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05 अक्टूबर 2023

फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने (बस्ती की ज़मीन के तबके) उलट कर उसके ऊपर के हिस्से को नीचे का बना दिया और उस पर हमने खरन्जेदार पत्थर ताबड़ तोड़ बरसाए

 वह फरिश्ते बोले ऐ लूत हम तुम्हारे परवरतिदगार के भेजे हुए (फरिश्ते हैं तुम घबराओ नहीं) ये लोग तुम तक हरगिज़ (नहीं पहुँच सकते तो तुम कुछ रात रहे अपने लड़कों बालों समैत निकल भागो और तुममें से कोई इधर मुड़ कर भी न देखे मगर तुम्हारी बीबी कि उस पर भी यक़ीनन वह अज़ाब नाजि़ल होने वाला है जो उन लोगों पर नाजि़ल होगा और उन (के अज़ाब का) वादा बस सुबह है क्या सुबह क़रीब नहीं (81)
फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने (बस्ती की ज़मीन के तबके) उलट कर उसके ऊपर के हिस्से को नीचे का बना दिया और उस पर हमने खरन्जेदार पत्थर ताबड़ तोड़ बरसाए (82)
जिन पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से निशा न बनाए हुए थे और वह बस्ती (उन) ज़ालिमों (कुफ़्फ़ारे मक्का) से कुछ दूर नहीं (83)
और हमने मदयन वालों के पास उनके भाई शोएब को पैग़म्बर बना कर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं और नाप और तौल में कोई कमी न किया करो मै तो तुम को आसूदगी (ख़ुशहाली) में देख रहा हूँ (फिर घटाने की क्या ज़रुरत है) और मै तो तुम पर उस दिन के अज़ाब से डराता हूँ जो (सबको) घेर लेगा (84)
और ऐ मेरी क़ौम पैमाने और तराज़ू़ इन्साफ़ के साथ पूरे पूरे रखा करो और लेागों को उनकी चीज़े कम न दिया करो और रुए ज़मीन में फसाद न फैलाते फिरो (85)
अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो ख़ुदा का बकि़या तुम्हारे वास्ते कही अच्छा है और मैं तो कुछ तुम्हारा निगेहबान नहीं (86)
वह लोग कहने लगे ऐ शोएब क्या तुम्हारी नमाज़ (जिसे तुम पढ़ा करते हो) तुम्हें ये सिखाती है कि जिन (बुतों) की परसतिष हमारे बाप दादा करते आए उन्हें हम छोड़ बैठें या हम अपने मालों में जो कुछ चाहे कर बैठें तुम ही तो बस एक बुर्दबार और समझदार (रह गए) हो (87)
शोएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मै अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे (हलाल) रोज़ी खाने को दी है (तो मै भी तुम्हारी तरह हराम खाने लगूँ) और मै तो ये नहीं चाहता कि जिस काम से तुम को रोकूँ तुम्हारे बर खि़लाफ (बदले) आप उसको करने लगूं मैं तो जहाँ तक मुझे बन पड़े इसलाह (भलाई) के सिवा (कुछ और) चाहता ही नहीं और मेरी ताईद तो ख़ुदा के सिवा और किसी से हो ही नहीं सकती इस पर मैने भरोसा कर लिया है और उसी की तरफ रुज़ू करता हूँ (88)
और ऐ मेरी क़ौमे मेरी जि़द कही तुम से ऐसा जुर्म न करा दे जैसी मुसीबत क़ौम नूह या हूद या सालेह पर नाजि़ल हुयी थी वैसी ही मुसीबत तुम पर भी आ पड़े और लूत की क़ौम (का ज़माना) तो (कुछ ऐसा) तुमसे दूर नहीं (उन्हीं के इबरत हासिल करो (89)
और अपने परवरदिगार से अपनी मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसी की बारगाह में तौबा करो बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा मोहब्बत वाला मेहरबान है (90)

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