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31 मार्च 2024

और उसी की (क़़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर चैन करो और तुम लोगों के दरमेयान प्यार और उलफ़त पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के वास्ते (क़ु़दरते ख़़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं

 और उसी की (क़़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर चैन करो और तुम लोगों के दरमेयान प्यार और उलफ़त पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के वास्ते (क़ु़दरते ख़़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं (21)
और उस (की क़़ुदरत) की निशानियों में आसमानो और ज़मीन का पैदा करना और तुम्हारी ज़बानो और रंगतो का एख़तेलाफ भी है यकी़नन इसमें वाकि़फकारों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं (22)
और रात और दिन को तुम्हारा सोना और उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करना भी उसकी (क़़ुदरत की) निशानियों से है बेशक जो लोग सुनते हैं उनके लिए इसमें (क़़ुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (23)
और उसी की (क़़ुदरत की) निशानियों में से एक ये भी है कि वह तुमको डराने वाला उम्मीद लाने के वास्ते बिजली दिखाता है और आसमान से पानी बरसाता है और उसके ज़रिए से ज़मीन को उसके परती होने के बाद आबाद करता है बेशक अक़्लमंदों के वास्ते इसमें (क़ुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी दलीलें हैं (24)
और उसी की (क़़ुदरत की) निशानियों में से एक ये भी है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं फिर (मरने के बाद) जिस वक़्त तुमको एक बार बुलाएगा तो तुम सबके सब ज़मीन से (जि़न्दा हो होकर) निकल पड़ोगे (25)
और जो लोग आसमानों में है सब उसी के है और सब उसी के ताबेए फरमान हैं (26)
और वह ऐसा (क़ादिरे मुत्तलिक़ है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करता है फिर दोबारा (क़यामत के दिन) पैदा करेगा और ये उस पर बहुत आसान है और सारे आसमान व जमीन सबसे बालातर उसी की शान है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (27)
और हमने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) तुम्हारी ही एक मिसाल बयान की है हमने जो कुछ तुम्हे अता किया है क्या उसमें तुम्हारी लौन्डी गु़लामों में से कोई (भी) तुम्हारा शरीक है कि (वह और) तुम उसमें बराबर हो जाओ (और क्या) तुम उनसे ऐसा ही ख़ौफ रखते हो जितना तुम्हें अपने लोगों का (हक़ हिस्सा न देने में) ख़ौफ होता है फिर बन्दों को खुदा का शरीक क्यों बनाते हो) अक़्ल मन्दों के वास्ते हम यूँ अपनी आयतों को तफ़सीलदार बयान करते हैं (28)
मगर सरकशों ने तो बगै़र समझे बूझे अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिशों की पैरवी कर ली (और ख़़ुदा का शरीक ठहरा दिया) ग़रज़ ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे (फिर) उसे कौन राहे रास्त पर ला सकता है और उनका कोई मददगार (भी) नहीं (29)
तो (ऐ रसूल) तुम बातिल से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ़ किए रहो यही ख़ुदा की बनावट है जिस पर उसने लोगों को पैदा किया है ख़़ुदा की (दुरुस्त की हुयी) बनावट में तग़य्युर तबद्दुल {उलट फेर} नहीं हो सकता यही मज़बूत और (बिल्कुल सीधा) दीन है मगर बहुत से लोग नहीं जानते हैं (30)

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