और उनके ऊपर से (आग ही का) ओढ़ना भी और हम ज़ालिमों को ऐसी ही सज़ा देते हैं और जिन लोगों ने ईमान कुबुल किया (41)
और अच्छे अच्छे काम किये और हम तो किसी शख़्स को उसकी ताकत से ज़्यादा
तकलीफ देते ही नहीं यहीं लोग जन्नती हैं कि वह हमेशा जन्नत ही में रहा
(सहा) करेगें (42)
और उन लोगों के दिल में जो कुछ (बुग़ज़ व कीना) होगा वह सब हम निकाल
(बाहर कर) देगे उनके महलों के नीचे नहरें जारी होगीं और कहते होगें शुक्र
है उस ख़़ुदा का जिसने हमें इस (मंजि़ले मक़सूद) तक पहुंचाया और अगर ख़़ुदा
हमें यहाँ न पहुंचाता तो हम किसी तरह यहाँ न पहुंच सकते बेशक हमारे
परवरदिगार के पैग़म्बर दीने हक़ लेकर आये थे और उन लोगों से पुकार कर कह
दिया जाएगा कि वह बेहिशत हैं जिसके तुम अपनी कारग़ुज़ारियों की जज़ा में
वारिस व मालिक बनाए गये हों (43)
और जन्नती लोग जहन्नुमी वालों से पुकार कर कहेगें हमने तो बेशक जो हमारे
परवरदिगार ने हमसे वायदा किया था ठीक ठीक पा लिया तो क्या तुमने भी जो
तुमसे तम्हारे परवरदिगार ने वायदा किया था ठीक पाया (या नहीं) अहले जहन्नुम
कहेगें हाँ (पाया) एक मुनादी उनके दरमियान निदा करेगा कि ज़ालिमों पर
ख़ुदा की लानत है (44)
जो ख़ुदा की राह से लोगों को रोकते थे और उसमें (ख़्वामख़्वाह) कज़ी
(टेढ़ा पन) करना चाहते थे और वह रोज़े आख़ेरत से इन्कार करते थे (45)
और बेहशत व दोज़ख के दरमियान एक हद फ़ासिल है और कुछ लोग आराफ़ पर होगें जो
हर शख़्स को (बेहिष्ती हो या जहन्नुमी) उनकी पेषानी से पहचान लेगें और वह
जन्नत वालों को आवाज़ देगें कि तुम पर सलाम हो या (आराफ़ वाले) लोग अभी
दाखि़ले जन्नत नहीं हुए हैं मगर वह तमन्ना ज़रूर रखते हैं (46)
और आराफ वाले कुछ (जहन्नुमी) लोगों को जिन्हें उनका चेहरा देखकर पहचान लेगें आवाज़ देगें और और कहेगें अब न तो तुम्हारा जत्था ही तुम्हारे काम आया और न तुम्हारी शेखी बाज़ी ही (सूद मन्द हुयी) (48)
जो तुम दुनिया में किया करते थे यही लोग वह हैं जिनकी निस्बत तुम कसमें खाया करते थे कि उन पर ख़ुदा (अपनी) रहमत न करेगा (देखो आज वही लोग हैं जिनसे कहा गया कि बेतकल्लुफ) बेहशत में चलो जाओ न तुम पर कोई खौफ है और न तुम किसी तरह आज़र्दा ख़ातिर परेशानी होगी (49)
और दोज़ख वाले अहले बेहिशत को (लजाजत से) आवाज़ देगें कि हम पर थोड़ा सा पानी ही उंडेल दो या जो (नेअमतों) खुदा ने तुम्हें दी है उसमें से कुछ (दे डालो दो तो अहले बेहिष्त जवाब में) कहेंगें कि ख़ुदा ने तो जन्नत का खाना पानी काफिरों पर कतई हराम कर दिया है (50)
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