(मुतमइन हो जाते है) मगर जो शख़्स गुनाह करे फिर गुनाह के बाद उसे नेकी
(तौबा) से बदल दे तो अलबत्ता बड़ा बख्शने वाला मेहरबान हूँ (11)
(वहाँ) और अपना हाथ अपने गरेबा में तो डालो कि वह सफेद बुर्राक़ होकर
बेऐब निकल आएगा (ये वह मौजिज़े) मिन जुमला नौ मोजिज़ात के हैं जो तुमको
मिलेगें तुम फ़िरऔन और उसकी क़ौम के पास (जाओ) क्योंकि वह बदकिरदार लोग हैं
(12)
तो जब उनके पास हमारे आँखें खोल देने वाले मैजिज़े आए तो कहने लगे ये तो खुला हुआ जादू है (13)
और बावजूद के उनके दिल को उन मौजिज़ात का यक़ीन था मगर फिर भी उन लोगों
ने सरकशी और तकब्बुर से उनको न माना तो (ऐ रसूल) देखो कि (आखिर) मुफसिदों
का अन्जाम क्या होगा (14)
और इसमें शक नहीं कि हमने दाऊद और सुलेमान को इल्म अता किया और दोनों ने
(ख़ुश होकर) कहा ख़ुदा का शुक्र जिसने हमको अपने बहुतेरे ईमानदार बन्दों पर
फज़ीलत दी (15)
और (इल्म हिकमत जाएदाद (मनकूला) गै़र मनकूला सब में) सुलेमान दाऊद के
वारिस हुए और कहा कि लोग हम को (ख़ुदा के फज़ल से) परिन्दों की बोली भी
सिखायी गयी है और हमें (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है इसमें शक नहीं कि
ये यक़ीनी (ख़ुदा का) सरीही फज़ल व करम है (16)
और सुलेमान के सामने उनके लशकर जिन्नात और आदमी और परिन्दे सब जमा किए जाते थे (17)
तो वह सबके सब (मसल मसल) खडे़ किए जाते थे (ग़रज़ इस तरह लशकर चलता) यहाँ
तक कि जब (एक दिन) चीटीयों के मैदान में आ निकले तो एक चीटीं बोली ऐ
चीटीयों अपने अपने बिल में घुस जाओ- ऐसा न हो कि सुलेमान और उनका लशकर
तुम्हे रौन्द डाले और उन्हें उसकी ख़बर भी न हो (18)
तो सुलेमान इस बात से मुस्कुरा के हँस पड़ें और अर्ज़ की परवरदिगार मुझे
तौफीक़ अता फरमा कि जैसी जैसी नेअमतें तूने मुझ पर और मेरे वालदैन पर
नाजि़ल फरमाई हैं मै (उनका) शुक्रिया अदा करुँ और मैं ऐसे नेक काम करुँ
जिसे तू पसन्द फ़रमाए और तू अपनी ख़ास मेहरबानी से मुझे (अपने) नेकोकार
बन्दों में दाखिल कर (19)
और सुलेमान ने परिन्दों (के लशकर) की हाजि़री ली तो कहने लगे कि क्या बात
है कि मै हुदहुद को (उसकी जगह पर) नहीं देखता क्या (वाक़ई में) वह कही
ग़ायब है (20)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
05 मार्च 2024
(मुतमइन हो जाते है) मगर जो शख़्स गुनाह करे फिर गुनाह के बाद उसे नेकी (तौबा) से बदल दे तो अलबत्ता बड़ा बख्शने वाला मेहरबान हूँ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)