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05 अप्रैल 2023

ये जो लोग जानबूझकर या जाने अनजाने में या लापरवाही से गलत खबरें, जानकारियां, वीडियो या अफवाहें फैलाते हैं,

 

ये जो लोग जानबूझकर या जाने अनजाने में या लापरवाही से गलत खबरें, जानकारियां, वीडियो या अफवाहें फैलाते हैं, अप्रिय भाषा एवं मर्यादाओं को ताक पर रखकर बहस करते हैं, दरअसल वे दूसरों को नहीं ख़ुद को ही धोखा दे रहे होते हैं। साथ ही वे अपने रिश्तेदारों / मित्रों / अन्य करीबियों की नज़रों में अपनी विश्वसनीयता भी कम करते हैं। ऐसा करते वक़्त उनका एक ही ध्येय होता है अपने वैचारिक विरोधी को किसी भी कीमत पर परास्त करना / बदनाम करना / खिल्ली उड़ाना और ऐसा सब करके केवल उस बहस को जीतना । उस वक़्त वो ये बिलकुल भी नहीं सोचते कि ये जो उनका वैचारिक विरोधी है उनमें उनका कोई रिश्तेदार भी है , बचपन का मित्र भी है, सहकर्मी भी है, पड़ोसी भी है, बड़े बुजुर्ग भी है आदि आदि... उस वक़्त उनमें जैसे गीता का ज्ञान समाया होता है कि उन्हें ये युद्ध लड़ना है चाहे सामने कोई भी हो तथा सिर्फ़ और सिर्फ़ जीतना है। इस युद्ध में भले ही वो रिश्तेदार , मित्र, सहकर्मी , पड़ोसी, बुजुर्ग की भावनाओं को जबरदस्त चोट पहुंचाकर रिश्ते को कमजोर कर दे या हमेशा के लिए तोड़ बैठे।
उन्हें ऐसा करके ही शांति मिलती है।
आखिर क्या हासिल कर लेते हैं ऐसी जीत के बाद ?
हासिल ये होता है कि वे अपने सगे रिश्तेदारों , अंतरंग मित्रों, पड़ोसियों या सहकर्मियों को खो देते हैं और उन लोगों की मित्रता या समर्थन हासिल कर लेते हैं, जो केवल उनकी विचारधारा से ताल्लुक रखता हो बाकी जरूरत पड़ने पर वो उनकी ओर देखगा तक नहीं लेकिन एक अजीब जूनून का शिकार होते हैं और अंत में वे वास्तविक अपनेपन की दुनिया से निकलकर आभासी और बनावटी रिश्तों की दुनिया में जीने लग जाते हैं।
ऐसों को समझाना आज के दौर में अब लगभग असंभव है। बहुत दुःख होता है अपने स्वयं के रिश्तेदारों, मित्रों , सहकर्मियों तथा अन्य अपनों को ऐसा करते देख, मगर ये अंधायुग है अब आप आज के इस दौर में किसी को दिन के उजाले में भी रोशनी नहीं दिखला सकते।
बस एक ही उपाय ऐसों को अपने से दूर बहुत दूर कर दो और जो वास्तविकता में जीना जानते हैं उनके साथ व्यस्त रहो मस्त रहो।
नरेश बोहरा

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