इस बात में न तो अँधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ
इल्ज़ाम है- और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने
घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ
दादी नानी वगै़रह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के
घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफि़यों के घरों से या अपने
मामूओं के घरों से या अपनी खा़लाओं के घरों से या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ
तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई
इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में
जाने लगो (और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो
ख़ुदा की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- ख़ुदा यूँ (अपने)
एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो (61)
सच्चे इमानदार तो सिर्फ वह लोग हैं जो ख़ुदा और उसके रसूल पर इमान लाए और
जब किसी ऐसे काम के लिए जिसमें लोगों के जमा होने की ज़रुरत है- रसूल के
पास होते हैं जब तक उससे इजाज़त न ले ली न गए (ऐ रसूल) जो लोग तुम से (हर
बात में) इजाज़त ले लेते हैं वे ही लोग (दिल से) ख़ुदा और उसके रसूल पर
इमान लाए हैं तो जब ये लोग अपने किसी काम के लिए तुम से इजाज़त माँगें तो
तुम उनमें से जिसको (मुनासिब ख़्याल करके) चाहो इजाज़त दे दिया करो और
खु़दा उसे उसकी बखशिश की दुआ भी करो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान
है (62)
(ऐ इमानदारों) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम ले कर) बुलाया करते
हैं उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो ख़ुदा उन लोगों को खू़ब जानता है
जो तुम में से आँख बचा के (पैग़म्बर के पास से) खिसक जाते हैं- तो जो लोग
उसके हुक्म की मुख़ालफत करते हैं उनको इस बात से डरते रहना चाहिए कि
(मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पडे़ या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल हो
(63)
ख़बरदार जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है (सब) यक़ीनन ख़ुदा ही का है
जिस हालत पर तुम हो ख़ुदा ख़ूब जानता है और जिस दिन उसके पास ये लोग लौटा
कर लाएँ जाएँगें तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया है बता देगा और ख़ुदा तो
हर चीज़ से खू़ब वाकिफ है (64)
सूरए नूर ख़त्म
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