(ऐ रसूल जिहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरों पर कुछ गुनाह है न बीमारों
पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करें बशर्ते कि ये लोग
ख़़ुदा और उसके रसूल की ख़ैर ख़्वाही करें नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की)
कोई सबील नहीं और ख़़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (91)
और न उन्हीं लोगों पर कोई इल्ज़ाम है जो तुम्हारे पास आए कि तुम उनके लिए
सवारी बाहम पहुँचा दो और तुमने कहा कि मेरे पास (तो कोई सवारी) मौजूद नहीं
कि तुमको उस पर सवार करूँ तो वह लोग (मजबूरन) फिर गए और हसरत (व अफसोस)
उसे उस ग़म में कि उन को ख़र्च मयस्सर न आया (92)
उनकी आँखों से आँसू जारी थे (इल्ज़ाम की) सबील तो सिर्फ उन्हीं लोगों पर
है जिन्होंने बावजूद मालदार होने के तुमसे (जिहाद में) न जाने की इजाज़त
चाही और उनके पीछे रह जाने वाले (औरतों,बच्चों) के साथ रहना पसन्द आया और
ख़़ुदा ने उनके दिलों पर (गोया) मोहर कर दी है तो ये लोग कुछ नहीं जानते
(93)
जब तुम उनके पास (जिहाद से लौट कर) वापस आओगे तो ये (मुनाफिक़ीन) तुमसे
(तरह तरह) की माअज़रत करेंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बातें न बनाओ हम
हरगि़ज़ तुम्हारी बात न मानेंगे (क्योंकि) हमे तो ख़़ुदा ने तुम्हारे हालात
से आगाह कर दिया है अनक़ीरब ख़़ुदा और उसका रसूल तुम्हारी कारस्तानी को
मुलाहज़ा फरमाएगें फिर तुम ज़ाहिर व बातिन के जानने वालों (ख़ुदा) की
हुज़ूरी में लौटा दिए जाओगे तो जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे (ज़र्रा
ज़र्रा) बता देगा (94)
जब तुम उनके पास (जिहाद से) वापस आओगे तो तुम्हारे सामने ख़ुदा की क़समें
खाएगें ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो तो तुम उनकी तरफ से मुँह फेर लो बेशक ये
लोग नापाक हैं और उनका ठिकाना जहन्नुम है (ये) सज़ा है उसकी जो ये (दुनिया
में) किया करते थे (95)
तुम्हारे सामने ये लोग क़समें खाते हैं ताकि तुम उनसे राज़ी हो (भी) जाओ तो ख़ुदा बदकार लोगों से हरगिज़ कभी राज़ी नहीं होगा (96)
(ये) अरब के गॅवार देहाती कुफ्र व निफाक़ में बड़े सख़्त हैं और इसी
क़ाबिल हैं कि जो किताब ख़ुदा ने अपने रसूल पर नाजि़ल फरमाई है उसके एहक़ाम
न जानें और ख़ुदा तो बड़ा दाना हकीम है (97)
और कुछ गॅवार देहाती (ऐसे भी हैं कि जो कुछ ख़ुदा की) राह में खर्च करते
हैं उसे तावान (जुर्माना) समझते हैं और तुम्हारे हक़ में (ज़माने की)
गर्दिशों के मुन्तजि़र (इन्तेज़ार में) हैं उन्हीं पर (ज़माने की) बुरी
गर्दिश पड़े और ख़ुदा तो सब कुछ सुनता जानता है (98)
और कुछ देहाती तो ऐसे भी हैं जो ख़ुदा और आखि़रत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ खर्च करते है उसे ख़ुदा
की (बारगाह में) नज़दीकी और रसूल की दुआओं का ज़रिया समझते हैं आगाह रहो
वाक़ई ये (ख़ैरात) ज़रूर उनके तक़र्रुब (क़रीब होने का) का बाइस है ख़ुदा
उन्हें बहुत जल्द अपनी रहमत में दाखि़ल करेगा बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला
मेहरबान है (99)
और मुहाजिरीन व अन्सार में से (ईमान की तरफ) सबक़त (पहल) करने वाले और वह
लोग जिन्होंने नेक नीयती से (कुबूले ईमान में उनका साथ दिया ख़ुदा उनसे
राज़ी और वह ख़़ुदा से ख़ुश और उनके वास्ते ख़़ुदा ने (वह हरे भरे) बाग़
जिन के नीचे नहरें जारी हैं तैयार कर रखे हैं वह हमेशा अब्दआलाबाद (हमेशा)
तक उनमें रहेगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं (100)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
17 सितंबर 2023
(ऐ रसूल जिहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरों पर कुछ गुनाह है न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करें बशर्ते कि ये लोग ख़़ुदा और उसके रसूल की ख़ैर ख़्वाही करें नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की) कोई सबील नहीं और ख़़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
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