत्याक्षी के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए है , करिश्मा अगर हुआ , कोटा निर्वाचित सांसद ओम बिरला की अगर तरक़्क़ी हुई , तो उन्हें सांसद पद छोड़ना पढ़ सकता है , फिर उप चुनाव अगर हुए तो , प्रह्लाद गुंजल की जीत पक्की होगी ,, प्रह्लाद गुंजल चाहे भाजपा से कांग्रेस में आये हों , लेकिन उन्होंने कांग्रेस में आने के बाद , बिखरे हुए कार्यर्काओं को एक जुट कर , भाजपा के इस गढ़ में कांग्रेस को एक बढ़ी ताक़त बनाया है , यही वजह है , के उक्त चुनाव में परिणाम घोषित होने के बाद भी , आम वोटर को प्रह्लाद गुंजल की हार पर यक़ीन नहीं आ रहा है ,वैसे भी , जहां पांच लाख से जीत के भाजपा का दावा था वोह सिर्फ चालीस हज़ार के आंकड़े पर आकर टिक गया है , ,वोह भी कोटा लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याक्षी चाहे देश की सबसे बढ़ी पंचायत के सर्वोच्च पद पर बैठे लोक सभा अध्यक्ष रहे हो , लेकिन कोटा फिर भी ,,, भाजपा तो प्रह्लाद गुंजल के मुक़ाबिल ज़ीरो थी , कोटा को भाजपा की हारी हुई बाज़ी को ,, इस जीत के लिए कांग्रेस के बागियों , दल बदलुओं और भीतर घातियों ने गिनती के वोटों से जीता कर हीरो बना दिया है , सभी जानते है , कांग्रेस के शासन में प्रदेश स्तरीय प्रभावशाली नेता , ,बोर्ड के चेयरमेन स्तर के ,नेता पूर्व मंत्री , पूर्व विधायक, पूर्व कांग्रेस के जिला अध्यक्ष , कांग्रेस के पंच , सरपंच , जिला परिषद सदस्य , पार्षद , ब्लॉक अध्यक्ष , पार्षद प्रत्याक्षी , नगर निगम कोटा दक्षिण के महापौर , ,, सहित कई ज़िम्मेदार कोंग्रेसी सीधे दल बदल कर भाजपा से जुड़ गए ,भाजपा में भी वोह ओम बिरला के ही खेमे में गए , ,जबकि , ओम बिरला के कांग्रेस के भीतरी लोगों से निजी संबंधों के चलते ,, सभी जानते है , उन्हें इस चुनाव में भी , आंतरिक रूप से , कई लोगों ने कांग्रेस में रहकर ही मदद की है , ,कुछ को प्रलोभन मिला , तो कुछ भाजपा से कांग्रेस में आने पर, प्रह्लाद गुंजल को जो सकारात्मक रेस्पोंस मिला उससे घबराये हुए थे , कुल मिलाकर, , कोटा लोकसभा में भाजपा की जीत , सिर्फ चालीस हज़ार के वोटों की जीत , जीत नहीं , कांग्रेस का उधार का सिंधुर वाली कहावत वाली जीत है ,, कोटा की आठ विधानसभाओं में , बूंदी की तीन विधानसभाओं में किसने क्या किया , प्रह्लाद गुंजल को इस चुनाव में प्रचार के लिए कितना सा अल्पसमय मिला , एक तरफ भीतरघाती कांग्रेस , पूरी भाजपा ,, राजस्थान सरकार , केंद्र सरकार कोटा में प्रह्लाद गुंजल के मुखालिफ खड़े थे , प्रह्लाद गुंजल अकेले अपने समर्पित कांग्रेस कार्यर्कताओं के दम पर उनके निजी मित्र , और सिद्धांतवादी ,, कुछ संघ समर्थकों के बल पर चुनाव मैदान में थे , भाजपा प्रत्याक्षी ओम बिरला के प्रचार के लिए ,,,केंद्रीय ग्रह मंत्री अमित शाह , मुख्यमंत्री भजन लाल , उप मुख्यमंत्री