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19 जून 2023

उसके बाद हम सब मिलकर (खुदा की बारगाह में) गिड़गिड़ाएं और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें (ऐ रसूल) ये सब यक़ीनी सच्चे वाक़यात हैं और ख़ुदा के सिवा कोई माबूद (क़ाबिले परसतिश) नहीं है

 फिर जब तुम्हारे पास इल्म (कुरान) आ चुका उसके बाद भी अगर तुम से कोई (नसरानी) ईसा के बारे में हुज्जत करें तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएं तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलाए) औेर तुम अपनी औेरतों को और हम अपनी जानों को बुलाएं ओर तुम अपनी जानों को (61)
उसके बाद हम सब मिलकर (खुदा की बारगाह में) गिड़गिड़ाएं और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें (ऐ रसूल) ये सब यक़ीनी सच्चे वाक़यात हैं और ख़ुदा के सिवा कोई माबूद (क़ाबिले परसतिश) नहीं है (62)
और बेशक ख़ुदा ही सब पर ग़ालिब और हिकमत वाला है (63)
फिर अगर इससे भी मुँह फेरें तो (कुछ) परवाह (नहीं) ख़ुदा फ़सादी लोगों को खूब जानता है (ऐ रसूल) तुम (उनसे) कहो कि ऐ एहले किताब तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरम्यिान यकसा है कि खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी चीज़ को उसका शरीक न बुलाएं और ख़ुदा के सिवा हममें से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाए अगर इससे भी मुँह मोडे़ं तो तुम गवाह रहना हम (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार हैं (64)
ऐ एहले किताब तुम इबराहीम के बारे में (ख़्वाह मा ख़्वाह) क्यों झगड़ते हो कि कोई उनको नसरानी कहता है कोई यहूदी हालांकि तौरेत व इन्जील (जिनसे यहूद व नसारा की इब्तेदा है वह) तो उनके बाद ही नाजि़ल हुई (65)
तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते? (ऐ लो अरे) तुम वही एहमक़ लोग हो कि जिस का तुम्हें कुछ इल्म था उसमें तो झगड़ा कर चुके (खै़र) फिर तब उसमें क्या (ख्व़ाह मा ख़्वाह) झगड़ने बैठे हो जिसकी (सिरे से) तुम्हें कुछ ख़बर नहीं और (हकी़क़ते हाल तो) खुदा जानता है और तुम नहीं जानते (66)
इबराहीम न तो यहूदी थे और न नसरानी बल्कि निरे खरे हक़ पर थे (और) फ़रमाबरदार (बन्दे) थे और मुशरिकोंसे भी न थे (67)
इबराहीम से ज़्यादा ख़ुसूसियत तो उन लोगों को थी जो ख़ास उनकी पैरवी करते थे और उस पैग़म्बर और ईमानदारों को (भी) है और मोमिनीन का ख़ुदा मालिक है (68)
(मुसलमानो) एहले किताब से एक गिरोह ने बहुत चाहा कि किसी तरह तुमको राहेरास्त से भटका दे हालांकि वह (अपनी तदबीरों से तुमको तो नहीं मगर) अपने ही को भटकाते हैं (69)
और उसको समझते (भी) नहीं ऐ एहले किताब तुम ख़ुदा की आयतों से क्यों इन्कार करते हो, हालांकि तुम ख़ुद गवाह बन सकते हो (70)

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