*सुना है ये धरती तू चलाता है,* *पूजा करूं या नमाज पढू*
*अरदास करूं दिन रैन,*
*भगवान कहां है तू,*
*ए खुदा कहां है तू ।।*
सुना है तू भटके मन को राह दिखाता है,सुन ले मेरी भी अरज़, भटके लोगों के मन को राह दिखा दे,फिर से हमारे देश में अमनो चैन का माहौल बना दे,शांति भंग करने वाले बच ना पाए,निर्दोष पर आंच ना आए,यह अरज़ है मौला, जो भी रसमें है,वो मैं सारी निभाता हूं,इन करोड़ों की तरह,मैं भी तेरे सामने सर झुकाता हूं,मैं हाथ जोड़ू, यह हाथ खोलू,दोनों में ही इबादत है,दोनों ही पूजा है । यह अरज़ है मौला फिर से मोहब्बतें बड़ा दे,लोगों के दिलों से दुश्मनी का मेल हटा दे ।
बहुत पहले टेलीविजन पर वाशिंग पाउडर का विज्ञापन आता था, दो महिलाएं सफेद साड़ी पहनकर यह कहती थी,मेरी साड़ी तुम्हारी साड़ी से ज़्यादा सफ़ेद है,ऐसा ही कुछ माहौल आजकल देखने को मिल रहा है,एक धर्म वाले,दूसरे धर्म वालों से यह कहते हैं,मेरा धर्म तुम्हारे धर्म से ज्यादा अच्छा और सच्चा है,ऊपर वाला भी,ऊपर बैठे हम लोगों के बचपने को देखकर यही सोचता होगा,काहे मैंने बनाएं यह माटी के पुतले,माटी के पुतले तुझे किस बात का गुमान है,चार दिन की है जिंदगी तेरी,ना रहने वाली जवानी तेरी,माटी में मिल जाएगा,खाक हो जाएंगा,काहे को लड़ते हो धर्म के नाम पर,कुछ ऐसा कर जाओ,जिससे धरती वाले भी खुश हो,और ऊपर वाला भी । जब तुम्हें याद किया जाएं लोगों की आंखें गीली हो जाए । मुझे आज तक एक बात समझ में नहीं आई ऊपरवाला एक है,पर उसके नाम अनेक है,भगवान बोलो,ईश्वर बोलो,अल्लाह बोलो, जीजस बोलो,या बोलो वाहेगुरु, कुछ भी बोलो पर दिल से बोलो सच्चे मन से बोलो,जैसे पानी को अलग-अलग भाषाओं में जल,वाटर,तन्नी,वेल्लम,नीर बोला जाता है,आप किसी भी भाषा में पानी को किसी भी नाम से बोलो, रहेगा पानी,ऐसा ही ऊपर वाले को आप किसी भी नाम से बुलाओ, रहेगा ऊपर वाला ही, फिर क्यों लड़ रहे हैं,क्यों अशांति फैला रहे हैं,खुद भी परेशान हो रहे हैं,और घर वालों को भी परेशान कर रहे हैं,धार्मिक जुलूसों में अक्सर यह देखा गया है,जुलूस में सम्मिलित होने वाले अधिकतर नौजवान होते हैं,जिनकी आयु 16 से 30 वर्ष के बीच होती है,यह नौजवान ग़रीब घरों से ताल्लुक़ रखते हैं,और पढ़ाई लिखाई से कोसों दूर,किसी भी धार्मिक जुलूस में पैसे वाले,पढ़े-लिखे लोग क्यों शामिल नहीं होते,जब कभी भी वाद विवाद की स्थिति पैदा होती है,तो सबसे आगे अंगूठा छाप नौजवान या छूट भैया नेता आगे रहते हैं,और आगे रहने का खामियाजा भी इन्हीं को भुगतना पड़ता है,घर भी इन्हीं लोगों के जलते हैं,और इन्हीं लोगों के ही घर पर बुलडोजर चलते हैं ।
बशीर बद्र साहब ने क्या खूब शेर कहा है,जो आज के माहौल में बिल्कुल सटीक बैठता है,"लोग टूट जाते हैं,एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में",कुछ दिन पहले लोगों के घर जलाए गए,घर जलाने वालों के घरों पर बुलडोजर चलाए गए,जिनके घर जले,जिनके घर पर बुलडोजर चले, घर बनाने वालों से पूछो क्या गुज़री होगी, उनकी पूरी जिंदगी गुज़र गई होगी, एक कच्चा घर बनाने में,आओ आज क़सम खाएं अब आग लगेगी हमारे बुराइयों पर, नफरतों की गिरेगी दीवार,अब घर नहीं,अब दीपक जलेगा प्यार और मोहब्बत का,अब बुलडोजर चलेगा बुराई पर, महंगाई पर, बेरोजगारी पर ।
*मालिक ने हर इंसान*
*को इंसान बनाया ।*
*उसे हिंदू या मुसलमान*
*हमने बनाया ।।*
*आओ सब मिलकर,*
*मोहब्बत का एक*
*दीपक जलाएं ।*
*गिले-शिकवे भूल कर*
*एक दूसरे के गले लग जाएं ।।*
मोहम्मद जावेद खान
संपादक
भोपाल मेट्रो न्यूज़
9009626191
15/4/2022
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