आपका-अख्तर खान

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04 फ़रवरी 2024

मैं इक राज़ हूँ, मुझे राज़ ही ... रहने दो,

 

मैं इक राज़ हूँ, मुझे राज़ ही ... रहने दो,
छेड़ो न इन लबों को, ख़ामौश ... रहने दो |
ख़ुली ज़ुबां जो, तो ख़ंजर भी धार खो देंगे,
ज़हर बुझे तीर भी, ज़हर अपना खो देंगे |
मेरी चुप्पी की झूठी मिठास, यूँही बनी रहने दो,
छेड़ो न इन लबों को ख़ामौशी ही ... रहने दो |
जो ख़ुला राज़ तो, सब नंगे हो जाएंगे,
अपनों के ही बीच, फिर दंगे हो जाएंगे |
पड़ा है जो ये पर्दा, तो यूँ ही पड़ा रहने दो,
मैं इक राज़ हूँ, मुझे राज़ ही बना ... रहने दो |
मत सुलझाऔ इस पहेली को, पहेली ही ... रहने दो,
मेरी तनहाई जो अकेली है, तो अकेली ही ... रहने दो |
मैं इक राज़ हूँ, मुझे राज़ ही बना ... रहने दो,
छेड़ो न इन लबों को, ख़ामौश ही ... रहने दो

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