﴾ 81 ﴿
क्यों[1] नहीं, जो भी बुराई कमायेगा तथा उसका पाप उसे घेर लेगा, तो वही नारकीय हैं और वही उसमें सदावासी होंगे।
1. यहाँ यहूदियों के दावे का खण्डन तथा नरक और स्वर्ग में प्रवेश के नियम का वर्णन है।
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَـٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ ﴾ 82 ﴿
तथा जो ईमान लायें और सत्कर्म करें, वही स्वर्गीय हैं और वे उसमें सदावासी होंगे।
وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ لَا تَعْبُدُونَ إِلَّا اللَّـهَ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ ثُمَّ تَوَلَّيْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِّنكُمْ وَأَنتُم مُّعْرِضُونَ ﴾ 83 ﴿
और (याद करो) जब हमने बनी इस्राईल से दृढ़ वचन लिया कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) नहीं करोगे तथा माता-पिता के साथ उपकार करोगे और समीपवर्ती संबंधियों, अनाथों, दीन-दुखियों के साथ और लोगों से भली बात बोलोगे तथा नमाज़ की स्थापना करोगे और ज़कात दोगे, फिर तुममें से थोड़े के सिवा सबने मुँह फेर लिया और तुम (अभी भी) मुँह फेरे हुए हो।
وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ لَا تَسْفِكُونَ دِمَاءَكُمْ وَلَا تُخْرِجُونَ أَنفُسَكُم مِّن دِيَارِكُمْ ثُمَّ أَقْرَرْتُمْ وَأَنتُمْ تَشْهَدُونَ ﴾ 84 ﴿
तथा (याद करो) जब हमने तुमसे दृढ़ वचन लिया कि आपस में रक्तपात नहीं करोगे और न अपनों को अपने घरों से निकालोगे। फिर तुमने स्वीकार किया और तुम उसके साक्षी हो।
ثُمَّ أَنتُمْ هَـٰؤُلَاءِ تَقْتُلُونَ أَنفُسَكُمْ وَتُخْرِجُونَ فَرِيقًا مِّنكُم مِّن دِيَارِهِمْ تَظَاهَرُونَ عَلَيْهِم بِالْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَإِن يَأْتُوكُمْ أُسَارَىٰ تُفَادُوهُمْ وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَيْكُمْ إِخْرَاجُهُمْ ۚ أَفَتُؤْمِنُونَ بِبَعْضِ الْكِتَابِ وَتَكْفُرُونَ بِبَعْضٍ ۚ فَمَا جَزَاءُ مَن يَفْعَلُ ذَٰلِكَ مِنكُمْ إِلَّا خِزْيٌ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يُرَدُّونَ إِلَىٰ أَشَدِّ الْعَذَابِ ۗ وَمَا اللَّـهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ ﴾ 85 ﴿
फिर[1] तुम वही हो, जो अपनों की
हत्या कर रहे हो तथा अपनों में से एक गिरोह को उनके घरों से निकाल रहे हो
और पाप तथा अत्याचार के साथ उनके विरुध्द सहायता करते हो और यदि वे बंदी
होकर तुम्हारे पास आयें, तो उनका अर्थदण्ड चुकाते हो, जबकि उन्हें निकालना
ही तुमपर ह़राम (अवैध) था, तो क्या तुम पुस्तक के
कुछ भाग पर ईमान रखते हो और कुछ का इन्कार करते हो? फिर तुममें से जो ऐसा
करते हों, तो उनका दण्ड क्या है, इसके सिवा कि सांसारिक जीवन में अपमान तथा
प्रलय के दिन अति कड़ी यातना की ओर फेरे जायें? और अल्लाह तुम्हारे
करतूतों से निश्चेत नहीं है!
