और फिरऔन के आदमियों को तुम्हारे देखते-देखते डुबो दिया और (वह वक़्त भी
याद करो) जब हमने मूसा से चालीस रातों का वायदा किया था और तुम लोगों ने
उनके जाने के बाद एक बछड़े को (परसतिश के लिए खु़दा) बना लिया (51)
हालाँकि तुम अपने ऊपर ज़ुल्म जोत रहे थे फिर हमने उसके बाद भी तुम से दरगुज़र की ताकि तुम शुक्र करो (52)
और (वह वक़्त भी याद करो) जब मूसा को (तौरेत) अता की और हक़ और बातिल को जुदा करनेवाला क़ानून (इनायत किया) ताकि तुम हिदायत पाओ
(53)
और (वह वक़्त भी याद करो) जब तुमने मूसा से कहा था कि ऐ मूसा हम तुम पर उस वक़्त तक ईमान न लाएँगे जब तक हम खु़दा को ज़ाहिर बज़ाहिर न देख ले उस पर तुम्हें बिजली ने ले डाला, और तुम तकते ही रह गए (55)
फिर तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद हमने जिला उठाया ताकि तुम शुक्र करो (56)
और हमने तुम पर अब्र का साया किया और तुम पर मन व सलवा उतारा और (ये भी तो कह दिया था कि) जो सुथरी व नफीस रोजि़या तुम्हें दी हैं उन्हें शौक़ से खाओ, और उन लोगों ने हमारा तो कुछ बिगाड़ा नहीं मगर अपनी जानों पर सितम ढाते रहे (57)
और (वह वक़्त भी याद करो) जब हमने तुमसे कहा कि इस गाँव (अरीहा) में जाओ और इसमें जहाँ चाहो फराग़त से खाओ (पियो) और दरवाज़े पर सजदा करते हुए और ज़बान से हित्ता बखि़्शश कहते हुए आओ तो हम तुम्हारी ख़ता ये बख़्श देगे और हम नेकी करने वालों की नेकी (सवाब) बढ़ा देगें (58)
तो जो बात उनसे कही गई थी उसे शरीरों ने बदलकर दूसरी बात कहनी शुरू कर दी तब हमने उन लोगों पर जिन्होंने शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह से आसमानी बला नाजि़ल की (59)
और (वह वक़्त भी याद करो) जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी माँगा तो हमने कहा (ऐ मूसा) अपनी लाठी पत्थर पर मारो (लाठी मारते ही) उसमें से बारह चश्में फूट निकले और सब लोगों ने अपना-अपना घाट बखूबी जान लिया और हमने आम इजाज़त दे दी कि खु़दा की दी हुयी रोज़ी से खाओ पियो और मुल्क में फसाद न करते फिरो (60)
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