नवाब मुहम्मद इब्राहिम अली ख़ाँ (1867-1930 ई.)
नवाब मुहम्मद अली ख़ाँ के अल्प शासन काल के बाद गद्दी से हटाए जाने व बनारस निर्वासन के पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र मुहम्मद इब्राहिम अली ख़ाँ को मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में ही टोंक रियासत का नवाब नियुक्त किया गया।
नवाब मुहम्मद इब्राहीम अली ख़ाँ
के शाही महल व अन्य इमारतें नवाब साहब ने आधुनिक पश्चिमी स्थापत्य शैलियों में निर्मित करवाई। इनके साथ ही सुनहरी कोठी, जामा मस्जिद अमीरगंज, खासमहल, रंगीन कोठी, व नज़र बाग़ की मस्जिद में सोने, मीना, पच्चीकारी व कोड़ी का काम नवाब इब्राहिम अली खाँ के कला प्रेम के बेजोड़ नमूने हैं। नवाब साहब को ब्रिटेन की गया था। नवाब इब्राहिम अली ख़ाँ की तीन बेगमों फिरदौस जुमानी, खलीलुज्जमानी व जमीलुज्ज़मानी की ओर से मक्का व मदीना में बनवाई गई रुबातें आज भी मौजूद हैं। भारत से जाने वाले हज यात्रियों को इन रुबातों का लाभ मिलता है। नवाब साहब को शेरो-शायरी का बहुत शौक था। 'खलील' उपनाम से उन्होंने बहुत सी गजलों की रचना की जो टोंक रियासत के विशेष अवसरों पर आज भी गाई जाती हैं। नवाब इब्राहिम अली ख़ाँ की मृत्यु 23 जून 1930 ई. को टोंक में हुई। उन्हें मोती बाग स्थित शाही कब्रिस्तान में दफनाया गया
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