कोटा से 400 km दूर बैठे परिवार के सदस्यों को समझाइश कर सम्पन्न करवाया देहदान
2. 7 चिकित्सकों के सामूहिक प्रयास,और कर्तव्य निष्ठा से संपन्न हुई देहदान की इच्छा
चार
दिन पूर्व सूरत की रहने वाली हेमप्रभा जैन, राजस्थान के एक छोर पर बसे
कस्बे नीमराणा,जिला कोटपूतली में अपने किसी करीबी रिश्तेदार के यहां आई हुई
थी,वहीं शाम अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और घर पर ही उनका देवलोक गमन हो गया ।
हेमप्रभा होम ट्यूटर थी, इन्होंने थोड़े समय पहले ही अपने भाई मोहन मुकीम
की सास अनिता बोहरा का देहदान शाइन इंडिया फाउंडेशन के माध्यम से होते हुए
देखा था । उन्होंने उसी समय स्वयं के देहदान की इच्छा अपने पति राकेश ,बेटी
मेघना,बेटे भव्य को बता दी थी ।
हेमप्रभा की मृत्यु की पुष्टि
होते ही, पति राकेश जैन ने तुरंत ही पत्नि की इच्छा अनुसार देहदान करने के
लिए कोटा के करीबी रिश्तेदार हेमराज उदेनिया के माध्यम से शाइन इंडिया
फाउंडेशन के डॉ कुलवंत गौड़ को संपर्क किया । जैसे ही डॉ गौड़ को हेमप्रभा के
देहदान करने की बात पता चली वह तुरंत ही अपनी टीम के साथ एक्टिव हो गये ।
400
किलोमीटर दूर बैठे शोकाकुल परिवार को देहदान के लिए सभी तरह से राजी करना
थोड़ा मुश्किल का कार्य था,बेटे भव्य और बेटी मेघना को भी यह असंभव कार्य
इसलिए लग रहा था,क्योंकि उन्हें न तो पूरी प्रक्रिया का पता,और न नीमराना
में कोई मेडिकल कॉलेज औऱ न ही उन्होंने देहदान का कोई संकल्प पत्र भरा हुआ
था, और मृत्यु को 3 घंटे हो चुके थे ।
डॉ गौड़ ने सारी प्रक्रिया को सुनने के बाद सबसे पहले डेहडान से संबंधित उनके मन में जो भी भ्रांतियां थी,उनको दूर किया ।
1. भ्रांति : देहदान के बाद अंतिम संस्कार के लिए क्या हमें कुछ प्राप्त होता है ?
देहदान
के बाद अंतिम संस्कार के लिए पार्थिव शव से शरीर का कोई भी अंग प्राप्त
नहीं होता है,कुछ जगहों पर देहदानी के सिर के बाल और पैरों से नाखून लेकर
लोग अपने रीति रिवाज संपन्न करते हैं ।
2. देहदान मृत्यु के बाद कितनी देर तक संभव है ?
देहदान
मृत्यु के बाद 6 घंटे से ज्यादा 12 घंटे तक भी संभव है, शर्त यही है कि
मृतक का शरीर डीप फ्रीज या बर्फ से संरक्षित किया हुआ हो ।
3. मृत देह पर कितने वर्षों तक अध्ययन किया जाता है,और अध्ययन कार्य पूरा हो जाता है,तब बचे हुए अवशेषों का क्या किया जाता है ?
मृत
देह पर अध्ययन का समय,इस बात पर निर्भर करता है कि, कितने भावी चिकित्सक
उस देह पर अध्ययन कर रहे हैं, मूलतः एक मृतदेह पर 5 वर्ष तक अध्ययन संभव है
। जब शरीर के एक-एक अंगों से अध्ययन पूरा हो जाता है तो, शरीर के अंगों को
ऐसे केमिकल में डाला जाता है,जिससे हड्डियों के ऊपर का सारा माँस अलग हो
जाता है, इसके बाद प्राप्त हड्डियों से चिकित्सक 10-15 सालों तक पढ़ते हैं
।
4. देह को मेडिकल कॉलेज में दान करने के बाद भी,क्या अगले दिनों में हम उनके दर्शन कर सकते हैं ?
मृतदेह
को मेडिकल कॉलेज में देने के बाद ही उसको संरक्षण (एम्बालमिंग) करने की
प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है । इस प्रक्रिया में शरीर में एक द्रव्य को
डाला जाता है,जिससे मृत देह सालों तक सुरक्षित रहती है ।
सभी स्तिथी
ठीक होने पर भी,आखिरी निर्णय मेडिकल कॉलेज के विभागाध्यक्ष का ही रहता है
कि,पार्थिव शव को देहदान के लिए प्राप्त किया जाए या नहीं ।
डॉ गौड़
ने परिवार की सदस्यों को निर्देश देते हुए कहा कि, हेमप्रभा के पार्थिव शव
को टीम के आने तक सुरक्षित रखने के लिए आसपास बर्फ लगा दीजिए और जब तक हम
नीमराना से 60 किलोमीटर दूर ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज और अलवर मेडिकल कॉलेज को
बात करके देहदान करवाने का प्रयास करते हैं ।
संस्था के सहयोगी और
झालावाड़ मेडिकल कॉलेज के एनाटोमी विभाग के डॉ मनोज शर्मा की मदद से ,अलवर
मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ दिनेश सूद ने बताया कि, हमारे मेडिकल कॉलेज में
मृतदेह को संरक्षण करने की सुविधा नहीं थी, परंतु उन्होंने ईएसआईसी मेडिकल
कॉलेज के डीन डॉ असीम दास से संपर्क कर देहदान के कार्य को संपन्न करवाने
में मदद की । डीन के आदेश के बाद ईएसआईसी एनाटॉमी विभागाध्यक्ष डॉ अजय
रत्नाकर नेने और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ नेहा सैनी ने 60 किलोमीटर दूर कॉलेज
की एंबुलेंस को मृतदेह लाने के लिए रवाना किया।
परिवार की ओर से
पूर्ण सहयोग मिलने पर हेमप्रभा की मृतदेह को ससम्मान ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज
में ला कर डॉ नेहा सैनी और डॉ अमित मनचंदा को सौंपा गया । डॉ नेहा ने बताया
कि,ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज को खुले हुए 3 वर्ष हुए हैं,जिसमें 16 देहदान हुए
हैं और यह इस वर्ष का तीसरा देहदान है ।
संस्था शाइन इंडिया
फाउंडेशन के माध्यम से अभी तक 30 देहदान संबंधित मेडिकल कॉलेज में कराए जा
चुके हैं, संस्था अपने शहर के अलावा बाहर के अन्य शहरों में विपरीत
परिस्थितियों में भी देहदान सम्पन्न करवाने में पूर्णतया सहयोग करने में
मदद करती है ।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
02 जून 2024
कोटा से 400 km दूर बैठे परिवार के सदस्यों को समझाइश कर सम्पन्न करवाया देहदान
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)