लानत के मारे जहाँ कहीं हत्थे चढ़े पकड़े गए और फिर बुरी तरह मार डाले गए (61)
जो लोग पहले गुज़र गए उनके बारे में (भी) खु़दा की (यही) आदत (जारी) रही
और तुम खु़दा की आदत में हरगिज़ तग़य्युर तबद्दुल न पाओगे (62)
(ऐ रसूल) लोग तुमसे क़यामत के बारे में पूछा करते हैं (तुम उनसे) कह दो
कि उसका इल्म तो बस खु़दा को है और तुम क्या जानो शायद क़यामत क़रीब ही हो
(63)
ख़ुदा ने क़ाफिरों पर यक़ीनन लानत की है और उनके लिए जहन्नुम को तैयार कर रखा है (64)
जिसमें वह हमेशा अबदल आबाद रहेंगे न किसी को अपना सरपरस्त पाएँगे न मद्दगार (65)
जिस दिन उनके मुँह जहन्नुम की तरफ फेर दिए जाएँगें तो उस दिन अफ़सोसनाक
लहजे़ में कहेंगे ऐ काश हमने खु़दा की इताअत की होती और रसूल का कहना माना
होता (66)
और कहेंगे कि परवरद्गिार हमने अपने सरदारों अपने बड़ों का कहना माना तो उन्हों ही ने हमें गुमराह कर दिया (67)
परवरद्गिारा (हम पर तो अज़ाब सही है मगर) उन लोगों पर दोहरा अज़ाब नाजि़ल कर और उन पर बड़ी से बड़ी लानत कर (68)
ऐ ईमानवालों (ख़बरदार कहीं) तुम लोग भी उनके से न हो जाना जिन्होंने मूसा
को तकलीफ दी तो खु़दा ने उनकी तोहमतों से मूसा को बरी कर दिया और मूसा
खु़दा के नज़दीक एक रवादार (इज़्ज़त करने वाले) (पैग़म्बर) थे (69)
ऐ ईमानवालों खु़दा से डरते रहो और (जब कहो तो) दुरूस्त बात कहा करो (70)
तो खु़दा तुम्हारी कारगुज़ारियों को दुरूस्त कर देगा और तुम्हारे गुनाह
बख़्श देगा और जिस शख़्स ने खु़दा और उसके रसूल की इताअत की वह तो अपनी
मुराद को खू़ब अच्छी तरह पहुँच गया (71)
बेशक हमने (रोज़े अज़ल) अपनी अमानत (इताअत इबादत) को सारे आसमान और ज़मीन
पहाड़ों के सामने पेश किया तो उन्होंने उसके (बार) उठाने से इन्कार किया
और उससे डर गए और आदमी ने उसे (बे ताम्मुल) उठा लिया बेशक इन्सान (अपने हक़
में) बड़ा ज़ालिम (और) नादान है (72)
इसका नतीजा यह हुआ कि खु़दा मुनाफिक़ मर्दों और मुनाफिक़ औरतों और मुशरिक
मर्दों और मुशरिक औरतों को (उनके किए की) सज़ा देगा और ईमानदार मर्दों और
ईमानदार औरतों की (तक़सीर अमानत की) तौबा क़ुबूल फरमाएगा और खु़दा तो बड़ा
बख़शने वाला मेहरबान है (73)
सूरए अल अहज़ाब ख़त्म
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