यहाँ पर मोमिनों का इम्तिहान लिया गया था और ख़ूब अच्छी तरह झिंझोड़े गए थे। (11)
और जिस वक़्त मुनाफेक़ीन और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ्र का) मरज़ था
कहने लगे थे कि खु़दा ने और उसके रसूल ने जो हमसे वायदे किए थे वह बस
बिल्कुल धोखे की टट्टी था। (12)
और अब उनमें का एक गिरोह कहने लगा था कि ऐ मदीने वालों अब (दुश्मन के
मुक़ाबलें में) तुम्हारे कहीं ठिकाना नहीं तो (बेहतर है कि अब भी) पलट चलो
और उनमें से कुछ लोग रसूल से (घर लौट जाने की) इजाज़त माँगने लगे थे कि
हमारे घर (मर्दों से) बिल्कुल ख़ाली (गै़र महफूज़) पड़े हुए हैं - हालाँकि
वह ख़ाली (ग़ैर महफूज़) न थे (बल्कि) वह लोग तो (इसी बहाने से) बस भागना
चाहते हैं (13)
और अगर ऐसा ही लश्कर उन लोगों पर मदीने के एतराफ से आ पड़े और उन से फसाद
(ख़ाना जंगी) करने की दरख़्वास्त की जाए तो ये लोग उसके लिए (फौरन) आ
मौजूद हों (14)
और (उस वक़्त) अपने घरों में भी बहुत कम तवक़्कु़फ़ करेंगे (मगर ये तो
जिहाद है) हालाँकि उन लोगों ने पहले ही खु़दा से एहद किया था कि हम दुश्मन
के मुक़ाबले में (अपनी) पीठ न फेरेगें और खु़दा के एहद की पूछगछ तो (एक न
एक दिन) होकर रहेगी (15)
(ऐ रसूल उनसे) कह दो कि अगर तुम मौत का क़त्ल (के ख़ौफ) से भागे भी तो
(यह) भागना तुम्हें हरगिज़ कुछ भी मुफ़ीद न होगा और अगर तुम भागकर बच भी गए
तो बस यही न की दुनिया में चन्द रोज़ा और चैनकर लो (16)
(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि अगर खुदावन्द तुम्हारे साथ बुराई का इरादा कर
बैठे तो तुम्हें उसके (अज़ाब) से कौन ऐसा है जो बचाए या भलाई ही करना चाहे
(तो कौन रोक सकता है) और ये लोग खु़दा के सिवा न तो किसी को अपना सरपरस्त
पाएँगे और न मद्दगार (17)
तुममें से जो लोग (दूसरों को जिहाद से) रोकते हैं खु़दा उनको खू़ब जानता
है और (उनको भी खू़ब जानता है) जो अपने भाई बन्दों से कहते हैं कि हमारे
पास चले भी आओ और खु़द भी (फक़त पीछा छुड़ाने को लड़ाई के खेत) में बस एक
ज़रा सा आकर तुमसे अपनी जान चुराई (18)
और चल दिए और जब (उन पर) कोई ख़ौफ (का मौक़ा) आ पड़ा तो देखते हो कि (आस
से) तुम्हारी तरफ देखते हैं (और) उनकी आँखें इस तरह घूमती हैं जैसे किसी
शख्स पर मौत की बेहोशी छा जाए फिर वह ख़ौफ (का मौक़ा) जाता रहा और
ईमानदारों की फतेह हुयी तो माले (ग़नीमत) पर गिरते पड़ते फौरन तुम पर अपनी
तेज़ ज़बानों से ताना कसने लगे ये लोग (शुरू) से ईमान ही नहीं लाए (फक़त
ज़बानी जमा ख़र्च थी) तो खु़दा ने भी इनका किया कराया सब अकारत कर दिया और
ये तो खु़दा के वास्ते एक (निहायत) आसान बात थी (19)
(मदीने का मुहासेरा करने वाले चल भी दिए मगर) ये लोग अभी यही समझ रहे हैं
कि (काफि़रों के) लश्कर अभी नहीं गए और अगर कहीं (कुफ्फार का) लश्कर फिर आ
पहुँचे तो ये लोग चाहेंगे कि काश वह जंगलों में गँवारों में जा बसते और
(वहीं से बैठे बैठे) तुम्हारे हालात दरयाफ़्त करते रहते और अगर उनको तुम
लोगों में रहना पड़ता तो फ़क़त (पीछा छुड़ाने को) ज़रा ज़हूर (कहीं) लड़ते
(20)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
10 अप्रैल 2024
यहाँ पर मोमिनों का इम्तिहान लिया गया था और ख़ूब अच्छी तरह झिंझोड़े गए थे।
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