और न तुम अँधें को उनकी गुमराही से राह पर ला सकते हो तुम तो बस उन्हीं
लोगों को (अपनी बात) सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर इमान रखते हैं (81)
फिर वही लोग तो मानने वाले भी हैं जब उन लोगों पर (क़यामत का) वायदा पूरा
होगा तो हम उनके वास्ते ज़मीन से एक चलने वाला निकाल खड़ा करेंगे जो उनसे
ये बाते करेंगा कि (फलां फलां) लोग हमारी आयतो का यक़ीन नहीं रखते थे (82)
और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम हर उम्मत से एक ऐसे गिरोह को जो हमारी
आयतों को झुठलाया करते थे (जि़न्दा करके) जमा करेंगे फिर उन की टोलियाँ
अलहदा अलहदा करेंगे (83)
यहाँ तक कि जब वह सब (ख़ुदा के सामने) आएँगें और ख़ुदा उनसे कहेगा क्या
तुम ने हमारी आयतों को बगैर अच्छी तरह समझे बूझे झुठलाया-भला तुम क्या क्या
करते थे और चूँकि ये लोग ज़ुल्म किया करते थे (84)
इन पर (अज़ाब का) वायदा पूरा हो गया फिर ये लोग कुछ बोल भी तो न सकेंगें (85)
क्या इन लोगों ने ये भी न देखा कि हमने रात को इसलिए बनाया कि ये लोग
इसमे चैन करें और दिन को रौशन (ताकि देखभाल करे) बेशक इसमें इमान लाने
वालों के लिए (कु़दरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (86)
और (उस दिन याद करो) जिस दिन सूर फूँका जाएगा तो जितने लोग आसमानों मे
हैं और जितने लोग ज़मीन में हैं (ग़रज़ सब के सब) दहल जाएंगें मगर जिस
शख़्स को ख़ुदा चाहे (वो अलबत्ता मुतमइन रहेगा) और सब लोग उसकी बारगाह में
जि़ल्लत व आजिज़ी की हालत में हाजि़र होगें (87)
और तुम पहाड़ों को देखकर उन्हें मज़बूटत जमे हुए समझतें हो हालाकि ये
(क़यामत के दिन) बादल की तरह उड़े उडे़ फिरेगें (ये भी) ख़ुदा की कारीगरी
है कि जिसने हर चीज़ को ख़ूब मज़बूत बनाया है बेशक जो कुछ तुम लोग करते हो
उससे वह ख़ूब वाकि़फ़ है (88)
जो शख़्स नेक काम करेगा उसके लिए उसकी जज़ा उससे कहीं बेहतर है ओर ये लोग उस दिन ख़ौफ व ख़तरे से महफूज़ रहेंगे (89)
और जो लोग बुरा काम करेंगे वह मुँह के बल जहन्नुम में झोक दिए जाएँगे (और
उनसे कहा जाएगा कि) जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे बस उसी का जज़ा
तुम्हें दी जाएगी (90)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
13 मार्च 2024
और न तुम अँधें को उनकी गुमराही से राह पर ला सकते हो तुम तो बस उन्हीं लोगों को (अपनी बात) सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर इमान रखते हैं
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