प्रेम चंद बैरवा ,,सहित कई मंत्री , विधायक , उप मुख्यमंत्री पूरी ताक़त झोंके हुए थे , लोकसभा अध्यक्ष का प्रोटोकॉल था, सारा स्टाफ उनके अधीनस्थ ,, निर्देशन पर कार्यरत था ,, तो दूसरी तरफ , ,चुनाव आचार संहिता के विपरीत ,, प्रह्लाद गुंजल के खिलाफ ,,, कोटा शहर क़ाज़ी को सो फी सदी वोटिंग करने , घंटाघर वोट मांगने जाने पर देश के संविधान ,, रिप्रज़ेंटेशन पियूपिल एक्ट के विधिक प्रावधानों के विपरीत प्रचार माध्यम था , अफवाहें थीं ,, निर्दलीय उम्मीदवारों की तरफ से , ,नियमित अख़बारों में विज्ञापन ,, मानमर्दन वाले , प्रकाशित , प्रसारित कर छवि बिगाड़ने के प्रयास थे , तो कुछ कथित पत्रकार पम्पलेट ,, निजी द्वेषता रखकर निजी मित्रता पालने वाले मुख पत्र थे , इन सब के बावजूद यह चुनाव नतीजे कोई बहुत बढ़ी जीत के नहीं हैं ,, लेकिन जिस तरह से ,, क़ाज़ी ऐ शहर की वोटिंग अपील को , हिन्दू ,, मुस्लिम फतवा बताया गया , अखबार में एक तरफा दिखाकर प्रकाशित करवाया गया ,, विडिओ ज़हर घोलने वाले बना कर प्रचारित किये गए , ,सिस्टम के दुरूपयोग के आरोप ,लगे , प्रह्लाद समर्थक कार्यर्कताओं पर ज़्यादती के आरोप लगे ,,, निर्दलीय प्रत्याक्षियों के कंधे पर बंदूक रखकर , जिस तरह से विज्ञापित प्रचार हुआ ,, वोह सभी जानते है, इनके पीछे कौन रहा ,,, अगर इन सब मामलों के तथ्य जुटाकर, समय समय पर निर्वाचन अधिकारी को की गई शिकायतों , नफरत बाज़ प्रचार ,, फ़र्ज़ी विज्ञापन प्रचार को , साक्ष्य के रूप में एकत्रित कर, प्रह्लाद गुंजल ,,, राजस्थान हाईकोर्ट में निर्वाचन रद्द करवाने , और निर्वाचन रद्द करवाकर , खुद प्रह्लाद गुंजल को निर्वाचित घोषित करने की मांग करते हैं , तो नफरत के पर्चे बाँट ,कर ,चुनाव जीतने के मामले में कोटा विधानसभा के निर्वाचित प्रत्याक्षी ललित किशोर चतुर्वेदी के विरुद्ध ,, तात्कालिक कांग्रेस प्रत्याक्षी जगदीश जी ठाडा की निर्वाचन याचिका में हायकोर्ट , सुप्रीमकोर्ट के प्रतिपादित सिद्धांतों के तहत , इस निर्वाचन को प्रश्नगत किया जा सकता है , संसद में सवाल उठाने , संसद में , शामिल होने , पर स्थगन लिया जा सकता है , और चुनाव को निरस्त करने की मांग उठाई जा सकती है ,, ,वैसे भी वर्तमान हालातों में , कोटा सांसद , ओम जी बिरला भाजपा में सर्वोच्च पद पर रह चुके ,है सर्वोच्च व्यक्ति है , प्रधानमंत्री नर्रेंद्र मोदी के भी निकटतम हैं , ,उनके राजस्थान के मुख्यमंत्री बनाये जाने की अटकलें भी तेज़ है , अगर ऐसा होता है , तो फिर , उन्हें मुख्यमंत्री पद पर जाने के ,बाद सांसद पद से इस्तीफा देना पढ़ सकता है , और फिर उप चुनाव अगर होते है , तो प्रह्लाद गुंजल की उक्त परफॉर्मेंस के आधार पर , उनका जीतना तय हो सकता है , , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
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