और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं
सबके सब इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि
सबके सब इमानदार हो जाएँ हालाकि किसी शख़्स को ये एख़्तेयार नहीं (99)
कि बगै़र ख़़ुदा की इजाज़त ईमान ले आए और जो लोग (उसूले दीन में) अक़ल से
काम नहीं लेते उन्हीं लेागें पर ख़़ुदा (कुफ्ऱ) की गन्दगी डाल देता है
(100)
(ऐ रसूल) तुम कहा दो कि ज़रा देखों तो सही कि आसमानों और ज़मीन में
(ख़ुदा की निशानियाँ क्या) क्या कुछ हैं (मगर सच तो ये है) और जो लोग ईमान
नहीं क़़ुबूल करते उनको हमारी निशानियाँ और डरावे कुछ भी मुफीद नहीं (101)
तो ये लोग भी उन्हें सज़ाओं के मुन्तिज़र (इन्तजार में) हैं जो उनसे
क़ब्ल (पहले) वालो पर गुज़र चुकी हैं (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि अच्छा तुम भी
इन्तज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ यक़ीनन इन्तज़ार करता हूँ (102)
फिर (नुज़ूले अज़ाब के वक़्त) हम अपने रसूलों को और जो लोग ईमान लाए उनको
(अज़ाब से) तलूउ बचा लेते हैं यूँ ही हम पर लाजि़म है कि हम इमान लाने
वालों को भी बचा लें (103)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर तुम लोग मेरे दीन के बारे में शक में पड़े हो
तो (मैं भी तुमसे साफ कहें देता हूँ) ख़़ुदा के सिवा तुम भी जिन लेागों की
परसतिश करते हो मै तो उनकी परसतिश नहीं करने का मगर (हाँ) मै उस ख़ुदा की
इबादत करता हूँ जो तुम्हें (अपनी कुदरत से दुनिया से) उठा लेगा और मुझे तो
ये हुक्म दिया गया है कि मोमिन हूँ (104)
और (मुझे) ये भी (हुक्म है) कि (बातिल) से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ कायम रख और मुशरेकीन से हरगिज़ न होना (105)
और ख़ुदा को छोड़ ऐसी चीज़ को पुकारना जो न तुझे नफा ही पहुँचा सकती हैं न
नुक़सान ही पहुँचा सकती है तो अगर तुमने (कहीं ऐसा) किया तो उस वक़्त तुम
भी ज़ालिमों में (षुमार) होगें (106)
और (याद रखो कि) अगर ख़ुदा की तरफ से तुम्हें कोई बुराई छू भी गई तो फिर
उसके सिवा कोई उसका दफा करने वाला नहीं होगा और अगर तुम्हारे साथ भलाई का
इरादा करे तो फिर उसके फज़ल व करम का लपेटने वाला भी कोई नहीं वह अपने
बन्दों में से जिसको चाहे फायदा पहुँचाएँ और वह बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान
है (107)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ लोगों तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे
पास हक़ (क़ुरान) आ चुका फिर जो शख़्स सीधी राह पर चलेगा तो वह सिर्फ अपने
ही दम के लिए हिदायत एख़्तेयार करेगा और जो गुमराही एख़्तेयार करेगा वह तो
भटक कर कुछ अपना ही खोएगा और मैं कुछ तुम्हारा जि़म्मेदार तो हूँ नहीं
(108)
और (ऐ रसूल) तुम्हारे पास जो ‘वही’ भेजी जाती है तुम बस उसी की पैरवी करो
और सब्र करो यहाँ तक कि ख़ुदा तुम्हारे और काफिरों के दरम्यिान फैसला
फरमाए और वह तो तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
26 सितंबर 2023
और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं सबके सब इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब इमानदार हो जाएँ हालाकि किसी शख़्स को ये एख़्तेयार नहीं
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