1. मदीने में यहूदियों के तीन क़बीलों में बनी क़ैनुक़ाअ और बनी
नज़ीर मदीने के अरब क़बीले ख़ज़रज के सहयोगी थे। और बनी क़ुरैज़ा औस क़बीले
के सहयोगी थे। जब इन दोनों क़बीलों में युध्द होता तो यहूदी क़बीले अपने
पक्ष के साथ दूसरे पक्ष के साथी यहूदी की हत्या करते। और उसे बे घर कर देते
थे। और युध्द विराम के बाद पराजित पक्ष के बंदी यहूदी का अर्थदण्ड दे कर,
ये कहते हुये मुक्त करा देते कि हमारी पुस्तक तौरात का यही आदेश है। इसी का
वर्णन अल्लाह ने इस आयत में किया है। (तफ़्सीर इब्ने कसीर)
أُولَـٰئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا بِالْآخِرَةِ ۖ فَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ ﴾ 86 ﴿
उन्होंने ही आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन ख़रीद लिया। अतः उनसे यातना मंद नहीं की जायेगी और न उनकी सहायता की जायेगी।
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَقَفَّيْنَا مِن بَعْدِهِ بِالرُّسُلِ ۖ وَآتَيْنَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ الْبَيِّنَاتِ وَأَيَّدْنَاهُ بِرُوحِ الْقُدُسِ ۗ أَفَكُلَّمَا جَاءَكُمْ رَسُولٌ بِمَا لَا تَهْوَىٰ أَنفُسُكُمُ اسْتَكْبَرْتُمْ فَفَرِيقًا كَذَّبْتُمْ وَفَرِيقًا تَقْتُلُونَ ﴾ 87 ﴿
तथा हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की और उसके पश्चात् निरन्तर रसूल भेजे और हमने मर्यम के पुत्र ईसा को खुली निशानियाँ दीं और रूह़ुल क़ुदुस[1]
द्वारा उसे समर्थन दिया, तो क्या जब भी कोई रसूल तुम्हारी अपनी मनमानी के
विरुध्द कोई बात तुम्हारे पास लेकर आया, तो तुम अकड़ गये, अतः कुछ नबियों
को झुठला दिया और कुछ की हत्या करने लगे?
1. रूह़ुल क़ुदुस से अभिप्रेत फ़रिश्ता जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं।
وَقَالُوا قُلُوبُنَا غُلْفٌ ۚ بَل لَّعَنَهُمُ اللَّـهُ بِكُفْرِهِمْ فَقَلِيلًا مَّا يُؤْمِنُونَ ﴾ 88 ﴿
तथा उन्होंने कहा कि हमारे दिल तो बंद[1] हैं। बल्कि उनके कुफ़्र (इन्कार) के कारण अल्लाह ने उन्हें धिक्कार दिया है। इसीलिए उनमें से बहुत थोड़े ही ईमान लाते हैं।
1. अर्थात नबी की बातों का हमारे दिलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता।
وَلَمَّا جَاءَهُمْ كِتَابٌ مِّنْ عِندِ اللَّـهِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَهُمْ وَكَانُوا مِن قَبْلُ يَسْتَفْتِحُونَ عَلَى الَّذِينَ كَفَرُوا فَلَمَّا جَاءَهُم مَّا عَرَفُوا كَفَرُوا بِهِ ۚ فَلَعْنَةُ اللَّـهِ عَلَى الْكَافِرِينَ ﴾ 89 ﴿
और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक पुस्तक (क़ुर्आन)
आ गयी, जो उनके साथ की पुस्तक का प्रमाणकारी है, जबकि इससे पूर्व वे स्वयं
काफ़िरों पर विजय की प्रार्थना कर रहे थे, तो जब उनके पास वह चीज़ आ गयी,
जिसे वे पहचान भी गये, फिर भी उसका इन्कार कर[1] दिया, तो काफ़िरों पर अल्लाह की धिक्कार है।
1. आयत का भावार्थ यह कि मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस
पुस्तक (क़ुर्आन) के साथ आने से पहले वह काफ़िरों से युध्द करते थे, तो उन
पर विजय की प्रार्थना करते और बड़ी व्याकुलता के साथ आप के आगमन की
प्रतीक्षा कर रहे थे। जिस की भविष्यवाणि उन के नबियों ने की थी, और
प्रार्थनायें किया करते थे कि आप शीघ्र आयें, ताकि काफ़िरों का प्रभुत्व
समाप्त हो, और हमारे उत्थान के युग का शुभारंभ हो। परन्तु जब आप आ गये तो
उन्हों ने आप के नबी होने का इन्कार कर दिया, क्यों कि आप बनी इस्राईल में
नहीं पैदा हुये। फिर भी आप इब्राहीम अलैहिस्सलाम ही के पुत्र इस्माईल
अलैहिस्सलाम के वंश से हैं, जैसे बनी इस्राईल उन के पुत्र इस्राईल की संतान
हैं।
بِئْسَمَا اشْتَرَوْا بِهِ أَنفُسَهُمْ أَن يَكْفُرُوا بِمَا أَنزَلَ اللَّـهُ بَغْيًا أَن يُنَزِّلَ اللَّـهُ مِن فَضْلِهِ عَلَىٰ مَن يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ ۖ فَبَاءُوا بِغَضَبٍ عَلَىٰ غَضَبٍ ۚ وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ مُّهِينٌ ﴾ 90 ﴿
अल्लाह की उतारी हुई (पुस्तक)[1] का इन्कार करके बुरे बदले पर इन्होंने अपने प्राणों को बेच दिया, इस द्वेष के कारण कि अल्लाह ने अपना प्रदान (प्रकाशना), अपने जिस भक्त[1] पर चाहा, उतार दिया। अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी बन गये और ऐसे काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना है।
1. अर्थात क़ुर्आन। 2. भक्त अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नबी बना दिया।
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