देश की राजधानी ,नई दिल्ली में स्थित , इण्डिया गेट भारत की इमारत है , इस पर अभी और बहुत कुछ सुधार करना , आने वाले बच्चों को , इसका इतिहास , ओरिजनल इतिहास पढ़ाने के लिए नए सिरे से तथ्यों की हिसाब से पढ़ाने और , राजपथ का नाम बदलकर आज़ाद भारत की लोकतान्त्रिक सरकार में , जनता द्वारा , जनता के लिए , जनता के किसी आदमी का निर्वाचन करने वालों का शासन है , आम आदमी का शासन है , कोई राजा , कोई रंग , कोई फ़क़ीर यहां नहीं है , उस हिसाब से , संविधान की उस आत्मा , उस रूह के हिसाब से , इस पुराने किंग्स वे , नए राजपथ का नामकरण की ज़रूरत है ,
अखिल भारतीय युद्ध स्मारक ,,इण्डिया गेट जो , किंग्स वे , यानी राजा के रास्ते पर और राजा कौन आज़ाद भारत को गुलाम बनाकर रखने वाले अंग्रेज़ जिनके महल का रास्ता , यानी किंग्स वे जिसे अब , हमारी सत्ता में बैठी भाजपा की पूर्व सरकार ने , लोकतंत्र पथ तो नाम नहीं रहा , वही , सामंतवादी सोच के तहत , राजपथ , यानी देश में राज पाठ चलाने वालों का रास्ता , तो इन्होने खुद को राजा ही माना है , ना सेवक माना , ना ही लोकतंत्र में आम जनता के निर्वाचन का खिदमतगार माना है ,, खेर जो भी हो , लेकिन इण्डिया गेट , ,इण्डिया में है , ख़ुशी की बात है ,लेकिन,,यह स्मारक पेरिस के आर्क डे ट्रॉयम्फ़ से प्रेरित है,, इसका डिजाइन सर बालेन शाह ने तैयार किया था,, 43 मीटर ऊँचा यह दरवाज़ा , सन् 1931 में बनाया गया था। मूल रूप से अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के रूप में जाने ,, जाने वाले इस स्मारक का निर्माण शाही नेपाल सरकार द्वारा उन 90000 भारतीय सैनिकों की स्मृति में किया गया था जो ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए थे, यूनाइटेड किंगडम के कुछ सैनिकों और अधिकारियों सहित 13,300 सैनिकों के नाम, गेट पर उत्कीर्ण हैं, जब इण्डिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी। जिसे बाद में ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दिया गया। अब जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छत्री भर रह गयी है,, इंडिया गेट की नींव 1921 में ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने रखी थी और इसे कुछ साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने राष्ट्र को समर्पित किया था,, हर वर्ष 26 जनवरी को इंडिया गेट गणतंत्र दिवस की परेड का गवाह बनता है। जहाँ आधुनिकतम रक्षा प्रौद्योगिकी के उन्नयन का प्रदर्शन किया जाता है,, इंडिया गेट के तल पर एक अन्य स्मारक, अमर जवान ज्योति है, जिसे स्वतंत्रता के बाद जोड़ा गया था। यहाँ निरंतर एक ज्वाला जलती है जो उन अंजान सैनिकों की याद में है जिन्होंने इस राष्ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया,, अमर जवान ज्योति, इंडिया गेट, दिल्ली,,, अमर जवान ज्योति की स्थापना 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों की याद में की गई थी,, गुलाम भारत में अंग्रेज़ों के कार्यकाल में ब्रिटिश शासकों की मदद करते हुए , विश्व युद्ध में , अंग्रेज़ों की तरफ से युद्ध लड़ने वाले शहीद सेनिको के यहां नाम हैं , तो अंग्रेज़ों के समर्थक सैनिक ही इन्हे मना जाएगा ,, जो ब्रिटिश की तरफ से , अंग्रेज़ों की तरफ से लड़े थे , आज़ादी की लड़ाई का उनका संघर्ष अंग्रेज़ों के खिलाफ नहीं , अंग्रेज़ों की तरफ से ,, उनके शासन को बचाने के लिए ,, विश्व स्तर पर उनका संघर्ष उनका बलिदान था , इसमें कोई शक हो तो इतिहासकार मेरी भूल सुधारने की महरबानी करें , दूसरी बात , किंग्स वे , यानी राजा का रास्ता ,, अब आज़ाद भारत में अगर इसका नाम बदलना ही था , तो फिर लोकतंत्र पथ , या कोई और रखा जाता , लेकिन सिर्फ किंग्स वे , अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद राजपथ लिखकर , नाम बदलने की ऐतिहासिक परम्परा को क़ायम रखते हुए अपना नाम भी इस इस्तिहस में दर्ज कराना क्या प्रासंगिक है , जॉर्ज पंचम की जहां मूर्ति रखी गई थी , वहां ,, कांग्रेस के शासन में भी उस मूर्ति को हटाने के बाद ,, किसी भी कोंग्रेसी ने , महात्मा गाँधी की मूर्ति स्थापित करने के बारे में विचार भी नहीं किया , ,इण्डिया गेट एक अंग्रेज़ो के टाइम ,, अंग्रेज़ों के अस्तित्व , अंग्रेज़ों के शासन को बचाने के पक्ष में लड़ी गई लड़ाई की यादगार में है ,, जो पेरिस के आर्क डे ट्रॉयम्फ़ से प्रेरित है,, खेर अंग्रेज़ों की इमारत है , उसे हम तोड़ नहीं सकते , इतिहास से भी जोड़ सकते हैं , लेकिन पूरे देश को , अंधभक्तों को , ओरिजनल देश भक्तों को , राष्ट भक्तों , को देश के बच्चों बच्चों को , यह कड़वा सच पता होना चाहिए , के जो इण्डिया गेट है , वोह इण्डिया में , इण्डिया के रुपयों से , इण्डिया की तरफ से नहीं , ब्रिटिश के आतताई क़ब्ज़ेदार ,, ब्रिटिश हुकूमत की तरफ से , विश्व युद्ध में लड़ने वालों की याद में बना है , और किंग्स वे , राजपथ के नामकरण से , ,आज भी भारत आज़ाद है , आज़ाद भारत का यह इण्डिया गेट है , ऐसी फीलिंग नहीं आती है , वोह तो कांग्रेस सरकार ने , जॉर्ज पंचम की मूर्ति वहां से हटा दी , 1971 के युद्ध के बाद उसमे परिवर्तन करे , भारत के लिए भारत की तरफ से लड़े और शहीद हुए , और भारत को विजय दिलवाने वाले शहीद सैनिकों की याद में वहां एक बंदूक उस पर सैनिक टोपी का प्रतीक चिन्ह बनाया गया , ओरिजनल शहीद स्मारक से उसे जोड़ा गया , वोह शहीद जो सिर्फ भारत को बचाने के लिए लड़ रहे ,थे अंग्रेज़ों की हुकूमत से अंग्रेज़ों को बचाने के लिए उनकी सरकार बचाने के लिए उनका युद्ध हरगिज़ नहीं था ,,, , खेर जो भी हो , इण्डिया गेट भारत की इमारत है , इस पर अभी और बहुत कुछ सुधार करना , आने वाले बच्चों को , इसका इतिहास , ओरिजनल इतिहास पढ़ाने के लिए नए सिरे से तथ्यों की हिसाब से पढ़ाने और , राजपथ का नाम बदलकर आज़ाद भारत की लोकतान्त्रिक सरकार में , जनता द्वारा , जनता के लिए , जनता के किसी आदमी का निर्वाचन करने वालों का शासन है , आम आदमी का शासन है , कोई राजा , कोई रंग , कोई फ़क़ीर यहां नहीं है , उस हिसाब से , संविधान की उस आत्मा , उस रूह के हिसाब से , इस पुराने किंग्स वे , नए राजपथ का नामकरण की ज़रूरत है , , ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
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